भोपाल। मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा में हलचल तेज हो गई है। भाजपा ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को साधने के लिए रुपरेखा तैयार की है। प्रदेश में दलित-आदिवासियों का कद बढ़ेगा। भाजपा के मिशन 2023 के तहत फैसले होंगे। संघ के निर्देश पर सरकार से लेकर संगठन में दलित नेताओं की एंट्री की तैयारी तेज हो गई है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मंत्री मंडल में नए दलित चेहरे शामिल हो सकते हैं। साथ ही भाजपा संगठन में दलित और आदिवासी नेताओं को अहम जिम्मेदारी मिल सकती है। उधर चुनावी मोड की तैयारी में जुटी कांग्रेस के सामने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के समर्थन की बड़ी चुनौती पेश आ रही है। 2018 में इन वर्गों के समर्थन ने पार्टी को सत्ता के करीब पहुंचा दिया था, लेकिन कैबिनेट में शामिल इन वर्गों के चेहरे प्रभाव जमाने में कामयाब नहीं हो सके, वहीं अब तक पार्टी के सामने नेतृत्व करने वाले चेहरों का भी अभाव बना हुआ है। माना जा रहा है कि चुनाव के मद्देनजर संगठन में बदलाव के बीच कुछ चेहरों को मौका दिया जा सकता है।
कांग्रेस ने खेला था बड़ा गेम
कांग्रेस को 2018 के विस चुनाव में अनुसूचित जाति (अजा) और अनुसूचित जनजाति (अजजा) की सर्वाधिक सीटें मिलीं थीं। कमल नाथ सरकार ने इन वर्गों द्वारा जताए गए भरोसे को देखते हुए कैबिनेट में अनुसूचित जनजाति वर्ग से बाला बच्चन, उमंग सिंघार, सुरेंद्र सिंह बघेल, ओमकार सिंह मरकाम सहित अन्य को मंत्री बनाया था। वहीं, अनुसूचित जाति वर्ग से नर्मदा प्रसाद प्रजापति को विधानसभा अध्यक्ष, डा. विजयलक्ष्मी साधौ, सज्जन सिंह वर्मा, लखन घनघोरिया सहित अन्य को मंत्री बनाकर अनुसूचित जाति वर्ग को साधने की कोशिश की थी, लेकिन कोई भी अपनी छाप इन वर्गों पर नहीं छोड़ पाया। पार्टी ने पूर्व विधायक फूल सिंह बरैया को कांग्रेस में लाकर आगे बढ़ाने का प्रयास भी किया लेकिन उनके विवादित बयान पार्टी के गले की फांस बनते रहे हैं। इस बीच 15 महीने में ही कमल नाथ सरकार गिर गई और कांग्रेस इस वर्ग का भरोसा कायम नहीं रख सकी। इधर, मुश्किलें ये भी हैं कि अजा और अजजा वर्ग में नेतृत्व का संकट बरकरार है।
क्यों हैं इन वर्गों से उम्मीदें
मध्यप्रदेश में सत्ता के लिहाज से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा 2003 से 2018 तक के आंकड़ों से हो जाता है। इस दरम्यान हुए विस चुनावों में कांग्रेस को इन वर्गों का साथ 2018 में ही मिला, जिससे वह सत्ता के करीब पहुंच सकी थी और निर्दलीय व बसपा के समर्थन से कमल नाथ सरकार का गठन हुआ था। वर्ष 2003 में प्रदेश की विस में अनुसूचित जाति के लिए 34 सीटें आरक्षित थी, लेकिन कांग्रेस के खाते में महज 3 सीटें आईं थी, वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 41 सीटों में से दो सीटें ही मिलीं थीं। हालात में 2008 में सुधार दिखा, पर सत्ता नहीं मिली। अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटें 35 हो गईं, जिसमें से कांग्रेस के खाते में 9 आईं, वहीं अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 में से कांग्रेस को 17 सीटें मिल गईं। 2013 के विस चुनाव में आरक्षित सीटों पर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा। अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों में से महज चार कांग्रेस के खाते में आईं, वहीं अनुसूचित जनजाति वर्ग की सीटें भी घटकर 15 रह गईं। कांग्रेस ने 2018 के विस चुनाव की तैयारियों में इन वर्गों पर फोकस किया और बढ़त बनाने में सफल रही। उसे अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटों में से 17 सीटें मिलीं, तो अनुसूचित जनजाति वर्ग से 30 सीटें जीतने में कामयाब रही।
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