शिमला (Shimla)। हिमालय (Himalayan) की ठंडी और नम जलवायु (Cold and humid climate) में पाई जानी वाली औषधीय प्रजाति बिरमी (Medicinal species Birmi) खतरे में है। कैंसर के इलाज में सहायक (helpful cancer treatment) यह सदाबहार औषधीय पौधा (Evergreen medicinal plant) हिमाचल प्रदेश (Himachal Prasesh) के कुल्लू, ननखड़ी, रामपुर और गोपालपुर इलाके में पाया जाता है। पर्यावरण में बदलाव, अत्याधिक अवैध कटान, दवाइयों के लिए ज्यादा इस्तेमाल होने और इसके बीज जल्द तैयार न होने के चलते यह प्रजाति खतरे में आ गई है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास अनुसंधान संस्थान ने इस पर शोध किया, जिसमें ये कारण सामने आए हैं। इस प्रजाति पर संकट के चलते इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में शामिल किया है।
हिमाचल प्रदेश के शांत परिदृश्यों में पाया जाने वाला बिरमी या हिमालयन ह्यू (टैक्सस कॉन्टोर्टा) इस क्षेत्र की जैव विविधता में एक विशेष स्थान रखता है। अपने गहरे हरे पत्ते और लाल जामुन जैसे फलों वाले इस सदाबहार औषधीय पौधे की छाल, टहनियों और जड़ों से टैक्सेन रसायन निकलता है, जिनका मिश्रण कैंसर के इलाज के लिए बनने वाली दवाइयों में इस्तेमाल होता है। इसका उपयोग हजारों सालों से स्थानीय लोग सामान्य सर्दी, खांसी, बुखार और दर्द के इलाज के लिए भी करते रहे हैं।
पौधे को संकट में डालने वाले कारण
परंपरागत रूप से स्थानीय लोग सांस्कृतिक समारोहों में इसकी लकड़ी इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा इसकी लकड़ी से कई तरह का सामान बनता है। पौधों के हिस्सों का अवैध कटान और भवन निर्माण के लिए जंगलों का सफाया इसकी विलुप्त होने के कारण बनते जा रहे हैं। यह प्रजाति धीरे-धीरे बढ़ती है और बड़ी होती है। इसका मुख्य कारण इसके बीजों का कम उत्पादन और देर से अंकुरण होना है। जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ता तापमान भी इसे संकट में डाल रहा है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास अनुसंधान संस्थान कुल्लू के वैज्ञानिक केएस कनवाल ने बताया कि औषधीय दोहन के लिए इसके पौधों को पिछले कुछ सालों में अंधाधुंध अवैज्ञानिक तरीके से काटा जा रहा है। उचित प्रबंधन और इसका संरक्षण न होने से प्रदेश में इसके पौधों में भारी कमी आ रही है।
संरक्षण की मुहिम
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास अनुसंधान संस्थान ने सुझाव दिया कि ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क इसके संरक्षण के लिए अत्यधिक उपयुक्त श्रेणी क्षेत्र है। इसके अलावा काईस वन्यजीव अभयारण्य, चूड़धार और तीर्थन वन्यजीव अभयारण्यों में भी इसे उगाया जा सकता है। शोध में सामने आया है कि हिमाचल प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्र का केवल छह प्रतिशत ही बिरमी के पौधों को उगाने के लिए उपयुक्त है। वन विभाग और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास अनुसंधान संस्थान ने इसके 500 पौधे कुल्लू के मौहल में लगाए हैं।
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