नई दिल्ली(New Delhi) । लोकसभा चुनाव(Lok Sabha Elections) की हॉट सीटों (Hot Seats)में शामिल मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट 2024 (Loksabha Seat 2024)के चुनाव में भाजपा (B J P)से छिन गई। यह तब हुआ जब मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में एक नहीं, बल्कि भाजपा ने तीन-तीन मंत्रियों को ताजपोशी दी हुई थी। लोकसभा चुनाव की घोषणा से ही भाजपा अपनी जीत के दावे कर रही थी, लेकिन यह दावे गतगणना में पूरी तरह से फेल साबित हुए।
चिंता की बात यह है कि सदर सीट पर हमेशा भाजपा के वोट बैंक का दबदबा रहा है, जिसमें वैश्य समाज की वोटों की बड़ी भूमिका मानी जाती है, लेकिन इस चुनाव में यह दबदबा प्रतिद्वंद्वी सपा प्रत्याशी के सामने केवल 801 वोटों पर ही सिमट कर रह गया। उधर, दलित क्षेत्रों में भी भाजपा की वोट छिन गई, जबकि रालोद से गठबंधन के बाद दलित वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए अनिल कुमार को नया-नया मंत्री बनाकर दलितों को रिझाने के लिए भाजपा के प्रचार में भेजा गया था।
दूर हुआ दलित वोटर
लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले भाजपा-रालोद का गठबंधन हुआ तो पुरकाजी विधायक अनिल कुमार को प्रदेश में कैबिनेट मंत्री बनाया गया। उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने के पीछे भाजपा ने दलित वोट बैंक अपने पक्ष में आने की भूमिका तैयार की थी, लेकिन चुनावी मैदान में बहुजन समाज पार्टी ने अति पिछड़े वर्ग से दारा सिंह प्रजापति को प्रत्याशी बनाकर भाजपा को चुनौती थी, जिसने भाजपा के पसीने छुड़ दिए। पूरे लोकसभा चुनाव में अनिल कुमार को लेकर दलित बस्तियों में भाजपा ने भ्रमण किया, लेकिन दलित वोट वोटर बसपा के लिए बड़ी संख्या में वोटिंग कर गया, जिसका नतीजा बसपा डेढ़ लाख के करीब वोट लेकर गई, जिसका तगड़ा नुकसान भाजपा को अपनी वोट कटने के रूप में झेलना पड़ा।
कपिल देव नहीं दिखा पाए प्रभाव
सदर विधानसभा से विधायक बनने के बाद राज्यमंत्री तक पहुंचे कपिल देव अग्रवाल का प्रभाव भी सदर विधानसभा में वोटरों को भाजपा के पक्ष में बड़ी संख्या में नहीं खींच पाया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सदर विधानसभा भाजपा के लिए सबसे मजबूत विधानसभाओं में से एक है। सदर में डा. संजीव बालियान विजेता हरेंद्र मलिक से अधिक वोट तो लेकर गए, लेकिन राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल के होते हुए भी केवल 108 अधिक वोट लेना सवाल खड़े करता है।
नई मंडी, गांधी कालोनी, कच्ची सड़क, रामपुरी आदि क्षेत्रों में वैश्य और पंजाबी वोटर होने के बाद भी कोर वोटर मतदान केंद्रों तक कम पहुंचा, जिसका नुकसान भाजपा को हुआ। उधर, जिनके पास विकल्प थे, उन्होंने भाजपा से अलग जाकर वोट की। फ्रेंड्स कालोनी के त्यागी सभा भवन मतदान केंद्र पर सुनील त्यागी से ज्यादा भाजपा को हराने के लिए वोट हुई, जो हरेंद्र मलिक के पक्ष में पड़ी।
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