नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi assembly elections) में अब कुछ ही महीने बाकी रह गए है। ऐसे में बीजेपी (BJP), कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) जीत की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। इस बीच दिल्ली बीजेपी के नेता एक खास मांग कर रहे हैं। पार्टी के एक नेता ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आप और कांग्रेस पर बढ़त हासिल करने के लिए बीजेपी (BJP) अपने उम्मीदवारों की जल्द घोषणा कर सकती है। दिल्ली के पूर्व पार्टी प्रमुख ने बताया कि राजस्थान के रणथंभौर (Ranthambore) में आयोजित दिल्ली भाजपा की विस्तारित कोर कमेटी की ‘चिंतन बैठक’ में भी इस मुद्दे पर चर्चा की गई थी।
उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों के सिलेक्शन और नामों की घोषणा का मुद्दा पार्टी के एक सांसद समेत कुछ नेताओं ने उठाया था। उन्होंने कहा था कि उम्मीदवारों की जल्द घोषणा से पार्टी को चुनाव प्रचार में फायदा होगा।
उन्होंने कहा कि भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व दिल्ली भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं की इस मांग से अवगत है। बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत जय पांडा को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त किए जाने के बाद इस मांग ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया है। गाजियाबाद से बीजेपी सांसद अतुल गर्ग सह प्रभारी होंगे।
दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस बार दिल्ली में बीजेपी की वापसी की अच्छी संभावना है। उम्मीदवारों की जल्द घोषणा से आम आदमी पार्टी के खिलाफ चुनाव प्रचार को गति मिलेगी। हालांकि इस पर आखिरी फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व का होगा।
पार्टी के अंदर अलग-अलग राय
उधर भले ही दिल्ली भाजपा नेताओं का एक वर्ग टिकटों की जल्द घोषणा की मांग कर रहा है लेकिन वहीं एक अन्य वर्ग का मानना है कि यह कदम पार्टी को फायदा दिलाने के बजाय परेशानी में डाल सकता है। दिल्ली बीजेपी के एक नेता ने कहा इससे अनुभवी कार्यकर्ताओं और नेताओं के एक बड़े वर्ग में नाराजगी पैदा हो सकती है, जिन्हें चुनाव से बहुत पहले टिकट नहीं दिया गया और इस तरह पार्टी को नुकसान होगा। इसके अलावा, उम्मीदवारों के लिए अधिक समय उपलब्ध होने का मतलब लंबे समय तक अभियान और ज्यादा संसाधनों की भी जरूरत होगी।
दिल्ली भाजपा के कुछ नेताओं ने कहा कि इस साल की शुरुआत में दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों की घोषणा चुनाव की तारीखों की घोषणा से दो सप्ताह पहले की गई थी। उन्होंने बताया कि यह पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि उम्मीदवारों को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिला और आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन के बावजूद उनमें से सभी सातों ने जीत हासिल की। 15 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटने की घोषणा करते समय केजरीवाल ने झारखंड और महाराष्ट्र के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव कराने का विचार रखा था।
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