भोपाल। आमतौर पर नगर पालिका और नगर परिषद के चुनाव को राजनीतिक दल खास अहमियत नहीं देते मगर इन दिनों प्रदेश में होने वाले नगर परिषद और नगर पालिका के चुनाव खासे महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले के यह सियासी तौर पर बड़े चुनाव माने जा रहे हैं। इन चुनावों की हार-जीत के पीछे बड़े सन्देश छुपे हुए हैं। दरअसल, इन चुनावों के माध्यम से पार्टियां आदिवासियों को साधने में जुटी हुई हैं। इसलिए दिग्गज नेताओं को चुनावी मैदान में उतार दिया गया है। गौरतलब है कि राज्य में 18 जिलों के 46 नगरीय निकायों में 27 सितंबर को मतदान होना है। सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष कांग्रेस दोनों के लिए यह चुनाव खासे महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं, इसकी वजह इनमें से अधिकांश क्षेत्रों के आदिवासी बाहुल्य वाला होना है। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल इन 46 नगरीय निकायों के चुनाव को लेकर पूरी तरह सतर्क है और वे एक कारगर रणनीति बनाकर काम भी कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा लगातार सक्रिय हैं। वहीं कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी मोर्चे पर डटे हुए हैं।
छोटे चुनाव से आएगा बड़ा संदेश
राज्य में आदिवासी वोट बैंक को कांग्रेस अपना वोट बैंक मानकर चलती है और यही कारण है कि पार्टी इन इलाकों में अपनी जीत की उम्मीद लेकर चल रही है वहीं दूसरी ओर भाजपा को भरोसा है कि केंद्र और राज्य सरकार ने आदिवासियों के जीवन में बदलाव लाने के लिए जो योजनाएं चलाई हैं उसके चलते भाजपा को इन इलाकों में सफलता मिलेगी। दोनों ही राजनीतिक दल अपनी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं, मगर इन चुनावों के नतीजों का बड़ा संदेश रहने वाला है। इसकी वजह भी है क्योंकि राज्य में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और इन चुनावों की हार जीत का आदिवासी वर्ग में बड़ा संदेश जाएगा। नगरीय निकायों के यह 46 क्षेत्र राज्य के 18 जिलों में आते हैं जो आदिवासी बाहुल्य हैं।
आदिवासियों का मूड आंकने का मौका
ये चुनाव छोटे हैं और इनसे किसी राजनीतिक दल की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला है, पर ये चुनाव इस बात का संदेश देंगे कि प्रदेश में आदिवासी मतदाताओं का रूझान किस ओर है। यहीं वजह है कि भाजपा व कांग्रेस चुनाव. प्रत्याशियों और उनके समर्थकों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है। दिग्गज मैदान में उतर गए हैं। एक तरफ जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा निकाय चुनाव में प्रचार का मोर्चा संभाले हुए हैं, वहीं कांग्रेस नेताओं को जिम्मेदारी पार्टी जिलाध्यक्षों और स्थानीय सौंप रखी है। वीडी शर्मा रोजाना निकाय संबंधित जिलों के अध्यक्षों से चुनाव का फीडबैक लेने के साथ ही किसी न किसी नगरीय निकाय में पार्टी के पार्षद प्रत्याशियों के पक्ष में चुनाव प्रचार करने पहुंच रहे हैं। वहीं, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी सक्रिय हैं हालांकि वे अब तक सिर्फ बड़वानी जिले में ही चुनाव प्रचार गए हैं। वे फोन पर ही स्थानीय नेताओं से चुनाव संबंधी फीडबैक ले रहे हैं। कांग्रेस के स्थानीय नेता ही चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव संबंधी अन्य फैसले स्वयं कर रहे हैं। इन निकायों में चुनाव 27 सितंबर को सुबह 7 से शाम 5 बजे तक होंगे। प्रदेश के जिन नगरीय निकायों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से अधिकतर निकाय आदिवासी बहुल हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से मलाजखंड में करीब 13 महीने पहले होने जा रहे इन निकाय चुनावों का परिणाम तय करेगा कि शहरी क्षेत्रों के आदिवासी देव मतदाताओं का रुख किस तरफ है। यही वजह है कि भाजपा का पूरा फोकस इन चुनावों पर है। प्रदेश भाजपा अधिक से अधिक सीटें जीतकर पार्टी हाईकमान को संदेश देना चाहती है कि प्रदेश के आदिवासी मतदाताओं पर उसकी पकड़ मजबूत है।
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