नई दिल्ली: हरियाणा में बीजेपी ने मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया है. सैनी ने मंगलवार को पांच मंत्रियों के साथ शपथ भी ग्रहण कर ली है. बीजेपी ने यह फैसला लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले लिया है. माना जा रहा है कि बीजेपी हाईकमान ने हरियाणा में सीएम चेहरा बदलकर सत्ता विरोधी लहर से निपटने का सियासी दांव चला है. नायब सिंह सैनी को सरकार की कमान मिलने के साथ-साथ उनके सामने चुनौतियों का अंबार भी है.
लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करने से लेकर हरियाणा में सत्ता की हैट्रिक लगाने का टास्क नायब सिंह के कंधों पर होगा. यही नहीं सरकार और संगठन के बीच विश्वास बहाल करने की बड़ी चुनौती होगी तो उत्तर हरियाणा से लेकर दक्षिण हरियाणा तक संतुलन बनाने के साथ पार्टी नेताओं को एकजुट रखने का चैलेंज है. इसके अलावा सियासी समीकरण को भी साधे रखना होगा. ऐसे में अब देखना है कि नायब सिंह सैनी किस तरह से सियासी बैलेंस बनाकर रख पाते हैं?
मुख्यमंत्री नायब सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी नेताओं को एकजुट रखने की है. विधायक दल की बैठक के बाद से अनिल विज नाराज है और शपथ ग्रहण समारोह तक में शामिल नहीं हुए हैं. हरियाणा में बीजेपी के दिग्गज नेताओं में उन्हें गिना जाता है और पंजाबी समुदाय से आते हैं. बीजेपी का कोर वोट बैंक पंजाबी माने जाते हैं. अनिल विज की नारजगी के पीछे नायब सिंह सैनी का सीएम बनना है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी विज की नारजगी को दूर करने के लिए दो बार उन्हें कॉल करनी पड़ी है. विज को साधने का जिम्मा नायब सिंह पर होगा और साथ ही जिस तरह से उनके तेवर हैं, उसके चलते सियासी बैलेंस बनाकर चलने की चुनौती होगी. अनिल विज और मनोहर लाल खट्टर के बीच रिश्ते ठीक नहीं रहे थे. विज ही नहीं बीजेपी के दूसरे कई और भी नेता है, जिनके अपने-अपने सियासी खेमे हैं. ऐसे में सबको साथ लेकर चलना होगा.
बीजेपी ने 2019 में हरियाणा की सभी लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और दोबारा से 2024 में क्लीन स्वीप का टारगेट सेट कर रखा है. बीजेपी इस बार अपने कई मौजूदा सांसदों को चुनावी मैदान में नहीं उतारना चाहती है. नायब सिंह सैनी खुद कुरुक्षेत्र से सांसद हैं और अब उनके सीएम बन जाने के बाद किसी दूसरे नेता को चुनावी मैदान में उतारना है. हरियाणा में जिस तरह का सियासी मिजाज दिख रहा है, उसमें बीजेपी के लिए सभी 10 लोकसभा सीटों पर दोबारा से जीत दर्ज करना आसान नहीं दिख रहा है. मीडिया में आ रहे सर्वे भी बता रहे हैं कि बीजेपी की सीटें हरियाणा में घट रही है. सैनी के सिर मुख्यमंत्री का ताज ऐसे समय में सजा है. ऐसे में सभी 10 लोकसभा सीटें जितवाकर प्रधानमंत्री की झोली में डालने की बहुत बड़ी चुनौती नायब सैनी पर आन टिकी है.
मोदी लहर में बीजेपी पहली बार 2014 में हरियाणा में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही थी. यह चुनाव पीएम मोदी के नाम और काम पर लड़ा गया था, लेकिन नतीजे के बाद सीएम की कुर्सी मनोहर लाल खट्टर को मिली थी. पांच साल के बाद दोबारा से 2019 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी किसी तरह से सत्ता में वापसी कर सकी थी. बीजेपी बहुमत से नीचे चली गई थी और जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी. इस तरह राज्य में दो बार बीजेपी की सरकार बन चुकी है. पहली सरकार में नायब सैनी स्वयं मंत्री थे और अब खट्टर की जगह मुख्यमंत्री हैं.
हरियाणा में लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. महज छह महीने ही बचे हैं, लेकिन जिस तरह से सत्ता विरोधी लहर की संभावना जताई जा रही है. उसके चलते नायब सैनी को अपनी सरकार के कार्यों के बूते और पीएम मोदी की लहर के चलते तीसरी बार भी सत्ता में आने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी. इसी तरह की उम्मीद कांग्रेस को है कि राज्य में उसकी सरकार बनेगी. भूपेंद्र सिंह हुड्डा पिछले छह महीने से चुनाव अभियान को धार देने में जुटे हैं और अलग-अलग समाज के बीच पैठ भी बना रहे हैं. ऐसे में नायब सिंह सैनी को अपने कौशल के दम पर तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनवाने की चुनौती है.
हरियाणा में दस सालों से बीजेपी की सरकार है और सांसद भी ज्यादातर पार्टी के हैं. किसान से लेकर पहलवान तक आंदोलन में सबसे ज्यादा हरियाणा के लोग शामिल थे. इसके अलावा जाट आरक्षण का अलग मुद्दा है. हरियाणा की सियासत किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. किसानों की नारजगी के चलते बीजेपी को निकाय चुनाव में कई जगह पर मात खानी पड़ी है. इसके अलावा उपचुनाव में भी बीजेपी को हार का मूंह देखना पड़ा है. पहलवानों के आंदोलन में ज्यादातर महिला पहलवान हरियाणा की थी, जिन्होंने पार्टी के सांसद बृजभूषण सिंह के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगाए थे. हरियाणा में बेटियों को लेकर कुछ ज्यादा संवेदनशीलता रही है. इस तरह से नायब सिंह सैनी को किसान और पहलवान आंदोलन से उपजी सियासी हालत को अपने मनमाफिक बनाने की चुनौती होगी.
हरियाणा में बीजेपी ने गैर-जाट दांव चलते हुए पहले पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को सत्ता की कमान सौंपे रखा और अब ओबीसी से आने वाले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया है. कांग्रेस और भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार इस कोशिश में है कि जाट समुदाय के साथ-साथ दलित समाज और अन्य जातियों को जोड़ा जाए. हुड्डा अलग-अलग समाज की रैलियां भी कर रहे हैं और उनके लिए वादे भी कर रहे हैं. बीजेपी ने सियाीस प्रयोग करते हुए नायब सिंह सैनी के जरिए ओबीसी दांव खेला है, जिसके चलते अब उनकी जिम्मेदारी है कि राज्य के सियासी समीकरण को बनाने की चुनौती है. ऐसे में देखना है कि हरियाणा की 36 कौमों को कैसे साथ लेकर चलते हैं?
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