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घर लौटे किसान, नेताओं और विरोधी दलों की घेरेबंदी को लेकर अभी भी सतर्क है भाजपा

December 12, 2021


नई दिल्ली। किसान एक साल बाद (After one year) अपने-अपने अपने घरों को लौट चुके हैं (Returned Home), लेकिन किसान (Farmers) नेताओं और विरोधी दलों (Leaders and Opposition parties) की घेरेबंदी (Siege) को लेकर भाजपा (BJP) अभी भी सतर्क (Still Cautious) है । घर वापसी से पहले दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों ने अपनी जीत का जश्न भी मनाया । यहां तक कि विरोधी दल भी इसे किसानों की जीत और सरकार की हार करार दे रहे हैं।


चुनावी मौसम में मुद्दे की गंभीरता और संवेदनशीलता को देखते हुए भाजपा बहुत ही सावधानी के साथ इस पर प्रतिक्रिया दे रही है। पिछले एक साल से कई चुनावों में मिली जीत का हवाला देते हुए भले ही भाजपा नेता लगातार यह दावा करते रहे हो कि किसान आंदोलन का विधान सभा चुनाव में कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इसका अंदाजा उन्हे भी था कि किसान आंदोलन की वजह से वो खुल कर अपने एजेंडे के अनुसार चुनाव प्रचार नहीं कर पा रहे थे। हालांकि, पिछले कई वर्षों से यह देखा जा रहा है कि चुनाव का एजेंडा भाजपा ही तय करती रही है और विपक्षी दलों को भाजपा अपने पिच पर आकर खेलने को मजबूर कर देती है। किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को इस बार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था इसलिए आंदोलन वापसी के ऐलान से सबसे ज्यादा राहत भाजपा को मिली है।
किसान नेताओं के ऐलान के साथ ही सरकार की तरफ से सबसे पहली प्रतिक्रिया केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की तरफ से आई। गौरतलब है कि संजीव बालियान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से लोकसभा सांसद है और जाट समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। इसी इलाके में किसान आंदोलन के सबसे ज्यादा असर होने का दावा किया जाता रहा है।
किसान नेताओं द्वारा आंदोलन के स्थगित करने के ऐलान पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने कहा था कि अब किसानों के घर लौट जाने के बाद हम अपने एजेंडे पर लोगों से बात कर पाएंगे क्योंकि पहले हर जगह एक ही बात होती थी कि आंदोलन खत्म कराओ । उन्होने कहा कि अब हम किसानों के पास जाकर उन्हे अपनी उपलब्धियों के बारे में बताएंगे। किसानों के हितों में उठाए गए सरकारी कदमों एवं उनके परिणामों के बारे में बताएंगे और अब एजेंडा हम तय करेंगे।

भाजपा के लिए यह मुद्दा कितना अहम और संवेदनशील है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि किसान संगठनों के साथ पर्दे के पीछे चल रही बातचीत में कभी भी सरकार ने अपने आप को फ्रंट पर नहीं रखा। बातचीत को लेकर ए बातचीत की शर्तों को लेकर ए सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को लेकर सारे ऐलान किसान संगठनों की तरफ से ही किए गए। यहां तक कि सरकार द्वारा भेजे गए पत्रों को भी सरकार की तरफ से नहीं, बल्कि किसान नेताओं की तरफ से ही सार्वजनिक किया गया।
एक खास रणनीति के तहत सरकार ने इस पूरे मामले में अपने आप को पूरी तरह से पर्दे के पीछे ही रखा। इसलिए भले ही विरोधी दल इसे सरकार की हार साबित करने की कोशिश करती रहे, लेकिन भाजपा इस पूरे मसले पर अलग ही तरह से प्रतिक्रिया दे रही है।
भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी से लोकसभा सांसद राजकुमार चाहर ने कहा, “हमारे लिए यह जीत-हार का नहीं किसानों के मान और सम्मान का मसला है। किसानों के मान-सम्मान का ध्यान रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा दिल दिखाते हुए इन तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया था और उहोने अपने वादे को पूरा कर दिया। पराली को लेकर भी किसानों की मांग मानी गई और एमएसपी को लेकर भी कमेटी का गठन किया जा रहा है। सरकार का एजेंडा बिल्कुल साफ है. सबका साथ.सबका विकास और सबका विश्वास इसलिए देश में माहौल को बेहतर करने के लिए सरकार ने यह फैसला किया और इसका चुनाव से कोई लेना देना नहीं है।”

किसान भले ही अभी आंदोलन को स्थगित कर अपने-अपने घरों को लौट गए हों, लेकिन आने वाले दिनों में भी किसान संगठनों के नेताओं की गतिविधियां और बैठकों का दौर जारी रहेगा इसलिए इतना तो तय है कि फिलहाल यह मुद्दा खत्म होने नहीं जा रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां से टिकैत आते हैं वहां अखिलेश यादव और जयंत चौधरी का गठबंधन इस मुद्दें को लगातार उठाता रहेगा। पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी भी किसानों के सहारे भाजपा पर हमला बोलती रहेगी। उत्तराखंड के तराई इलाकों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और आस-पास के कई जिलों में भी विरोधी दल बड़े स्तर पर इस मसले को उठाते रहेंगे।
भाजपा को भी विरोधी दलों की इस रणनीति का बखूबी अहसास है इसलिए जानबुझकर खास रणनीति के तहत सरकार ने बातचीत और फैसले की पूरी प्रक्रिया में अब तक अपने आपको पर्दे के पीछे ही रखा और आने वाले दिनों में भी इस पर आक्रामक बयानबाजी से परहेज करने का ही फैसला किया है।

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