कर्नाटक में भी यही फार्मूला अपनाया था भाजपा ने
कल घोषित 39 सीटों के उम्मीदवारों में एक भी विधायक नहीं, 1 सीट पर बसपा तो बाकी पर है कांग्रेस का कब्जा, कैसे टूटेगा इन सीटों पर विपक्ष का तिलिस्म
इंदौर। संजीव मालवीय, जो असफल प्रयोग भाजपा ने कर्नाटक (Karnataka) में किया था, उसी को अब मध्यप्रदेश (MP) में भी किया जा रहा है। हालांकि पुरानी गलतियों से सबक लेकर इस प्रयोग को सफल करने के लिए दिल्ली (Delhi) वालों ने सारे सूत्र अपने हाथ में ले रखे हैं। जो सीटें कांग्रेस जीतती रही है, उसका तिलिस्म तोडऩा भाजपा (BJP) के लिए चुनौती है। इसी को लेकर कल भाजपा ने अपनी पहली सूची घोषित कर दी। सूची में एक भी भाजपा विधायक नहीं है और न ही कोई बड़ा दबंग नेता, जो कांग्रेस की सीटों को हिला सके। 39 में से एक सीट बसपा के पास है और बाकी बची 38 पर कांग्रेस के विधायक।
भाजपा (BJP) नवाचार के लिए जानी जाती है और नवाचार के माध्यम से ही वह आज विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करती है। भाजपा का संगठन मजबूत है और बूथ लेवल तक फैला हुआ है, लेकिन चुनाव के पहले ही उसी तरह की ए बी सी डी उसे करना पड़ती है, जो दूसरे राजनीतिक दल करते हैं, लेकिन इस बार जिस तरह की रणनीति भाजपा ने अपनाई है, उसने कांग्रेस सहित दूसरे दलों और राजनीतिक विश्लेषकों के सारे कयास को ध्वस्त कर दिया। फिलहाल 39 सीटों पर जिस तरह से भाजपा ने अपने टिकट घोषित किए हैं, उनमें एक भी सीट भाजपा के पास नहीं है और इन सीटों पर कांग्रेस के दिग्गज कब्जा जमाए बैठे हैं और इसलिए भाजपा उन्हें उनके ही क्षेत्र में बांधना चाहती है। चूंकि चुनाव में समय अभी है, तब तक उस विधानसभा का विश्लेषण करके वहां की आवश्यकताओं और सामाजिक गणित को फिक्स करने का मौका भी भाजपा और उसके उम्मीदवारों को मिल जाएगा। जैसे कि सोनकच्छ विधानसभा सीट से पार्टी ने जिलाध्यक्ष राजेश सोनकर को विधायक और पूर्व मंत्री सज्जनसिंह वर्मा के सामने उतारा है। वर्मा जैसे कद्दावर नेता से निपटना सोनकर के लिए चुनौती तो है, लेकिन इसके पीछे वर्मा को उनके ही क्षेत्र में रोकने की कोशिश भी है। यही स्थिति महेश्वर में विजयलक्ष्मी साधौ, कसरावद में सचिन यादव, लांजी में हिना कांवरे, गोटेगांव में नर्मदाप्रसाद प्रजापति, मुलताई में सुखदेव पांसे और झाबुआ में कांतिलाल भूरिया जैसे नामों के सामने बन रही है, ताकि कांग्रेस के दिग्गज अपने ही क्षेत्र में रहकर बंध रह जाएं और उन्हें दूसरी सीटों पर जाने का कोई मौका मौका नहीं मिले। पथरिया में बसपा की रामबाई विधायक हैं। इसी में भाजपा की चाल या रणनीति नजर आ रही है। इसी रणनीति को कर्नाटक में प्रयोग के रूप में उतारा था, लेकिन पांसा उलटा पड़ गया और वहां कांग्रेस की सरकार बन गई। इसके पीछे एक बड़ा कारण बड़े नेताओं के सामने कमजोर चेहरों को उतारना भी रहा। यही हाल कहीं प्रदेश में न हो जाए, क्योंकि कल घोषित नामों में कई नाम ऐसे हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस नेताओं के सामने टिक नहीं पाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो कहीं भाजपा का हाल कर्नाटक जैसा बेहाल न हो जाए।
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