– सियाराम पांडेय ‘शांत’
संबंधों की कड़ी जोड़ने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई जोड़ नहीं है। वह जहां कहीं भी जाते हैं, वहां से जुड़ा एक प्रसंग जरूर सुनाते हैं। बिना अध्ययन के ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है। अलीगढ़ और सीतापुर को तो उन्होंने अपने बचपन से जोड़ लिया। सीतापुर को उन्होंने आंखों के इलाज के लिए याद किया तो अलीगढ़ को वहां के तालों के लिए। जब उन्होंने यह कहा कि अलीगढ़ के ताले घरों की सुरक्षा करते हैं और यहां के बने अत्याधुनिक हथियार देश की सीमाओं की सुरक्षा करेंगे तो अलीगढ़ का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता है कि सम्मान की फसल काटने के लिए सम्मान के बीज बोने पड़ते हैं। सम्मान देकर ही सम्मान पाया जा सकता है। नरेंद्र मोदी से बेहतर इस मनोविज्ञान को और कोई नहीं जानता। अलीगढ़ में उन्होंने राजा महेंद्र सिंह विश्वविद्यालय की न केवल आधारशिला रखी बल्कि उत्तर प्रदेश के रक्षा औद्योगिक गलियारे के अलीगढ़ नोड का अवलोकन भी किया। साथ ही यह भी कहा कि राजा महेंद्र सिंह और राजा सुहेलदेव जैसे महापुरुषों को कुछ लोगों ने जान-बूझकर इतिहास के नेपथ्य में डाल दिया। इस बीच उन्होंने कल्याण सिंह को भी याद किया। ऐसा करके उन्होंने जाटलैंड का दिल तो जीता ही, अति पिछड़ा वर्ग के बीच भी सहानुभूतिक पैठ बनाने की कोशिश की। मुजफ्फरनगर के किसान सम्मेलन के बाद हुए अलीगढ़ दौरे में उन्होंने योगी सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए प्रयासों की मुक्तकंठ से सराहना की।
पॉम आयल के दाम बढ़ाने, गेहूं और सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के निर्णय तो केंद्र सरकार ने किसान सम्मेलन के दूसरे दिन ही कर दिए थे। मतलब किसान आंदोलन को धार को कुंद करने और किसानों को उसकी अहमियत का अहसास कराने का इससे बेहतर उपाय दूसरा कुछ हो भी नहीं सकता। भाजपा के अन्य नेता अगर किसान आंदोलन को चुनाव आंदोलन कह रहे हैं तो विपक्ष इस पर आक्षेप कर सकता है लेकिन राकेश टिकैत जब असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चचाजान कहते हैं और यह बताते हैं कि इसी वजह से ओवैसी के खिलाफ मुकदमे दर्ज नहीं होते तो साफ हो जाता है कि उनका आंदोलन पूरी तरह राजनीतिक है। उन्हें पता होना चाहिए कि हाल ही में आपत्तिजनक संभाषण के लिए ओवैसी के खिलाफ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में दो मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह जब यह कहते हैं कि किसान अपना आंदोलन हरियाणा में करें। दिल्ली में करें। पंजाब में नहीं क्योंकि उनके आंदोलन से पंजाब को नुकसान हो रहा है तो इससे पता चलता है कि किसान आंदोलन किसानों का कम, राजनीतिक दलों का अधिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर इस मुद्दे पर नहीं बोल रहे हैं और किसानों के हित के अहम निर्णय ले रहे हैं तो इसके पीछे उनकी एक ही सोच हो सकती है कि अपने मुंह से अपनी प्रशंसा क्या करनी या फिर विपक्ष के आरोपों के मकड़जाल में क्या उलझना,व्यक्ति के सत्कर्म उसकी प्रशंसा खुद करा लेते हैं। वह अपने काम से विपक्ष के समक्ष बड़ी रेखा खींचते जा रहे हैं, जिसे छोटी करना उनके लिए बड़ी चुनौती तो है ही।
अलीगढ़ के अपने कार्यक्रम से प्रधानमंत्री ने न केवल जाट राजनीति को साधने का काम किया है बल्कि राजा सुहेलदेव और राजा महेंद्र सिंह के जरिए पिछड़ा वर्ग को भी भाजपा के पाले में लाने की कोशिश की है। सर छोटूराम को भी अहमियत देने का काम भाजपा ने ही किया था। प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा है कि वर्ष 2017 से पहले उत्तर प्रदेश में शासन में गुंडों और माफियाओं की मनमानी चलती थी, लेकिन अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चीजें बदल गई हैं। ऐसे तत्व सलाखों के पीछे हैं। उन्होंने पिछली सरकार पर केंद्र सरकार की विकास योजनाओं में रोड़े अटकाने का भी आरोप लगाया है। योगी सरकार के विकास क्षेत्र में ईमानदार प्रयासों की भी उन्होंने मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। वे यह बताना और जताना भी नहीं भूले कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में गरीब की सुनवाई भी है और गरीब का सम्मान भी है। वायरस के इस संकट काल में गरीब की चिंता सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। गरीबों को भुखमरी से बचाने के लिए जो काम दुनिया के बड़े-बड़े देश नहीं कर पाए, वह आज भारत कर रहा है, यह हमारा उत्तर प्रदेश कर रहा है।
उन्होंने सुस्पष्ट किया है कि अलीगढ़ के डिफेंस कॉरिडोर में डेढ़ दर्जन कंपनियां 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश कर रही हैं, इससे हजारों नौकरियों के अवसर भी बनेंगे। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत देश को रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना इसका प्रमुख उद्देश्य है। बड़े पैमाने पर बुलेट प्रूफ जैकेट, ड्रोन, लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टर, तोप और उसके गोले, मिसाइल, विभिन्न तरह की बंदूकें आदि बनाने के लिए केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय ने अलग-अलग जिलों में डिफेंस कॉरिडोर की स्थापना का फैसला 2 साल पहले लिया था। 2018-19 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने देश में दो डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर बनाए जाने की घोषणा की थी। इनमें से पहला तमिलनाडु के 5 और दूसरा उत्तर प्रदेश के 6 शहरों में बन रहा है। यूपी में डिफेंस कॉरिडोर के 6 नोड अलीगढ़, आगरा, कानपुर, चित्रकूट, झांसी और लखनऊ में बन रहे हैं। अलीगढ़ में 15 कंपनियों को भूमि का आवंटन भी हो चुका है। इन्हें छोटे-छोटे उपकरणों की जरूरत भी होगी, जिसे पूरा करने के लिए छोटी- छोटी इकाइयां भी स्थापित होंगी। इससे अप्रत्यक्ष तौर पर भी रोजगार मिलेंगे।करीब 1500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार अलीगढ़ नोड में 19 औद्योगिक इकाइयां होंगी।
जानकार प्रधानमंत्री के अलीगढ़ दौरे को राजनीतिक तराजू पर तौल रहे हैं। उनका मानना है कि इस दौर प्रधानमंत्री पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड की सौ सीटों पर अपना ध्यान केंद्रित करके चल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं के बीच राजा महेंद्र सिंह का बड़ा सम्मान है। राजा महेंद्र ने ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए अपनी जमीन दी थी, लेकिन यूनिवर्सिटी में कहीं भी उनका नाम नहीं था। लंबे समय से जाट वर्ग के लोग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का नाम राजा महेंद्र सिंह के नाम करने की मांग कर रहे थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की मुस्लिम और दलितों के बाद सबसे बड़ी आबादी है। इस इलाके के 5 मंडलों आगरा, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद और आंशिक रूप से बरेली में जाट बेहद प्रभावी है। इनका असर करीब 100 विधानसभा सीटों पर भी है। प्रधानमंत्री ने जाट स्वाभिमान और जाटों के सरोकार का सम्मान करने का जो संदेश दिया है, उसने किसान आंदोलन के जरिए जाटलैंड में अपनी मजबूत पैठ की उम्मीद पाले विपक्ष को एकबारगी फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है।
पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का जन्म भी अलीगढ़ में हुआ था। कल्याण सिंह ओबीसी के बड़े नेता थे। राम मंदिर आंदोलन में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री ने अपने इस कार्यक्रम में कल्याण सिंह का नाम लेकर अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को भी साधने की कोशिश की है। अलीगढ़ और आस-पास के जिलों में जाटों के साथ ही लोधी मतदाताओं की भी बहुतायत है। कोरोना की दूसरी लहर के बाद प्रधानमंत्री का यह तीसरा यूपी दौरा है। इससे पहले वह 15 जुलाई को वाराणसी पहुंचे थे। दो महीने में प्रधानमंत्री ने दो बड़ी योजनाओं का शुभारंभ किया था और पूर्वांचल के लोगों से संवाद किया था। वाराणसी दौरे के समय प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल की 150 सीटों पर निशाना साधा था। इसके बाद कल्याण सिंह के निधन पर प्रधानमंत्री एक घंटे के लिए लखनऊ भी आए थे। इस कार्यक्रम के जरिए भी उन्होंने हिंदुत्व का संदेश दिया।
अलीगढ़ के इस कार्यक्रम के 12 दिन बाद यानी 26 सितंबर को प्रधानमंत्री राजधानी लखनऊ आ रहे हैं। यहां वे अर्बन कॉन्क्लेव में भाग लेंगे। प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों को उनके घर की चाभी देंगे। उनसे बात भी करेंगे। ऐसी संभावना है कि इस बार प्रधानमंत्री अयोध्या के दीपोत्सव में भी शामिल हो सकते हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसा करने के पीछे उनका मूल फोकस अवध की विधानसभा सीटों पर होगा। प्रधानमंत्री के हर महीने उत्तर प्रदेश के कोई न कोई कार्यक्रम लगे हुए हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की सौगात देने के लिए भी उन्हें उत्तर प्रदेश आना है। गंगा एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास, जेवर एयरपोर्ट, बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे जैसे योगी सरकार की योजनाओं के शिलान्यास और शुभारंभ के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश से संबद्ध रहेंगे। योजनाओं के शिलान्यास और लोकार्पण के बहाने ही वे उत्तर प्रदेश आएंगे और आएंगे तो दो शब्द कहना भी है। यही दो शब्द उत्तर प्रदेश में भाजपा को मजबूती देने का काम करेंगे।
प्रधानमंत्री की अलीगढ़ यात्रा वाले दिन ही जिस तरह नोएडा, लखनऊ, प्रयागराज और मुंबई में छापे मारकर पाकिस्तान में प्रशिक्षित 6 आतंकियों को पकड़ा गया है, वह यह साबित करने के लिए काफी है कि उत्तर प्रदेश और देश को अभी भाजपा की सख्त जरूरत है। भाजपा जहां माफियाओं की संपत्ति ढहा रही है, उसे जब्त कर रही है, वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया है कि उनकी सरकार बनी तो गरीबों के घरों पर बुल्डोजर चलाने वाले अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्हें उनकी जमीनें लौटाई जाएंगी। मतलब भाजपा ने माफियाओं के खिलाफ जितनी भी कार्रवाइयां की है, सब वापस ली जाएंगी। इसलिए भी जनता-जनार्दन को अपना फैसला सुनाने से पहले राजनीतिक दलों की नीति और नीयत पर भी विचार करना होगा। प्रधानमंत्री और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के उत्तर प्रदेश में होने वाले दौरे वर्ष 2022 के चुनाव के लिए भाजपा को मजबूती तो देंगे ही, भविष्य के नए भारत और यूपी की आधारशिला भी रखेंगे।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
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