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    दिल्ली दरबार से तय होगा भाजपा का महापौर, 10 जून बाद ही घोषणा संभव

  • June 03, 2022

    जिनके नाम धड़ल्ले से चल रहे हैं उनकी बजाय कोई नया चेहरा ही उतारेगी भाजपा, सोशल मीडिया पर भी प्रायोजित नामों की भरमार, जीत की गारंटी वाला टिकट हर कोई पाने को लालायित

    इंदौर, राजेश ज्वेल। कौन बनेगा महापौर… इसकी चर्चा हर एक जुबान पर है। भाजपा (BJP) खेमे में तो हलचल है ही, वहीं आम जनता को भी यह उत्सुकता है कि शहर का प्रथम नागरिक यानी उसका महापौर (Mayor) कौन होगा। 41 महीनों से तो महापौर (Mayor) का पद खाली पड़ा है, क्योंकि निगम चुनाव ही नहीं हो सके थे। कांग्रेस के महापौर उम्मीदवार संजय शुक्ला ने तो मैदान संभाल लिया है, लेकिन भाजपा के महापौर को लेकर मशक्कत जारी है। इंदौर, भोपाल के नेता-पदाधिकारी और चुनाव समितियां लाख पैनल बना लें और नामों को चलाए, मगर हकीकत यह है कि अंतिम फैसला दिल्ली दरबार से ही होना है। यानी इंदौर का महापौर कौन होगा, इसका फैसला दिल्ली से ही अंतिम दौर में किया जाना है। पूर्व के चुनावों के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। 11 जून को अधिसूचना के साथ नामांकन फार्म जमा होंगे, जिसकी प्रक्रिया 18 जून तक चलेगी। लिहाजा उसी बीच महापौर के नाम की घोषणा संभव है।


    इंदौर के महापौर का रुतबा किसी कैबिनेट मंत्री से भी अधिक रहता है। यह बात अलग है कि कुछ महापौर ऐसे भी रहे जो अपने पद और कुर्सी का सही उपयोग ही नहीं कर पाए। औद्योगिक राजधानी इंदौर नगर निगम से शहर का हर वर्ग जुड़ा रहता है। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के क्रियाकलापों में नगर निगम का बड़ा हिस्सा शामिल रहता है। इतना ही नहीं, बिल्डर, कालोनाइजरों की जो तगड़ी लॉबी है, जहां से सबसे अधिक धंधा और अन्य रूपों में पैसा आता है, वह भी नगर निगम के दायरे में ही आती है। हालांकि अभी पंचायतों में भी अधिकांश प्रोजेक्ट रियल इस्टेट के चल रहे हैं। लिहाजा सरपंच और अन्य पदों के लिए भी बिल्डर और कालोनाइजर लॉबी लगी हुई है। विगत 10 वर्षों में इंदौर के महापौर का महत्व इसलिए भी बढ़ गया, क्योंकि करोड़ों-अरबों रुपए के प्रोजेक्ट शुरू किए गए। अमृत, स्मार्ट सिटी, मेट्रो से लेकर इंदौर में तमाम प्रोजेक्ट चल रहे हैं और इसका भविष्य अत्यंत ही उज्जवल भी है और मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के सपनों का शहर भी इंदौर ही है। यही कारण है कि यहां के महापौर पद को लेकर इस वक्त जबरदस्त रस्साकशी मची है, क्योंकि भाजपा का टिकट यानी महापौर पद की गारंटी भी है। यही कारण है कि एक दर्जन से ज्यादा नाम सुर्खियों में चल रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर परम्परागत मीडिया भी रोजाना महापौर के संभावित उम्मीदवारों की जानकारी प्रकाशित कर रहा है, जिसमें भाजपा, संघ से लेकर अन्य पेशों से जुड़े लोग भी शामिल हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, वकील से लेकर कारोबारी और अन्य वर्गों से जुड़े लोग भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। भाजपा का संगठन वैसे तो मजबूत है और संघ की राय भी कई महत्वपूर्ण मामलों में ली ही जाती है। यही कारण है कि संघ की पृष्ठभूमि वाले लोगों के नाम भी इन दिनों महापौर पद के लिए खूब चल रहे हैं, लेकिन सभी को अंदेशा है कि कोई चौकाने वाला चेहरा भाजपा उतार सकती है और अंतिम निर्णय दिल्ली दरबार से ही होगा और संभव है कि 10 जून बाद ही महापौर उम्मीदवार घोषित हो।

    कांग्रेस का महापौर तो तय, मगर पार्षद के लिए मचेगा घमासान

    इस बार 85 वार्डों में पार्षदों का चयन करना भी कांग्रेस-भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। सबसे ज्यादा परेशानी भाजपा की रहेगी, क्योंकि उसकी केन्द्र, राज्य में सरकार है और भाजपा की ही परिषद् 30 सालों से निगम में काबिज है। 85 वार्डों में से अधिकांश वार्डों पर भाजपा का ही कब्जा रहेगा, वहीं कांग्रेसी पार्षदों का चयन करना भी आसान नहीं है। एक बार तो कांग्रेस फ्री फॉर ऑल भी कर चुकी है। कांग्रेस से महापौर संजय शुक्ला अवश्य तय हो गए, जो बीते डेढ़-दो सालों से मैदानी मेहनत भी कर रहे हैं, क्योंकि सीधा चुनाव है। लिहाजा उन्हें मुकाबला करने में आसानी रहेगी, लेकिन कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा कि वह 85 वार्डों में अच्छे उम्मीदवार उतार सके, क्योंकि गुटबाजी, जातिगत समीकरण और अन्य दांव-पेंच भी कम नहीं है। हालांकि भाजपा की स्थिति भी लगभग ऐसी है, क्योंकि सत्ता में होने के चलते अब हर कोई पार्षद बनना चाहता है। लिहाजा दावेदारों की भीड़ हर वार्ड में है।

     

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