भोपाल। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा अभी से जमावट करने लगी है। फिलहाल पार्टी का पूरा फोकस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की 47 सीटों पर है। इन सीटों को साधने के लिए नए राज्यपाल मंगूभाई छगनभाई पटेल की नियुक्ति की गई है। संवैधानिक पद होने के नाते राज्यपाल का पार्टी की राजनीति में सीधा दखल नहीं रहता है, लेकिन जातिगत आधार पर एक बड़े वर्ग को यह संदेश जरूर दिया गया है कि उनके लोगों की पार्टी में बड़ी भूमिका है। इस माध्यम से वर्ष 2018 में भाजपा से रूठे आदिवासी वर्ग का विश्वास फिर से हासिल करने का मौका पार्टी को मिलेगा।
प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक (अनुसूचित जनजाति) लंबे समय से भाजपा के साथ रहा और भाजपा के सत्ता में रहने का बड़ा कारण था। प्रदेश में इस वर्ग की विधानसभा की कुल 230 में से 47 सीटें हैं। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर भाजपा को 31 सीटों पर जीत मिली थी। एक सीट पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी विजयी रहे थे। इस तरह कुल 32 सीटों पर पार्टी का कब्जा रहा और सरकार बनाई। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में यह वर्ग भाजपा से नाराज रहा और उसे दस सीटों का नुकसान हुआ। खासतौर पर मालवा-निमाड़ में काफी नुकसान हुआ। नतीजा यह रहा कि भाजपा बहुमत के आंकड़े से दूर रही और कांग्रेस को सरकार बनाने का मौका मिला।
यह फायदे भी होंगे भाजपा को
भाजपा में लंबे समय से बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश चल रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी चाहता था कि पार्टी में आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई सर्वमान्य नेता हो। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इसी का तोड़ राज्यपाल की नियुक्ति के तौर पर निकाला गया है। मंगू भाई पटेल को राजनीति का लंबा अनुभव है और वे दक्षिण गुजरात से प्रमुख आदिवासी नेता रहे हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी करीबी हैं। उधर, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर भी इसका लाभ पार्टी को मिलेगा। आलीराजपुर, झाबुआ सहित अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्र गुजरात की सीमा से लगे हैं। यहां के लोगों का रोजगार और अन्य कार्यों के लिए गुजरात आना-जाना काफी है। दोनों प्रदेशों के सीमावर्ती इलाकों की सांस्कृतिक समानता के कारण भी लोगों का जुड़ाव गुजरात के बड़े नेता के कारण राज्यपाल से रहेगा।
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