नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar assembly elections in 2020) के दौरान अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास (Criminal history of candidates) की जानकारी वेबसाइट पर नहीं देने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता खत्म (Recognition of political parties end) करने के मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और सीपीएम ने अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास की जानकारी अपलोड नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट से माफी मांगी।
याचिका ब्रजेश सिंह ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट के 13 फरवरी 2020 के आदेशों का पालन नहीं किया और अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास की जानकारी अपने वेबसाइट पर अपलोड नहीं की। याचिका में इन राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने की मांग की गई है।
बता दें कि 13 फरवरी 2020 को कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दल केवल जीतने की काबिलियत के आधार पर दागी लोगों को टिकट न दें। अगर वे दागी लोगों को टिकट देते हैं तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर इसकी वजह बतानी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने दागी लोगों को टिकट चुनाव लड़ने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि राजनीतिक दल दागी लोगों की उम्मीदवारी तय करते ही अपनी वेबसाइट पर 48 घंटे के भीतर उनकी आपराधिक पृष्ठभूमि की सूचना अपलोड करेंगे। वेबसाइट पर दागी उम्मीदवारों के अपराध की प्रकृति और उन पर लगे आरोपों की जानकारी देनी होगी। उन्हें अपनी वेबसाइट पर ये भी बताना होगा कि वे दागी उम्मीदवारों को टिकट क्यों दे रहे हैं। उम्मीदवारों की जानकारी देते समय ये नहीं बताना चाहिए कि वे चुनाव जीतने की क्षमता रखते हैं। (एजेंसी, हि.स.)
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