नई दिल्ली (New Delhi)। कर्नाटक (karnataka) में चुनाव (election) के तारीखों के ऐलान भले ही नहीं हुआ है, लेकिन राजनीतिक दल तैयारी में जुट गए हैं। बीजेपी में यहां सत्ता बनाए रखने एक बड़ी चुनौती है। कर्नाटक के विधानसभा चुनाव (assembly elections) में स्पष्ट बहुमत का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा (BJP) की रणनीति में इस बार पांच बी की अहम भूमिका (Important role of five B) होगी। यह पांच बी वह पांच जिले बेंगलुरू (शहर व ग्रामीण), बेलगाम, बागलकोट, बीदर और बेल्लारी हैं, जिनमें भाजपा इस बार पिछली बार से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश करेगी, क्योंकि यहां पर वह राजनीतिक व सामाजिक समीकरणों के हिसाब से प्रभावी भी है।
इन पांच जिलों की 72 सीटों में से भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में 30 सीटें ही जीत पाई थी। यहां पर कांग्रेस को 37 और जद एस को दो सीटें मिली थीं। यही वजह है कि भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में तो उभरी, लेकिन 224 सदस्यीय विधानसभा में 113 सीटों के बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई थी। भाजपा को 104 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को 80 और जद एस को 37 सीटें मिली थीं। तब भाजपा को सबसे बड़ा झटका बेंगलुरू में लगा था। बेंगलुरू शहर की 28 सीटों में भाजपा केवल 11 सीटें ही जीत पाई थी।
बेंगलुरू ग्रामीण की चार सीटों में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी यानी 32 सीटों में यहां केवल 11 सीटें ही मिली थी। तब पार्टी को बेगलाम की 18 सीटों में दस, बागलकोट की सात सीटों में पांच, बीदर की छह सीटों में एक, बेल्लारी की नौ सीटों में से तीन सीटें मिली थीं। अब भाजपा की कोशिश इन पांच जिलों में लगभग 50 सीटों जीतने की है। यानी 20 सीटों की बढ़त हासिल करने की कोशिश है।
भाजपा के इन पांच जिलों पर जोर लगाने की एक वजह पुराना मैसूर में कमजोर स्थिति होना भी है। बीते चुनाव में पुराना मैसूर क्षेत्र की 64 सीटों में से भाजपा को केवल 11 सीटें ही मिली थीं। बाद में कांग्रेस व जद एस से आए नेताओं से उसने अपनी ताकत बढ़ाई जरूर है। वोक्कालिगा प्रभाव वाले इस क्षेत्र में जद एस का प्रभाव काफी ज्यादा है। जद एस की अधिकांश सफलता उसको इसी गढ़ में मिलती है। हालांकि भाजपा ने इस बार इस क्षेत्र के लिए भी अपनी रणनीति बदली है और दूसरे दलों से आए वोक्कालिगा समुदाय के नेताओं से उसे काफी उम्मीदें भी हैं।
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