इंदौर: मध्यप्रदेश के इंदौर मैं टंट्या भील (Tantya Bhil in Indore) के बलिदान दिवस के मौके पर 4 दिसंबर को आदिवासियों का बड़ा समागम आयोजित (Organized a big gathering of tribals) किया जा रहा है. समागम में मध्य प्रदेश के 30 आदिवासी बाहुल्य जिलों से 2300 बसों में आदिवासियों को इंदौर लाया जा रहा है. यहां नेहरू स्टेडियम (Nehru Stadium) में आदिवासियों के इस समागम को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) संबोधित करेंगे. प्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए आदिवासी वोटबैंक (tribal vote bank) पर खासा फोकस किया जा रहा है. प्रदेश की 230 सीटों में एससी एसटी वर्ग के लिए 35 और आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. इतना ही नहीं करीब 84 सीटें ऐसी हैं, जिनपर आदिवासी वोट बैंक का खासा प्रभाव रहता है.
बता दें शौर्य का दूसरा नाम कहे जाने वाले आदिवासी टंट्या भील निमाड़ में बडौडा अहिर जगह के रहने वाले थे. वो अक्सर महू के पास पातालपानी में अंग्रेजों की रेल रोक लेते थे. उनसे पैसे और जेवरात लूटते और गरीबों में बांट देते. इसी के चलते उन्हें रॉबिनहुड कहा जाने लगा. आज भी समुदाए उन्हें मसीहा की तरह पूजता है. इसी कारण बीजेपी कई समय से आदिवासियों के हित में कई काम कर रही है.
साल 2018 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आदिवासी सीटों पर कड़ी शिकस्त मिली थी. इस हार का खामियाजा सत्ता गवाकर भुगतना पड़ा था. मध्यप्रदेश में 47 आदिवासी सीटें है, जिसमें से पिछले चुनाव में 30 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. इस नुकसान से ही बीजेपी सत्ता से बाहर हुई थी. ये दोबारा ना हो इसलिए बीजेपी आदिवासियों को अपने पाले में लाने की जुगत में है. अपनी पिछली भूल को सुधारने के लिए चुनाव से ठीक 1 साल पहले बीजेपी की शिवराज सरकार ने पेसा एक्ट लागू किया और आदिवासियों को रिझाने की भरपूर कोशिश की जा रही है.
मध्यप्रदेश में सत्ता की डगर को देखें तो पता चलता है कि जीत के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका SC-ST और आदिवासी वर्ग की होती है. प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में एससी वर्ग के लिए 35 और आदिवासी वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. इसके अलावा 84 विधानसभा सीटें हैं, जिसे जीतने की चाबी आदिवासियों के दिल से होकर ही जाती है. इनपर आदिवासियों का खासा दखल रहता है. इन्हें साधने के लिए पिछले कुछ समय से प्रदेश में दोनों दल कोशिशों में लगे हैं. इसी कड़ी में अब 4 दिसंबर को बड़ी संख्या में आदिवासी बाहुल्य जिलों से लोग इंदौर में जमा हो रहे हैं.
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