नई दिल्ली (New Delhi) । राजनीतिक दलों (Political parties) के चुनावी वादे और गारंटियों की जीत में अहम भूमिका होती है। कोई भी पार्टी चुनावी घोषणा में किसी से पीछे नहीं रहना चाहती। राजस्थान (Rajasthan) और छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में सत्तारूढ़ कांग्रेस (Congress) और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में भाजपा (BJP) की सरकार एक के बाद एक योजना का ऐलान करने में जुटी है। ताकि, कुछ माह बाद होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में लोगों का भरोसा जीता जा सके।
मध्य प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभा चुनाव में कर्नाटक चुनाव का असर साफ नजर आएगा। कांग्रेस जहां कर्नाटक मॉडल को आधार बनाकर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है, वहीं भाजपा भी चुनावी गारंटियों में कांग्रेस से होड़ लगाती दिख रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक के बाद एक कई चुनावी वादों का ऐलान किया है।
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस दूसरी चुनावी गारंटियां दे रही है। कर्नाटक में तय वक्त के अंदर अपनी सभी पांच गारंटियों को लागू कर पार्टी यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह जो वादा करती है, उसको पूरा करती है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार में है, ऐसे में पार्टी ने कई योजनाओं को लागू किया है। इसके साथ कई और वादे करने की तैयारी है।
रणनीतिकार मानते हैं कि चुनाव के दौरान किए गए वादे सियासी पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं को मासिक भत्ता, मुफ्त बस यात्रा, मुफ्त बिजली, मुफ्त अनाज योजना, किसान सम्मान निधि और मुफ्त एलपीजी सिलेंडर गेमचेंजर साबित हुए हैं। कर्नाटक में पांच गारंटियों ने कांग्रेस को शानदार जीत दिलाते हुए सत्ता तक पहुंचा दिया।
ऐसा नहीं है कि चुनावी वादों ने सिर्फ हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनाव में अहम भूमिका निभाई है। इससे पहले हुए कई राज्यों के चुनावों में भी मुफ्त योजना सफल रही है। दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी और तमिलनाडु में डीएमके को स्पष्ट बहुमत मिला है। इसलिए, लगभग सभी राजनीतिक दल चुनाव में मतदाताओं को भरोसा जीतने के लिए गारंटियां देती हैं।
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