नई दिल्ली (New Delhi)। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बड़ी राहत (Big relief to Bharatiya Janata Party (BJP)) मिली। अदालत ने बीजेपी पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा (Disclosure of criminal history of candidates) करने के निर्देशों का पालन नहीं करने का आदेश वापस ले लिया। SC ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से जुड़े इस मामले में 2021 में पार्टी पर एक लाख रुपये का जुर्माना (fine of one lakh rupees) लगाया था। कोर्ट ने इस बात पर जुर्माना लगाया था कि दागी उम्मीदवारों का चयन क्यों किया गया, इसकी वजह पार्टी ने नहीं बताई थी। साथ ही एससी ने बाद के कई फैसलों में कहा कि आपराधिक अतीत बताना पर्याप्त है और उम्मीदवार बनाने का कारण बताना जरूरी नहीं है। इस आधार पर कोर्ट ने अपना आदेश वापस (Court withdraws its order) ले लिया है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने भाजपा महासचिव बीएल संतोष की ओर से दायर समीक्षा याचिका सोमवार को स्वीकार कर ली। साथ ही बेंच ने कहा कि चुने गए उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को सार्वजनिक डोमेन में डालने को लेकर अदालत के निर्देशों की जानबूझकर अवमानना नहीं की गई। पीठ ने इस सिद्धांत पर अपनी सहमति जताई कि डिसीजन-मेकिंग प्रॉसेस में कोर्ट को सब्जेक्टिव एलिमेंट्स के एरिना में नहीं घुसना चाहिए। यह भी कहा गया कि दागी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकना संसद का काम है। इसलिए उचित कानून का अभाव होने पर अदालत ऐसी कोई निषेधाज्ञा जारी नहीं की जा सकती है।
BJP समेत इन दलों पर भी लगा था जुर्माना
एससी ने 2021 के अपने आदेश में भाजपा के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर भी जुर्माना लगाया था। इन दोनों दलों को 5-5 लाख रुपये का जुर्माना भरना था। इसके अलावा कांग्रेस और जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। इस फैसले के दौरान अदालत ने मतदाताओं के सूचना के अधिकार को अधिक प्रभावी और सार्थक बनाने की जरूरत पर जोर दिया था।
SC ने राजनीतिक दलों को दिए थे ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा था कि सभी राजनीतिक दल अपनी वेबसाइट पर प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी डालें। अदालत ने चुनाव आयोग से भी कहा कि वो इस तरह के ऐप बनाएं, जहां मतदाता ऐसी जानकारियां आसानी से देख सकें। SC ने यह भी कहा था कि प्रत्येक पार्टी प्रत्याशी चुनने के 48 घंटे के भीतर उसका आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित करवाए। आदेश का पालन न होने पर आयोग को सुप्रीम कोर्ट को सूचित करने का आदेश दिया गया था।
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