नई दिल्ली (New Delhi) । आज मेरे लिए सच में नया साल है। मैं डेढ़ साल बाद मुस्कुराया है। मैंने अपने बच्चों को गले से लगाया है। ऐसा लग रहा है कि मेरे सीने से पहाड़ जैसा एक पत्थर हट गया हो। मैं फिर से सांस ले सकती हूं। यह कहना है बिलकिस बानो (Bilkis Bano) का। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शनिवार को आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 लोगों की शीघ्र रिहाई के आदेश को रद्द (Release order canceled) कर दिया। इसी फैसले पर बिलकिस बानो ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि न्याय ऐसा ही होता है। मुझे और मेरे बच्चों के साथ-साथ हर महिला को जीत मिली है। समर्थन के लिए सर्वोच्च न्यायालय का धन्यवाद। बता दें, बिलकिस बाने के साथ गुजरात दंगों के दौरान इन्हीं आरोपियों ने दुष्कर्म किया था और उनके परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी थी।
एकजुटता के लिए सभी महिलाओं का धन्यवाद
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि चूंकि मुकदमा मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया है, इस वजह से गुजरात के पास सजा कम करने का अधिकार नहीं है। बानो ने अपनी वकील शोभा गुप्ता के माध्यम से कहा कि 15 अगस्त 2022 को जब आरोपियों को शीघ्र रिहाई दी गई तो मेरे सब्र का बांध खत्म हो गया। मेरा साहस खत्म हो गया था। इसके बाद देश की लाखों महिलाएं मेरे साथ खड़ीं हुईं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। 10,000 लोगों ने खुला पत्र लिखा। सभी की एकजुटता के लिए मैं आभारी हूं। लोगों ने न सिर्फ मुझमें बल्कि, भारत की तमाम महिलाओं में शक्ति का संचार किया। सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
गुमनाम में जी रहीं है बानो
मामले में गवाह और बानो के चाचा अब्दुल रज्जाक मंसूरी ने कहा कि बानो हिंसा के बाद से कभी भी अपने पैतृक गांव रणधीकपुर नहीं आईं। वह एक साल तक देवगढ़ बारिया ही रहीं। इसके बाद वह देश और राज्य के अलग-अलग इलाकों में रहने लगीं। वह गुमनामी भरी जिंदगी जी रहीं थीं। अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। यह जानकर बहुत खुशी हुई। दोषियों को अब दो सप्ताह में आत्मसमर्पण करना होगा।
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