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    कांग्रेस के खिलाफ BJP के पास केवल पुराने मुद्दे, विधानसभा चुनाव में पार्टी को निकालनी होगी कोई नई तरकीब

  • July 18, 2024

    नई दिल्‍ली (New Delhi) । लोकसभा चुनाव की हार को लेकर बीजेपी (BJP) अब भी उबल रही है. दिल्ली से लखनऊ तक चुनावी हार की लगातार समीक्षा हो रही है. हार को लेकर संघ (RSS) के नेताओं के बोलने और फिर चुप हो जाने के बाद भी सिलसिला थमा नहीं है, जगह जगह से विरोध की आवाजें अंदर से उठने लगी हैं. और ये सब ऐसे वक्त चल रहा है जब सिर पर कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव (Assembly Elections) होने वाले हैं. अगर आतंकवादी घटनाओं में आई तेजी की वजह से जम्मू-कश्मीर में चुनाव टल जाता है तो भी हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में तो चुनाव होंगे ही.

    हरियाणा की चुनावी तैयारियों के तहत महेंद्रगढ़ में हुए ओबीसी सम्मेलन में बीजेपी नेता अमित शाह ने जानी दुश्मन कांग्रेस को निशाने पर लिया, लेकिन अंदाज वही पुराना था. वही पुराना आरक्षण का मुद्दा, वही पुरानी मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें.

    लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी नेता ऐसे ही मुस्लिम तुष्टिकरण का नाम लेकर कांग्रेस के सत्ता में आने को लेकर डराते रहे, लेकिन सारा दांव उलटा पड़ गया. जहां भी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही थी, उसे मुस्लिम समुदाय का पूरा वोट मिला, और बीजेपी लोकसभा में बहुमत के आंकड़े को छू भी न सकी.


    1. कांग्रेस के खिलाफ मुस्लिम तुष्टिकरण का हथियार कुंद होने लगा है
    अगर बीजेपी के रणनीतिकार ये सोच कर मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर हमला बोलते हैं कि हिंदू वोट एक साथ मिल जाएगा, तो अब भी मुगालते में हैं. हिंदू वोटर को अपने पक्ष में रखने के लिए बीजेपी को कोई नई तरकीब निकालनी होगी.

    अगर अमित शाह हरियाणा में कांग्रेस के बारे में लोगों को अपनी बात समझा रहे हैं, को शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल में अपने हिसाब से तृणमूल कांग्रेस को टारगेट कर रहे हैं. कहते हैं, ‘सबका साथ, सबका विकास’ अब नहीं चलेगा.

    हरियाणा की रैली में अमित शाह लोगों को समझा रहे थे, कांग्रेस ने कर्नाटक में पिछड़े वर्ग का रिजर्वेशन छीनकर मुसलमानों को देने का काम किया है… अगर ये आ गये तो यहां पर भी यही करेंगे… मैं आप सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं… हम हरियाणा में किसी भी हालत में मुस्लिम रिजर्वेशन लागू नहीं होने देंगे.

    हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को इस बार 5 सीटें मिली हैं, जबकि बाकी 5 पर कांग्रेस काबिज हो गई है. 2019 में बीजेपी को हरियाणा की सभी लोकसभा सीटें मिली थी – मतलब साफ है, कांग्रेस धीरे धीरे वापसी करने लगी है.

    2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई थी. अब तो हरियाणा में मुख्यमंत्री भी बदला जा चुका है, और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर केंद्र में पहले ही ऐ़डजस्ट किये जा चुके हैं.

    कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन जातीय जनगणना के जोरदार कैंपेन को लेकर बचाव की मुद्रा में आ चुकी बीजेपी के नेता अमित शाह अब कांग्रेस को ओबीसी विरोधी साबित करने में जुट गये हैं – और अपनी दलील में कांग्रेस के 70 साल के शासन की फिर से याद दिलाने लगे हैं.

    हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बहाने कांग्रेस को निशाना बनाते हुए अमित शाह कहते हैं, मैं यहां आया हूं तो हुड्डा साहब से कहना चाहता हूं… जब-जब चुनाव आता है तब-तब आप ओबीसी-ओबीसी की माला जपते हैं… लेकिन कांग्रेस असल में पिछड़ा वर्ग विरोधी पार्टी है.

    और फिर नेहरू के दौर से कांग्रेस शासन का इतिहास याद दिलाते हुए कहते हैं, 1957 में जब काका कालेलकर कमीशन बना था तब कांग्रेस ने सालों तक उसे लागू नहीं किया… 1980 में इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन को ठंडे बस्ते में डाल दिया… लेकिन 1990 में जब इसे दोबारा लाया गया तो राजीव गांधी ने 2 घंटे 43 मिनट भाषण देकर ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था… लेकिन बीजेपी ने ओबीसी कमीशन को संवैधानिक मान्यता देकर उन्हें संवैधानिक अधिकार देने का काम किया है.

    शुभेंदु अधिकारी भी हिंदुत्व की ही बात कर रहे हैं. और डंके की चोट पर कह रहे हैं, ‘जो हमारे साथ, हम उनके साथ…’ शुभेंदु अधिकारी का कहना है कि अल्पसंख्यक मोर्चा की भी जरूरत नहीं है – लोकसभा चुनाव में ‘मंगलसूत्र’ से लेकर ‘मुजरा’ तक जैसे नैरेटिव का हाल देश देख चुका है, लेकिन बीजेपी का मोह खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है.

    2. इमरजेंसी की याद दिलाने से अब क्या हासिल होगा
    देश की जनता ने तो कुछ ही दिन बाद इमरजेंसी को भुलाकर फिर इंदिरा गांधी को सत्ता सौंप दी थी, अब संविधान हत्या दिवस मना कर भला क्या हासिल किया जा सकता है. लोकसभा में इमरजेंसी की निंदा किया जाना और उसके खिलाफ मौन धारण कर विरोध जताने की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन इमरजेंसी की माला फेरने से बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है.

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल साइट एक्स पर लिखा था, 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी तानाशाही मानसिकता को दर्शाते हुए देश में आपातकाल लगाकर भारतीय लोकतंत्र की आत्मा का गला घोंट दिया था.

    कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘भारत के लोगों में 4 जून, 2024 – जिसे इतिहास में मोदी मुक्ति दिवस के नाम से जाना जाएगा. इस दिन मिली निर्णायक व्यक्तिगत, राजनीतिक और नैतिक हार से पहले उन्होंने दस साल तक अघोषित आपातकाल लगा रखा था.

    कांग्रेस के 70 साल के जिस शासन की बार बार याद दिलाकर बीजेपी अपनी सरकार पर उठते सवालों से बचने की कोशिश करती है, उसे विदा हुए भी दस साल से ज्यादा हो चुके हैं – और तो और अब तो नये सिरे से इमरजेंसी की भी याद दिलाने की मुहिम चलाई जा रही है.

    ये तो ऐसा लगता है जैसे बीजेपी के पास विपक्ष के संविधान बचाओ अभियान को काउंटर करने का कोई कारगर तरीका नहीं बचा है.

    3. नेहरू के बाद इंदिरा-राजीव के नाम पर राजनीति क्या कितना असर हो पाएगा
    10 साल तक नेहरू के नाम पर चली राजनीति अब इंदिरा गांधी होते हुए राजीव गांधी पर पहुंच गई है. पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या को लेकर बीजेपी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय के बयान को लेकर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखा है.

    बीजेपी अध्यक्ष को लिखे पत्र में जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमित मालवीय को बर्खास्त करने की मांग ही है, और साथ ही अमित मालवीय को देश से माफी मांगने को कहा है.

    हाल ही में अमित मालवीय ने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या की वजह बतौर प्रधानमंत्री उनके गलत राजनीतिक फैसलों को बताया था. अमित मालवीय ने कहा था, हम उसकी निंदा करते हैं लेकिन गांधी परिवार आज वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के ल‍िए ऐसी ही कामना करता है.

    कांग्रेस महासचिव ने पत्र में कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याओं को लेकर की गई अमित मालवीय की टिप्पणियां न सिर्फ बेहद असंवेदनशील हैं, बल्कि संकीर्ण राजनीतिक फायदे के लिए दुखद ऐतिहासिक घटनाओं को हल्के में दिखाने का प्रयास भी है.

    लोकसभा चुनाव के नतीजे अपनी जगह हैं, देश के सात राज्यों में हुए 13 उपचुनावों के नतीजे भी पूरी तरह बीजेपी के खिलाफ रहे, और अब बारी यूपी में होने जा रहे 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव की, जिनके नतीजे बीजेपी और कांग्रेस दोनो के लिए नसीहत भरे हो सकते हैं.

    बीजेपी के पैंतरे देख कर तो यही लगता है कि वो कांग्रेस को अब भी हल्के में ले रही है, जबकि इस साल होने वाले तीनों विधानसभा चुनावों में बीजेपी को कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की तरफ से कड़ी टक्कर मिलने वाली है – बीजेपी को अपने राजनीतिक विरोधियों से मुकाबले के लिए नये सिरे से सोचना जरूरी हो गया है. ये नहीं भूलना चाहिये कि केंद्र में बीजेपी गठबंधन की सरकार चला रही है.

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