नई दिल्ली। लगातार तीसरी बार (third time) चीन की कमान (command of china) राष्ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping) को मिलने से भारत-चीन संबंधों (India-China relations) में कड़वाहट का मौजूदा दौर जारी रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जानकारों का कहना है कि जिनपिंग की जो महत्वाकाक्षाएं हैं, वह ऐसी हैं जो भारत-चीन संबंधों को कभी भी पटरी पर नहीं आने देगी।
रक्षा विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल राजेन्द्र सिंह (Lt Gen Rajendra Singh) के अनुसार, चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा जिनपिंग चाहते हैं कि वह पहली अर्थव्यवस्था बने। दूसरी ओर, उसने हाल के वर्षों में बड़ी सैन्य ताकत के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है। इसलिए वह एशिया समेत सूमचे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है, जबकि भारत (India) लगातार उसके मंसूबों पर पानी फेरने की कोशिश कर रहा है।
भारत की अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ रही है इसलिए चीन को लगता है कि आगे भारत उसके लिए चुनौती बना सकता है। इसी प्रकार सैन्य ताकत बढ़ाने में भी भारत तेजी से कदम बढ़ा रहा है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड के जरिये भारत ने चीन की जबरदस्त घेराबंदी की है। इसलिए भारत की तरफ से पेश चुनौतियां चीन को परेशान करती हैं।
भारत के विशाल बाजार की भी जरूरत
राजेन्द्र सिंह के अनुसार, एक तरफ चीन भारत की प्रगति से आशंकित है तो दूसरी तरफ उसे भारत के विशाल बाजार की भी जरूरत है। इसलिए वह भारत के साथ पूरी तरह से दुश्मनी नहीं दिखाना चाहता है, लेकिन वह भारत के सामने डोकलाम, पूर्वी लद्दाख जैसी चुनौतियां आगे भी पैदा करने की कोशिश कर सकता है।
जिनपिंग की टीम में बड़े बदलाव
चीन की नजर भारत के राजनीतिक हालातों, आर्थिक प्रगति तथा सेना की मजबूती जैसे कदमों पर रहेगी। इसलिए भारत को इन क्षेत्रों में मजबूत होकर उभरना होगा। जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल में एक चुनौती यह भी है कि इस बार उनकी टीम में बड़े बदलाव किए गए हैं। टीम में नए लोगों को शामिल किया गया है। इनमें ज्यादातर जिनपिंग की पार्टी के लोगों होंगे। यानी नई टीम में स्वतंत्र लोग नहीं होंगे। इसलिए उनका भारत के प्रति क्या रुख रहता है, यह देखना भी मुश्किल होगा। आशंका यही है कि रुख नकारात्मक हो सकता है।
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