नई दिल्ली । चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) (Prashant Kishore) ने ऐलान किया है कि जनसुराज (Jansuraj) बिहार (Bihar) की सभी 243 विधानसभा सीटों (Assembly seats) पर उम्मीदवार उतारेगी. पीके ने पटना के बापू भवन में महिला संवाद कार्यक्रम के दौरान यह ऐलान किया और साफ कहा कि उनकी पार्टी किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी. बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. जनसुराज पद यात्रा के जरिये बिहार को मथने के बाद पीके 2 अक्टूबर को जनसुराज को राजनीतिक दल बनाने का आधिकारिक ऐलान करने वाले हैं.
जनसुराज को राजनीतिक दल बनाने के ऐलान से पहले प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव को लेकर अपना प्लान साफ कर दिया है. ऐसे में अब बात इसे लेकर भी हो रही है कि सूबे की हर सीट पर उम्मीदवार उतारने जा रहे पीके का बिहार प्लान सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन में किसे और कहां-कहां चोट करेगा?
क्या है पीके का बिहार प्लान
पीके ने अपनी जनसुराज यात्रा के दौरान उन मुद्दों पर अधिक फोकस किया जो लंबे समय से सियासत में उपेक्षित चल रहे थे. पीके ने पलायन, गरीबी, अशिक्षा जैसे मुद्दों की बात की. बाढ़ की विभीषिका को फोकस पॉइंट बनाया और जातिवाद-वंशवाद की राजनीति को भी निशाने पर रखा. पीके सर्वधर्म समभाव और महात्मा गांधी की बात करते हैं और जनसुराज की राजनीतिक दल के रूप में मैदान में आने का आधिकारिक ऐलान करने के लिए भी राष्ट्रपिता की जयंती के दिन 2 अक्टूबर को ही चुना. इसके पीछे विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की ओर से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बी टीम बताने वाले नैरेटिव की काट भी रणनीति है.
बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने पीके को लेकर कहा था, “वह बीजेपी के सिर्फ एजेंट नहीं, दिमाग हैं. वह बीजेपी की विचारधारा का पालन करते हैं. बीजेपी अपनी रणनीति के तहत उन्हें फंडिंग करती है.” आरजेडी प्रवक्ता एजाज अहमद ने पीके के पार्टी बनाने के ऐलान पर कहा था- लोकसभा चुनाव में में वह किसके लिए बैटिंग कर रहे थे, सबको पता है. जनसुराज के प्रवक्ता संजय ठाकुर ने आरजेडी के आरोप पर कहा था, “जन सुराज अगर बीजेपी की बी टीम होती तो गांधी की विचारधारा को लेकर चलने का क्या औचित्य था? गांधी की विचारधारा सर्वधर्म समभाव की रही है और दूसरी तरफ बीजेपी- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा है.”
पीके की पार्टी आधिकारिक तौर पर सियासी मैदान में एंट्री करने से पहले विपक्ष के इस नैरेटिव को काटने की कोशिश में हैं. जनसुराज की डेब्यू डेट और प्रवक्ता के बयान तो इसी तरफ संकेत करते हैं. एक रणनीतिकार जब अपनी पार्टी लॉन्च करने जा रहा है, प्लान भी होंगे. अब सवाल ये भी है कि आखिर पीके का बिहार प्लान क्या है जिसे लेकर सत्ता पक्ष से विपक्ष तक, हर तरफ हलचल है. इसे चार पॉइंट्स में समझा जा सकता है- 1- उन वोटर्स पर फोकस जो बदलाव चाहते हैं, 2- संगठन से लेकर सत्ता तक आबादी के अनुपात में भागीदारी, 3- गरीबी-पलायन पर फोकस, 4- महिलाओं और प्रबुद्ध वर्ग पर फोकस.
किसको चोट करेगा कौन सा प्लान?
1- उन वोटर्स पर फोकस जो बदलाव चाहते हैं
प्रशांत किशोर ने जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनसुराज को 2 अक्टूबर के दिन आधिकारिक रूप से राजनीतिक दल के रूप में लॉन्च करने का ऐलान किया था, उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सर्वे रिपोर्ट का भी जिक्र किया था. पीके के मुताबिक इस सर्वेक्षण में बिहार की करीब 50 फीसदी जनता अब बदलाव चाहती है, नए विकल्प की चाह रखती है. उन्होंने कहा था कि हमारा लक्ष्य इन छह करोड़ लोगों तक पहुंचना है. जाहिर है बदलाव की चाह रखने वाली जनता अगर पीके के साथ जाती है तो यह महागठबंधन की संभावनाओं को ही चोट पहुंचाएगा. बिहार में 2005 से ही नीतीश कुमार और उनकी पार्टी सत्ता की ड्राइविंग सीट पर है. आरजेडी और महागठबंधन की रणनीति नीतीश कुमार और उनकी सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी को कैश कराने की ही है.
2- संगठन से लेकर सत्ता तक आबादी के अनुपात में भागीदारी
बिहार में जातिगत जनगणना की मांग हो, ऐलान हो या रिपोर्ट का आना, सबके मूल में एक ही नारा था- जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार ने जातिगत जनगणना की रिपोर्ट बिहार विधानसभा में पेश करते हुए आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 75 फीसदी तक करने का दांव भी चल दिया था जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.
जातिगत जनगणना पर नीतीश कुमार की अगुवाई वाले सत्ताधारी गठबंधन और तब सरकार में भागीदार रही विपक्षी आरजेडी के बीच क्रेडिट वॉर भी चल ही रहा है. इन दो दलों के बीच चल रही होड़ के बीच पीके की जनसुराज ने दूर का दांव चल दिया है. पीके की पार्टी के प्रवक्ता संजय ठाकुर ने पहले ही ये कहा था कि पीके ने संगठन, टिकट बंटवारा और शासन में जिसकी जितनी आबादी है, उसे उतनी हिस्सेदारी देने की घोषणा कर रखी है.
3- गरीबी और पलायन का मुद्दा
प्रशांत किशोर की प्राथमिकता में गरीबी, अशिक्षा और पलायन जैसे मुद्दे भी हैं. पीके कहते भी आए हैं, “नाली-गली बने या बने, स्कूल अस्पताल जब सुधरेगा तब सुधरेगा लेकिन जितने भी लोग बाहर कमाने गए हैं या जो युवा बेरोजगार बैठे हैं. उनको नौकरी मिले या न मिले, कम से कम 10 से 15 हजार रुपये का रोजी-रोजगार बिहार में दिया जाएगा. ये हमारा पहला संकल्प है.” पीके ने महिला संवाद कार्यक्रम में भी कहा- जनसुराज आपके पति और बेटे को रोजगार के लिए पलायन नहीं करने देगा. बिहार में रोजगार की व्यवस्था की जाएगी.
पीके ने वृद्धावस्था पेंशन की राशि बढ़ाकर दो हजार रुपये करने की बात भी की. उन्होंने पलायन के साथ गरीबी की बात कर बिहार के उस मर्म को स्पर्श करने की कोशिश की है जो लंबे समय से सियासत में उपेक्षित रहे हैं. पिछले चुनाव में तेजस्वी ने रोजगार को मुद्दा बनाया था और आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. तेजस्वी अगले चुनाव में भी अपने डिप्टी सीएम रहते दी गईं सरकारी नौकरियों को अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जाने की तैयारी में हैं. नीतीश की अगुवाई वाली सरकार भी एक साल में 12 लाख नौकरियां देने की बात कर रही है. ऐसे में रोजगार के साथ पलायन की पिच पर पीके अगर मजबूती से उभरते हैं तो नुकसान दोनों गठबंधनों को हो सकता है.
4- महिला वोटर
महिलाओं को बीजेपी का साइलेंट वोटर कहा जाता है. नीतीश कुमार की मजबूती के पीछे भी उनका महिला वोटबैंक है. अब महिला संवाद जैसा बड़ा आयोजन करके पीके ने ये संदेश दे दिया है कि यह वोटबैंक उनके भी फोकस में है. पीके ने पलायन का जिक्र कर, रोजगार के इंतजाम की बात कर महिलाओं के दर्द को छुआ ही, महिलाओं को रोजगार के लिए सस्ते दर से सरकारी गारंटी पर रोजगार के लिए लोन देने की भी मांग कर दी. पीके ने यह भी कहा कि हम बिहार चुनाव में कम से 40 महिलाओं को टिकट देंगे. पीके अगर महिला वोटबैंक में सेंध लगा पाते हैं तो नुकसान जेडीयू और बीजेपी को ही होगा.
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