नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के लिए बिछ रही सियासी बिसात पर सत्तापक्ष और विपक्ष ने अपने-अपने दांव चल दिए हैं. एक तरफ विपक्ष की 26 पार्टियों ने मंगलवार को इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस (INDIA) का गठन किया तो दूसरी तरफ बीजेपी ने 38 दलों के साथ बैठक कर शक्ति प्रदर्शन किया. इस तरह गठबंधन के नंबरगेम नैरेटिव में बीजेपी ने छोटे-छोटे दलों को जोड़कर NDA का कुनबा जरूर बढ़ा लिया है, लेकिन 2024 के चुनाव में सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग करना आसान नहीं होगा. इतना ही नहीं एनडीए के साथ जुड़े छोटे-छोटे दलों को चुनावी किस्मत आजमाने के लिए क्या सीटें भी मिल पाएंगी या फिर गठबंधन का हिस्सा ही बने रहेंगे?
बीजेपी के सहयोगी दल
एनडीए की मंगलवार को दिल्ली में हुई बैठक में बीजेपी सहित 39 दलों के नेताओं ने शिरकत किया. एनडीए में बीजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), एनसीपी (अजीत), अपना दल (एस), एलजेपी (पारस), एलजेपी (रामविलास), सुभासपा, निषाद पार्टी, आजसू, एआईएडीएमके, जेजेपी, एनपीपी, एनडीपीपी, एसकेएम, आरपीआई, पीएमके, आईएमकेएमके, एमएनएफ, एनपीएफ, आईपीएफटी (त्रिपुरा), बीपीपी, एमजीपी, एजीपी, निषाद पार्टी, यूपीपीएल, केरल कांग्रेस (थामस), हम, एआईआरएनसी, जनसेना, यूडीपी, टीएमसी (तमिल मनीला कांग्रेस), शिरोमणि अकाली दल सयुंक्त, आरएलएसपी, बीडीजेएस (केरल), गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट, जनातिपथ्य राष्ट्रीय सभा, यूडीपी, एचएसडीपी, प्रहार जनशक्ति पार्टी और जन सुराज पार्टी हैं. इस तरह बिहार से लेकर महाराष्ट्र और असम तक एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे का पेच फंस सकता है?
महाराष्ट्र में सीट शेयरिंग कैसे होगा
महाराष्ट्र में बीजेपी के गठबंधन का दायरा काफी बढ़ा हो गया है. बीजेपी के सहयोगी दल के तौर पर शिवसेना (शिंदे), एनसीपी (अजीत पवार), आरपीआई, जन सुराज पार्टी, प्रहार जनशक्ति पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी शामिल हैं. महाराष्ट्र में कुल 48 लोकसभा सीट है. 2019 में बीजेपी और शिवसेना के बीच सीट बांटी गई थी, लेकिन इस बार एनडीए में कई और भी दल शामिल हो गए हैं. अजित पवार और शिंदे खेमा अपने-अपने लिए अच्छी खासी सीटों की डिमांड रख सकते हैं.
इसके अलावा आरपीआई, सुराज, प्रहार और गोमांतक जैसी छोटी पार्टियां भी एनडीए में होने के चलते सीटों की मांग करेंगी. ऐसे में बीजेपी सभी सहयोगी दलों के साथ कैसे सीट शेयरिंग पर सहमति बनाएगी. वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव) एनसीपी (शरद) के साथ पहले से ही गठबंधन कर रखा है, जिसके चलते बीजेपी के सामने 2024 में बड़ी चुनौती है. देखना है कि एनडीए कैसे सीट का फॉर्मूला निकालती है और क्या उस पर सभी सहयोगी दल सहमत होंगे?
बिहार में कैसे होगी सीट बंटवारा
बिहार में भी बीजेपी ने छोटे-छोटे दलों के साथ हाथ मिलाकर अपना सियासी कुनबा बढ़ा लिया है. एलजेपी के दोनों धड़े एनडीए का हिस्सा है, चिराग पासवान और पशुपति पारस एनडीए की बैठक में भी शिरकत किए थे. इसके अलावा जीतनराम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी का बीजेपी के साथ गठबंधन है. 2019 में बीजेपी ने जेडीयू और एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, लेकिन इस बार नीतीश कुमार विपक्षी खेमे का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में बीजेपी बिहार में छोटे-छोटे दलों के साथ अपना गठबंधन बढ़ा लिया है, लेकिन सीट बंटवारे का फॉर्मूला क्या होगा.
बीजेपी की मंशा है कि पशुपति और चिराग समझौता करके एक हो जाएं, लेकिन इसके लिए चाचा-भतीजा दोनों तैयार नहीं. चिराग पासवान चाहते हैं कि 2019 के तहत उनकी पार्टी को छह लोक सभा सीटें और एक राज्यसभा सीट की डिमांड कर रहे हैं. ऐसे ही पशुपति पारस भी सीट को मांग कर रहे हैं. इस विवाद को सुलझाना बीजेपी की बड़ी चुनौती होगी. चिराग पासवान और पशुपति पारस के बीच पहले से ही हाजीपुर सीट को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है और अब मांझी से लेकर कुशवाहा तक को साधकर रखने की चुनौती बीजेपी के सामने होगी.
हरियाणा और झारखंड में क्या होगा
हरियाणा में बीजेपी का जेजेपी के साथ तो झारखंड में आजसू के साथ गठबंधन है. हरियाणा में बीजेपी सभी लोकसभा सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का दाम भरी रही है, लेकिन अब जेपेपी भी साथ है तो उसे भी सीट छोड़नी होगी. जेजेपी के दस विधायक हैं, जिसके चलते वो दो सीट की डिमांड कर सकती है. जेजेपी के जिन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है, उन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. ऐसे में बीजेपी क्या अपनी जीती हुई सीटें छोड़ेगी. ऐसे ही झारखंड में भी बीजेपी को सीट शेयरिंग के लिए दिक्कत हो सकती है. बीजेपी को झारखंड में आजसू के साथ सीट बंटवारा करना है. आजसू कम से कम 1 सीट पर मानेगी, क्योंकि उसका आधार राज्य में ठीक-ठाक है.
यूपी में कैसे बनेगी सीट पर बात
उत्तर प्रदेश में बीजेपी के साथ अभी तक महज एक सहयोगी अपना दल (एस) थी, लेकिन अब तीन दल हो गए हैं. अपना दल (एस) निषाद पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा. बीजेपी पिछले दो चुनाव से 80 में से 78 सीट पर खुद चुनाव लड़ती रही है और दो सीटें अपना दल को देती आ रही. इस बार तीन सहयोगी दल के बीच सीट बंटवारा बीजेपी को करना होगा, जिसमें बीजेपी को ही अपने कोटे से सीट देनी होगी. इस तरह बीजेपी 2014 और 2019 से कम सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा.
निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद 2019 में अपने बेटे को जरूर बीजेपी के टिकट पर लड़ाने के लिए सहमत हो गए थे, लेकिन इस बार वो सीटों की डिमांड कर सकते हैं. ऐसे ही सुभासपा को भी सीट देनी है. माना जा रहा है कि तीनों सहयोगी दलों को दस सीटें मिल सकती है. इसके अलावा आरएलडी को साथ लेने की चर्चा है. ऐसे में जयंत चौधरी एनडीए का हिस्सा बनते हैं तो उन्हें भी सीटें देनी पड़ सकती है. हालांकि, जयंत अभी विपक्षी खेमे के साथ हैं.
तमिलनाडु में बीजेपी के साथ कई दल
बीजेपी ने तमिलनाडु में कई दलों के साथ गठबंधन कर रखा है, जिनके साथ सीट बंटवारा आसान नहीं है. बीजेपी का तमिलनाडु में एआईएडीएमके, पीएमके, पीटी एक, पीएनके, तमिल मनीला कांग्रेस, डीएमडीके जैसे दलों के साथ गठबंधन है. पिछले चुनाव में एआईएडीएमके ने बड़े भाई की भूमिका में थी और 20 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस बार बीजेपी उन्हें इतनी सीटें देने के मूड में नहीं है और साथ ही सभी सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे का पेच फंस सकता है.
पूर्वोत्तर में सीट बंटवारे का पेच होगा
असम में भी बीजेपी के साथ कई सहयोगी दल हैं, जिसमें असम गण परिषद, बीपीएफ है. 2019 में भी दोनों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, जिसमें असम गण परिषद को तीन सीट और बीपीएफ को एक सीट दी थी और बीजेपी 10 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस बार बदली हुई सियासी परिस्थितियों में बीजेपी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, जिसके चलते सहयोगी दलों के साथ सीट समझौता करना आसान नहीं है. ऐसे ही पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में भी बीजेपी के लिए सीट शेयरिंग करना सहयोगी दलों के साथ आसान नहीं है. मणिपुर से लेकर मेघालय, त्रिपुरा, नगालैंड तक में गठबंधन कर रखा है. इन राज्यों में एक-दो सीटें हैं, जिन पर सीट शेयरिंग करना बीजेपी के लिए काफी मुश्किल होगी?
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