भोपाल। मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में कभी खत्म हो चुके बायसन (जंगली भैंसा) एक बार फिर इसे गुलजार कर रहे हैं। यह सफलता इंट्रोडक्शन आफ गौर इन बांधवगढ़ नाम के प्रयास से मिली। 12 साल पहले शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट इन दिनों अपनी सफलता के चरम पर है। इसकी शुरुआत में 49 बायसन कान्हा टाइगर रिजर्व से यहां लाए गए थे, अब इनकी संख्या 140 से ज्यादा हो चुकी है। प्रदूषण और बदलते मौसम के कारण वन्य जीवों के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव के बाद बायसन बांधवगढ़ में खत्म हो गए थे। जानकारी के अनुसार बायसन बांधवगढ़ के बड़े क्षेत्रफल में काफी विस्तारित हो गए थे और उन स्थानों तक पहुंच गए थे, जहां जंगल की परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं थीं। ऐसे में बाघों व मनुष्यों द्वारा उनका शिकार होता गया और एक समय ऐसा आया कि बांधवगढ़ बायसन विहीन हो गया।
इस तरह बसाया
वर्ष 2005 से 2010 तक यहां बायसन को पुन: बसाने पर शोध किया गया। परिणाम के आधार पर रणनीति बनी कि बायसन को अगर पूरे जंगल में अलग-अलग रहने दिया गया तो वे नहीं बचेंगे। इसके लिए कल्लवाह रेंज को चुना और अनुकूल परिस्थितियां तैयार कीं। कान्हा टाइगर रिजर्व से भी बायसन लाए गए। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढऩे लगी। कान्हा के पूर्व रिसर्च अधिकारी डा. राकेश शुक्ला का कहना है कि बायसन वन्य जीवन के पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं। इसमें से अगर कोई भी प्राणी या वनस्पति कम होती है तो तंत्र प्रभावित होता है।
इनका कहना है
इंट्रोडक्शन आफ गौर इन बांधवगढ़ एक ऐसा प्रोजेक्ट रहा है जिसकी सफलता बिगड़ी हुई परिस्थितियों को अनुकूल बनाने का सबसे बड़ा प्रमाण है। दूसरे राज्य अब ऐसे प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ रहे हैं।
डा. एचएच पाबला, तत्कालीन पीसीसीएफ (वन्य प्राणी), मध्य प्रदेश
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