अदब तालीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं।
पुष्पेंद्र पाल सिंह को उनके नए और पुराने शागिर्द और हालफिलहाल माखनलाल यूनिवर्सिटी में सहाफत के तालिबे इल्म (छात्र) पीपी सर के नाम से बड़े अदब-ओ-एहतराम से पुकारते हैं। स्कूलों और कालिजों में यूं तो कई उस्ताद होते हैं…बाकी चंद उस्ताद ही उस्तादों के उस्ताद होते हैं। गोया के पीपी सर का किरदार और खूबियां उस्ताद लफ्ज़ को मौज़ू बनाती हैं। उनकी अज़ीमुश्शान शख्सियत उस्ताद की अहमियत और शागिर्द-ओ-उस्ताद के दर्मियान के रिश्तों की नौइयत को वाज़ेह करती है। भोपाल के माखनलाल पत्रकारिता और संचार राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में पीपी सर की आमद 1996 में हुई। इसी बरस इने यूनिवर्सिटी के दिल्ली सेन्टर का इंचार्ज बना दिया गया। दिल्ली से 1999 में ये रिटन भोपाल आ गए। फिर शुरू हुआ सहाफ़त (पत्रकारिता) की नई पौध को सींचने और गढऩे का काम। पीपी सर दिलो जान से बच्चों को पढ़ाते। आप साल 2005 में ये यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता विभाग के हेड ऑफ द डिपार्टमेंट हो गए। 1999 से 2015 तक 16 बरस तक इन्होंने सहाफत के हज़ारों तालिब-ए-इल्म बच्चों की तालीम-ओ-तरबियत करी। इस दरमियान इनकी मकबूलियत उरूज पे रही। इस बीच मीडिया इंडस्ट्री में जो बदलाव आ रहे थे उसी के मुताबिक इन्होंने माखनलाल यूनिवर्सिटी में क्वार्क एक्सप्रेस, पेज मेकर, इन डिज़ाइन पर काम सिखाना शुरु किया। पीपी सर ने पत्रकारों की नई पौध को प्रेक्टिकली ज़्यादा अपडेट किया। इंन्ने एक कोर्स में तीन तीन इंटर्नशिप करवाई। नतीजतन यूनिवर्सिटी में लपक प्लेसमेंट हुए।
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