इंदौर। संजीव मालवीय प्रदेश भाजपा (BJP) में कार्यकर्ताओं (workers) में जोश नहीं आना, नेताओं (leaders) को निर्देश देकर उसकी समीक्षा नहीं करना, जनप्रतिनिधियों द्वारा दौरे नहीं करना और भी कई ऐसे बिंदु सामने आ रहा हैं, जिनके कारण प्रदेश में मतदान (vote) का प्रतिशत गिरा है। पार्टी विथ डिफरेंस (party with difference) , दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और अपने कार्यकर्ताओं को देवतुल्य मानने वाली भाजपा में समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी होती जा रही है।
प्रदेश की 12 सीटों पर हुए मतदान के कम प्रतिशत ने भाजपा नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इसको लेकर स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक मंथन शुरू हो गया है और आने वाले चरणों में ऐसी गड़बड़ी न हो, इसको लेकर अभी से ही तैयारियां शुरू हो गई हैं। प्रदेश की ही स्थिति का आकलन किया जाए तो जिस तरह से पिछले साल भाजपा विपरित परिस्थितियों के बाद सत्ता में आई, उसने कार्यकर्ताओं की पूछपरख फिर कम कर दी। माना जा रहा था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन रही है, लेकिन जब परिणाम आए तो वे अप्रत्याशित ही थे। एक बड़ा कारण यह भी है कि लगातार पांचवीं बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है, जिससे बड़े नेता फीलगुड महसूस कर रहे हैं, लेकिन कार्यकर्ता वहीं का वहीं खड़ा हुआ है। हालांकि भाजपा चुनावी कसरत पूरे समय करती रहती है, बावजूद उसके इस बार कम हुए मतदान ने बड़े नेताओं की नींद उड़ा दी है और ऊपर से गृहमंत्री अमित शाह के उस बयान ने उन विधायकों और मंत्रियों को चिंता में डाल दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि अगर कम मतदान हुआ तो मंत्री पद जाएगा।
कांग्रेस में है केडर का अभाव
कहने को भाजपा केडरबेस पार्टी है, लेकिन अब उसमें केडर स्तर पर ही सामंजस्य का अभाव देखा जा रहा है। जिस तरह से कांग्रेस चुनाव आने पर सक्रिय होती है, उसी तरह अब भाजपा का कार्यकर्ता चुनावी मोड में ही एक्टिव रहता है। वैसे संगठन की गतिविधि हमेशा एक तरह की चलने का दावा तो भाजपा में किया जाता है, लेकिन कुछ ज्यादा काम देने की वजह से अब यहां कार्यकर्ता भी दूर भागने लगे हैं। जो जनप्रतिनिधि हो गए हैं, वे नीचे के कार्यकर्ताओं पर ध्यान न देकर प_ावाद में घिरे रहते हैं और सक्रिय कार्यकर्ता निराश हो जाता है।
सोशल मीडिया के कारण व्यक्तिगत संपर्क से दूर
जब से पार्टी में सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है, उसने उन कार्यकर्ताओं और पदाधिकाािरयों को निष्क्रिय-सा कर दिया है, जो पहले घर-घर जाकर लोगों से मिलते थे। कभी चाय तो कभी भोजन के बहाने वे अपने कार्यकर्ताओं के घर जाते थे और वहां आसपास के लोगों को बुलाकर सामाजिक संवाद होता था। अब हर जगह सोशल मीडिया है। अगर कोई सूचना भी देना हो या कार्यकर्ताओं से संपर्क करना हो तो मैसेज डाल दिया जाता है, लेकिन उसकी कोई मॉनिटरिंग नहीं की जाती।
बंद कमरे में बैठकर देते हैं निर्देश
आजकल भाजपा के नेता भी ऐसे हो गए हैं कि वे केवल बंद एसी कमरे में बैठकर निर्देश दे देते हैं। भाजपा ने चुनाव की व्यूह रचना को दूसरे क्षेत्र के नेताओं को सीटों का प्रभारी बनाकर भेजा है। यहां तक कि प्रभारी पर प्रभारी और संयोजकों की एक लंबी सूची है। प्रदेश और केन्द्र से निर्देश तो जारी हो जाते हैं, लेकिन उसका पालन निचले स्तर पर कितना हो रहा है, यह कोई नहीं देखता। हाल ही में लालवानी की नामांकन रैली में पार्षदों को भीड़ लाने के लिए कहा गया था, लेकिन पार्टी के 65 पार्षद, 8 विधायक, एक सांसद, एक जिला पंचायत अध्यक्ष मिलकर भी 6500 कार्यकर्ता इक_ा नहीं कर पाए।
कार्यकर्ता के घर के बजाय होटलों में रहते हैं पदाधिकारी
भाजपा में जब संभागीय और जिला संगठन मंत्री का पद हुआ करता था तो ऐसे पदाधिकारी आरएसएस से आते थे। उनका मुख्यालय भाजपा कार्यालय हुआ करता था और कभी-कभी तो प्रवास के दौरान वे कार्यकर्ताओं के ही घर रूककर सामाजिक तानाबाना समझते थे। अब जो प्रभारी और संयोजक बनाए जाते हैं, वे होटलों में रुकते हैं, वहीं मीटिंग करते हैं। इस तरह से सामाजिक संपर्क लोगों से टूट जाता है।
कार्यकर्ताओं को उपकृत नहीं कर पाना
कार्यकर्ताओं में काम के प्रति उदासीनता का एक बड़ा कारण उन्हें उपकृत नहीं करने के रूप में भी सामने आ रहा है। इंदौर शहर की ही बात कर ली जाए तो यहां इसी साल झोन अध्यक्षों की नियुक्ति की गई, लेकिन पिछले कई सालों से एल्डरमैन नहीं बना पाए। आईडीए का संचालक मंडल भी कई सालों से नहीं बनाया गया है, जिसमें कार्यकर्ताओं को उपकृत किया जा सके। पार्षद चुनाव में भी नेताओं के आगे-पीछे घूमने वाले लोग अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे और समर्पित तथा निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई।
अब आगे पार्टी की ये है रणनीति
इंदौर लोकसभा सीट पर दो मंत्री, 8 विधायक सत्ता में हैं। नगर निगम, जिला पंचायत भी भाजपा के पास है, ऐसे में अगर यहां वोटिंग प्रतिशत गिरता है तो बड़े नेताओं की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो सकता है। संगठन ने सभी को निर्देश दिए हैं कि अपने-अपने क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत ज्यादा से ज्यादा हो, इसके प्रयास अभी से ही शुरू कर दिए जाएं। प्रदेश में अब अगले महीने ही दो चरणों में मतदान होना है। पार्टी ने इंदौर क्लस्टर का प्रभारी उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा को बनाया है तो राज्यसभा सदस्य सुमेरसिंह सोलंकी को लोकसभा प्रभारी की जवाबदारी दी है। इसके अलावा ग्वालियर से विस्तारक के रूप में अनुज दुबे पिछले कई महीनों से यहां रह रहे हैं, वहीं वरिष्ठ नेताओं की भारी-भरकम फौज चुनाव प्रबंधन कमेटी के रूप में भी तैनात है, जिसमें संघ से आए गोपाल गोयल, अशोक अधिकारी भी शामिल हैं।
गर्मी का मौसम भी बना बड़ा कारण
बड़े नेता इसे गर्मी और शादी-ब्याह का मौसम बताकर बचना चाह रहे हैं, लेकिन इंदौर जैसी सीट पर पिछली बार 19 मई को मतदान हुआ था और मतदान का आंकड़ा 69 प्रतिशत के ऊपर पहुंचा था, वहीं देपालपुर विधानसभा में कांग्रेस का विधायक होने के बावजूद यहां मतदान का प्रतिशत 76 तक पहुंचा था और भाजपा के लालवानी यहां से करीब 80 हजार वोटों से जीते थे। इस बार मतदान 13 मई को होना है और इस बार शादी-ब्याह की तारीख भी नहीं है। अगर कम मतदान का बहाना बनाया जाता है तो उसका ठीकरा बढ़ते तापमान पर फोड़ा जा सकता है।
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