नई दिल्ली। गुजरात में जातिगत समीकरणों के आधार पर सत्ता का रास्ता कितना आसान और कठिन होता है वह भाजपा के घोषित प्रत्याशियों की सूची से पता चलता है। भाजपा ने अब तक घोषित 160 प्रत्याशियों की सूची में एक चौथाई प्रत्याशी, तो सिर्फ एक जाति विशेष समुदाय के ही दिए हैं। इस समुदाय का गुजरात की राजनीति में जबरदस्त हस्तक्षेप है।
हालांकि यह बात अलग है कि इनकी संख्या गुजरात में उतनी नहीं है, लेकिन प्रभाव इनकी संख्या बल से कहीं ज्यादा ही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा ने जिस तरीके से पिछले साल पूरी कैबिनेट को बदलकर नई कैबिनेट सजाई थी, उससे जातिगत समीकरणों के साथ हुई छेड़छाड़ के बाद तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही थीं। लेकिन भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा के साथ चुनावी बिसात पर जातिगत मोहरे तो सजा ही दिए हैं।
42 टिकट पाटीदार समुदाय से जुड़े लोगों को
सौराष्ट्र इलाके में होने वाले विधानसभा के पहले चरण के चुनाव में भाजपा ने जातियों की बिसात पर राजनीतिक गुणा गणित से पूरा खाका तैयार कर दिया है। पार्टी ने सौराष्ट्र के सबसे मजबूत पाटीदार समुदाय को ढंग से साधा है। भाजपा ने अपने अब तक के घोषित 160 प्रत्याशियों में से एक चौथाई टिकट पाटीदार समुदाय से जुड़े नेताओं को दिए हैं। भाजपा ने तकरीबन 42 पाटीदार समुदाय से जुड़े युवा और पुराने नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है।
जबकि, इसके अलावा 13 प्रत्याशी ब्राह्मण, 13 कोली समुदाय और 14 क्षत्रिय समेत 14 ठाकोर समाज के नेताओं को चुनावी समर में हाथ आजमाने के लिए मौका दिया है। राजनीतिक विश्लेषक ओंकार भाई दवे कहते हैं कि भाजपा ने बहुत सधे हुए तरीके से गुजरात के चुनाव में प्रत्याशियों का चयन किया है। वे कहते हैं कि जातिगत समीकरणों के आधार पर भाजपा ने अच्छी फील्डिंग सजाई है। खासतौर से सौराष्ट्र इलाके में पाटीदार कोली समुदाय के लोगों को ठीकठाक टिकट दिए गए हैं।
दवे कहते हैं कि भाजपा ने पिछले साल जब मुख्यमंत्री से लेकर उपमुख्यमंत्री और तमाम बड़े नेताओं को अपनी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाया, तो गुजरात के राजनीतिक हल्के में बड़ा तूफान उठा। वह कहते हैं यह तूफान तो उठना ही था। इसकी वजह बताते हुए उनका कहना है कि भाजपा आलाकमान को गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों के परिणाम की आहट का आभास होने लगा था।
दवे कहते हैं कि पार्टी के बड़े नेताओं को अहसास था कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यही वजह रही कि तमाम जातिगत समीकरणों को दरकिनार करते हुए पूरी की पूरी कैबिनेट को बदल दिया गया। सियासी जानकारों का कहना है कि इतने बड़े कदम के बाद भाजपा नेतृत्व ने गुजरात में जब अपनी दूसरी कैबिनेट दी, तो जातिगत समीकरणों को बेहतर तरीके से साधा। लेकिन तब तक चुनाव का वक्त भी नजदीक आ गया था। ऐसे में नई कैबिनेट में जातिगत समीकरणों के आधार पर बनाए गए मंत्रियों और अन्य नेताओं की जनता के बीच पकड़ का टेस्ट एंड ट्रायल उतना मजबूती से हो पाएगा या नहीं, इसे लेकर सियासी गलियारों में तमाम तरह की शंकाएं जताई जा रही थीं।
त्रिकोणात्मक लड़ाई का संकेत
गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश दोशी कहते हैं कि भाजपा ने जातिगत समीकरणों को सोते हुए जो फील्डिंग सजाई है और निश्चित तौर पर उनका अपना किया हुआ होमवर्क है। हालांकि दोषी कहते हैं कि कांग्रेस की अब तक जो लिस्ट आई है और आम आदमी पार्टी ने जिस तरीके से प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है, वह पूरे गुजरात में त्रिकोणात्मक लड़ाई का संकेत दे रहे हैं। उनका कहना है कि चुनावी मैदान में सबसे ज्यादा प्रत्याशियों को उतारने के लिहाज से भाजपा के लिए ही चुनौती थी।
यही वजह रही कि पार्टी ने 38 वर्तमान विधायकों को मैदान में ही नहीं उतारा। जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और कई मंत्रियों से लेकर बड़े-बड़े नेताओं के नाम शामिल हैं। गुजरात में पाटीदार आंदोलन की अगुवाई करने वाले अमरेली जिले के सुरेश भाई चोकसी कहते हैं कि कोली और पाटीदार समुदाय गुजरात में सबसे प्रभावशाली है, बल्कि राजनैतिक दशोदिशा बदलने की भी हैसियत रखता है। यही वजह है कि भाजपा ने 160 प्रत्याशियों में से 55 प्रत्याशी इसी समुदाय के उतारे हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि समीकरणों से लेकर तमाम तरीके की गुणा गणित उनकी पार्टी नहीं लगाती है। उनका कहना है गुजरात में उन लोगों को टिकट दिया गया है, जो समाज के अंतिम पायदान पर खड़े हुए व्यक्ति और समुदाय से जुड़े हुए लोग हैं। यही वजह है कि पार्टी ने नए प्रत्याशियों पर न सिर्फ भरोसा जताया, बल्कि पुराने प्रत्याशियों के अनुभव और उनके मार्गदर्शन में जीत के लिए चुनावी रणनीति बनाकर मैदान में उतारा गया है।
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