नई दिल्ली (New Delhi) । कर्नाटक (Karnataka) की चुनावी जंग में भाजपा अपने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Chief Minister Basavaraj Bommai) के नेतृत्व में चुनाव मैदान में तो उतरेगी, लेकिन उनको भावी सरकार के चेहरा बताने से बचेगी। उसका मानना है कि इस रणनीति से वह विभिन्न सामाजिक समुदायों का समर्थन हासिल कर सकेगी। दरअसल, पार्टी इस समय अपने समर्थक माने जाने वाले लिंगायत समुदाय (Lingayat community) के साथ राज्य के दूसरे प्रभावी वोक्कालिगा समुदाय (Vokkaliga community) में भी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के पद से हटने के बाद उनकी सहमति से ही बसवराज बोम्मई को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था। बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से आते हैं, जिसके सबसे बड़े नेता के रूप में येदियुरप्पा जाने जाते हैं। भाजपा को लगता है कि चुनाव अभियान में उनको आगे रखने से ज्यादा लाभ मिलेगा। राज्य विधानसभा में अपने संभवत: आखिरी और विदाई भाषण में उन्होंने जिस तरह से पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई और उनके भाषण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो तारीफ कर ट्वीट किया, उसके भी राजनीतिक मायने काफी अहम हैं।
अब भी येदियुरप्पा है जरूरी
साफ है कि भाजपा अब भी येदियुरप्पा के सहारे है और उनके रहते वह किसी और नेता को राज्य का नेतृत्व नहीं सौंप सकती है, भले ही वह किसी पद पर रहें या नहीं। यही वजह है कि उनको पार्टी ने अपने सर्वोच्च नीति निर्धारक निकाय केंद्रीय संसदीय बोर्ड में भी शामिल किया हुआ है। हालांकि बीच बीच में येदियुरप्पा के बेटों को लेकर चर्चाएं होती रही है कि उनको आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है, लेकिन फिलहाल वह भी इस मुद्दे को तूल देने के मूड में नहीं हैं। दूसरी तरफ राज्य के सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए पार्टी जिस रणनीति पर चल रही है, उसमें चुनावी राजनीति से दूर हो चुके पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा को चुनाव अभियान की अगुआई सौंप रखी है।
बोम्मई से भी मिल सकता है लाभ
बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पीछे एक बड़ी वजह लिंगायत समुदाय को यह संदेश देना था कि पार्टी उसको पूरा सम्मान दे रही है। इसके अलावा बोम्मई चूंकि समाजवादी पृष्ठभूमि से आते हैं और उनके पिता एसआर बोम्मई भी जनता दल से मुख्यमंत्री रह चुके हैं, ऐसे में इस चुनाव में वह समाजवादी खेमे खासकर जद एस के समर्थक वर्ग में सेंध लगा सकते हैं। हालांकि इसका खुलासा तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही हो सकेगा।
वोक्कालिगा पर नजर
भाजपा की कोशिश इस बार वोक्कालिगा समुदाय में पैठ बढ़ाने की है। राज्य की भाजपा सरकार में आधा दर्जन से ज्यादा मंत्री इसी समुदाय के हैं। पार्टी ने दूसरे दलों के प्रमुख वोक्कालिगा नेताओं को सरकार में अहमियत भी दी है। पूराना मैसूर क्षेत्र में इस समुदाय का प्रभाव है और वही भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी है। ऐसे में अगर बोम्मई के चेहरे पर सीधे दांव लगाया जाता है तो उसे दोहरे नुकसान की आशंका है। एक तो येदियुरप्पा पीछे चले जाएंगे और दूसरा उसके सामाजिक समीकरण बिगड़ जाएंगे।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved