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    बिहार विस चुनावः अंत भला तो सब भला का पासा

  • November 06, 2020

    – सियाराम पांडेय ‘शांत’

    बिहार में विधानसभा चुनाव के तीसरे चरण का प्रचार थम गया है। दो चरणों के मतदान हो चुके हैं। तीसरे चरण का मतदान 7 नवंबर को होना है। राजनीतिक दलों ने अपनी तरकश के बचे-खुचे तीर भी बाहर निकाल दिए हैं। अब जो कुछ भी करना है, मतदाताओं को ही करना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो अपनी जनसभा में यहां तक कह दिया कि ‘यह उनका आखिरी चुनाव है। अंत भला तो सब भला।’ नीतीश कुमार पहला चुनाव में 1977 में लड़े थे। तब से आजतक उन्होंने केंद्र और राज्य की तमाम जिम्मेदारियों का वहन किया है।

    राजनीतिक हलकों में इसे उनके भावनात्मक कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है। दूसरी ओर इससे इस बात के भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या नीतीश कुमार राजनीतिक जीवन से संन्यास लेने वाले हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जहां बिहार में इस चुनाव में मोदी वोटिंग मशीन न चलने की बात कह रहे हैं। खुद को सच का सिपाही बता रहे हैं, वहीं लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने कहा है कि इसबार बिहार में भाजपा-लोजपा गठबंधन की सरकार बनेगी। चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष नतमस्तक होने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 10 नवंबर के बाद तेजस्वी यादव के समक्ष नतमस्तक होते नजर आएंगे। तेजस्वी खेमे के लोग भी यही कह रहे हैं कि इसबार नीतीश को नहीं आना है।

    रही बात सच के सिपाही होने की तो इसबार चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में हर तीसरा प्रत्याशी अपराधी भी है और करोड़पति भी, वह चाहे जिस किसी भी दल से संबद्ध क्यों न हो। यह उनके चुनावी शपथपत्र से स्पष्ट है। इसबार सबसे अधिक 98 करोड़पति दागियों को राजद ने टिकट दिया है। कांग्रेस ने भी 45 दागियों को चुनाव मैदान में उतारा है। 2015 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस ने 23 क्रिमिनल करोड़पतियों पर ही यकीन किया था लेकिन इसबार उसने इस संख्या में दोगुना इजाद कर दिया है। सच के सिपाही अपराधियों और करोड़पतियों को टिकट देते हैं और बात गरीबों की करते हैं। भाजपा और जदयू में भी दागियों की संख्या कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के अंतिम दिन बिहार के लोगों के नाम एक भावुक खत लिखा है कि बिहार के विकास के लिए मुझे नीतीश कुमार की जरूरत है। पता नहीं, मतदाता इस खत को कितना महत्व देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो बात चुनाव प्रचार के अंतिम दिन कही है, उसे अगर वे पहले कहते तो शायद ज्यादा फायदे में रहते लेकिन जब जागे तभी सबेरा।

    बिहार की जनता किस पर भरोसा करेगी, वह चिराग को आलोकित होते देखेगी या तेजस्वी के तेज में बढ़ोत्तरी करेगी। सुशासन को अहमियत देगी या जंगलराज की आधारशिला रखेगी, यह तो दस नवंबर को तय होगा लेकिन नेताओं की भावुक अपीलों ने मतदाताओं को सोचने को विवश तो किया ही है। बिहार विधानसभा के चुनाव में लोजपा के 134 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, इनमें से 93 का भाग्‍य ईवीएम में कैद हो चुका है। तीसरे चरण में 7 नवंबर को पश्चिमी चंपारण, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, सुपौल, मधेपुरा, सहरसा, पूर्णियां, अररिया, किशनगंज और कटिहार जिले की 78 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होने हैं। बिहार विधानसभा के तीसरे चरण में भाजपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वर्ष 2015 के चुनाव में भाजपा के खाते में 19 सीटें इन इलाकों से आई थीं। वहीं वर्ष 2010 के चुनाव में इन 35 सीटों में से भाजपा के खाते में 27 सीटें आई थीं। उस समय भाजपा के खाते में कुल 91 सीटें आई थी। इस चुनाव में भी भाजपा की कोशिश 2010 से भी अधिक बेहतर प्रदर्शन करने की है। यदि उसे मिथिलांचल व सीमांचल का समर्थन मिला तो बिहार में उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है।

    अभीतक का इतिहास तो यही रहा है कि इन इलाकों में जिस दल का अधिक दबदबा होता है, बिहार में उसी दल की सरकार बनती रही है। यही वजह है कि भाजपा ने तीसरे चरण के लिए पूरा दमखम लगा दिया है। तीसरे और अंतिम चरण में भाजपा ने आठ उम्मीदवारों को पहली बार मौका दिया है। बगहा, बथनाहा (सु), और रक्सौल के मौजूदा विधायकों की जगह नये चेहरों पर पार्टी ने दांव लगाया है। भाजपा ने कुल 35 उम्मीदवारों में 10 सवर्ण व 10 वैश्य हैं। तीन यादव, तीन कुर्मी व कुशवाहा और पांच अनुसूचित जाति तो चार ईबीसी के उम्मीदवारों को टिकट पार्टी ने दिया है। इस चरण में छह महिलाओं को भी टिकट मिला है। तीसरे चरण में सरकार के 11 मंत्रियों और विधानसभा अध्यक्ष की किस्मत का फैसला होना है।

    15 साल बाद लोक जनशक्ति पार्टी बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही है। बिहार की 40 सुरक्षित सीटों के सापेक्ष लोक जनशक्ति पार्टी ने इसबार अपने 25 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे लेकिन दो सीटों फुलवारीशरीफ और मखदुमपुर में प्रत्याशियों के नामांकन पत्र निरस्त हो जाने की वजह से 23 सुरक्षित सीटों पर पार्टी चुनाव मैदान में है। तीसरे चरण में आठ सुरक्षित सीटों पर मतदान होना है, उसमें त्रिवेणीगंज, रानीगंज, मनिहारी, सिंघेश्वर, सोनबरसा, सिमरी बख्तियारपुर, बोचहां, सकरा और कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र की सीटें शामिल हैं। रोसड़ सुरक्षित सीट से उनके चचेरे भाई कृष्णराज पासवान चुनाव मैदान में हैं जबकि सिकंदरा विधानसभा सुरक्षित सीट से लोजपा के रविशंकर पासवान प्रत्याशी हैं। चिराग पासवान की पार्टी बिहार में जितनी मजबूती से चुनाव लड़ेगी, नीतीश कुमार की पार्टी को उतना ही नुकसान होगा।

    वैसे इस बार बिहार में जीत-हार किसी भी पार्टी की हो लेकिन हार-जीत की मूल कारण महिलाएं ही होंगी। जिस तरह महिलाओं ने पिछले दो चरणों के चुनाव में पुरुषों से अधिक मतदान किया है, उससे इतना तो तय है ही, इसबार हार-जीत महिला मतदाता ही तय करेंगी। 3 नवंबर को हुए दूसरे चरण के मतदान को लेकर हुए सर्वे से पता चलता है कि 94 विधानसभा क्षेत्र में कुल 55.70 प्रतिशत वोट पड़े। इनमें महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों की तुलना में करीब छह प्रतिशत अधिक रहा है।

    सत्ता के प्रति आक्रोश होता है और यह हर चुनाव में देखा जाता है। कम या ज्यादा, इस बात को नकारा नहीं जा सकता लेकिन जनता काम भी देखती है। वह तेल भी देखती है और उसकी धार भी देखती है। इसबार भी कुछ इसी तरह के धमाकेदार नतीजे की उम्मीद है। हर दल की नजर तीसरे चरण की वोटिंग और मतदाताओं के मिजाज की है। इस चरण में पड़ने वाले जिलों के मतदाता जिस पर मेहरबान होंगे, बिहार की सत्ता उसी के हाथों में होगी, इसकी उम्मीद तो की ही जा सकती है। आत्मनिर्भर बिहार की परिकल्पना की मजबूती के लिए भी बिहार को रीढ़ वाली सरकार की जरूरत है।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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