नई दिल्ली. भारत (India) और चीन (China ) के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने और लंबित मुद्दों का जल्द ही समाधान खोजने के लिए गुरुवार को बीजिंग (Beijing) में कूटनीतिक (Diplomatic) बैठक हुई. इस बैठक और बातचीत का उद्देश्य था कि सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच मतभेदों को कैसे कम किया जाए और इस दिशा में स्थाई समाधान की ओर कदम बढ़ाए जाएं. भारतीय विदेश मंत्रालय (MEA) ने एक बयान में इस बात की जानकारी दी है.
भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (WMCC) की 31वीं बैठक बीजिंग में आयोजित की गई. इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) गौरांगलाल दास ने किया, जबकि चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व चीनी विदेश मंत्रालय के सीमा और महासागर मामलों के विभाग के महानिदेशक होंग लियांग ने किया.
बैठक के दौरान, दोनों पक्षों ने एलएसी पर शांति और स्थिरता की बहाली को द्विपक्षीय संबंधों की सामान्य स्थिति की बहाली के लिए बेसिक जरूरत बताया. बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि सीमा पर तनाव को कम करने और लंबित मुद्दों का समाधान खोजने के लिए ऐसी बातचीत बेहद जरूरी है जो कि स्पष्ट हो, रचनात्मक हो और जो भविष्य की भी जरूरी संभावनाओं को देखती हो.
पिछली बैठकों में कहां तक पहुंची थी बात
जुलाई में अस्ताना और वियनतियाने में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठकों में दिए गए निर्देशों के आधार पर, इस बैठक में चर्चा को तेज करने पर जोर दिया गया. दोनों पक्षों ने पिछले महीने आयोजित WMCC बैठक के फैसलों की समीक्षा की और मतभेदों को कम करने के लिए LAC पर स्थिति को लेकर स्पष्ट और रचनात्मक विचारों का आदान-प्रदान किया.
बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी कि कूटनीतिक और सैन्य चैनलों के संपर्क को और बढ़ाया जाए. दोनों देशों ने सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को बनाए रखने के लिए संयुक्त रूप से प्रयास करने का निर्णय लिया. इसके लिए संबंधित द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और दोनों सरकारों के बीच हुए समझौतों का पालन करने पर जोर दिया गया.
गलवान घाटी संघर्ष और उसके बाद की स्थिति
भारत और चीन की सेनाएं मई 2020 से एलएसी पर गतिरोध में फंसी हुई हैं, जिसमें जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प शामिल है. यह झड़प दशकों में दोनों देशों के बीच सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष माना गया. इस संघर्ष के बाद से दोनों देशों के संबंधों में भारी गिरावट आई, और सीमा विवाद का पूर्ण समाधान अब तक नहीं हो पाया है. हालांकि, दोनों पक्षों ने कई संघर्ष बिंदुओं से अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया है.
चीनी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
बैठक के बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने भी एक बयान जारी किया, जो चीनी भाषा में था. इस बयान में कहा गया कि बैठक सकारात्मक, मित्रतापूर्ण और स्पष्ट माहौल में हुई. दोनों पक्षों ने एलएसी पर स्थिति को लेकर मतभेदों को कम करने और सहमति का विस्तार करने के लिए गहन विचारों का आदान-प्रदान किया. उन्होंने संवाद और परामर्श को मजबूत करने, एक-दूसरे की उचित चिंताओं का ध्यान रखने और जल्द से जल्द दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने पर सहमति व्यक्त की.
इस बिंदु पर दोनों देशों की सहमति
दोनों देशों ने परामर्श के परिणामों को मजबूत करने, सीमा-संबंधी समझौतों और विश्वास-निर्माण उपायों का कड़ाई से पालन करने और सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता को संयुक्त रूप से बनाए रखने के लिए सहमति व्यक्त की. इसके अलावा, उन्होंने हाल ही में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा प्राप्त महत्वपूर्ण सहमति के अनुसार सीमा स्थिति के जल्द समाधान को संयुक्त रूप से बढ़ावा देने पर भी सहमति व्यक्त की.
विदेश मंत्रियों की बातचीत
विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच 25 जुलाई को आसियान से संबंधित बैठकों के दौरान वियनतियाने में बातचीत हुई थी. इस वार्ता में दोनों मंत्रियों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर शेष विवादित स्थानों से सैनिकों की पूर्ण वापसी के लिए तत्परता से कार्य करने की जरूरत पर सहमति जताई थी. इसके पहले, जयशंकर और वांग यी के बीच 4 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान अस्ताना में भी द्विपक्षीय बैठक हुई थी.
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) का गठन किया गया है, जो सीमा विवाद के समाधान के लिए नियमित बैठकें करता है. बीजिंग में हुई इस 31वीं बैठक के माध्यम से दोनों देशों ने मतभेदों को कम करने और सीमा विवाद का समाधान खोजने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है. यह देखना बाकी है कि इन बैठकों के परिणामस्वरूप सीमा पर स्थिति में कितना सुधार आता है और दोनों देशों के बीच संबंधों में कितनी प्रगति होती है.
भारत के किन-किन हिस्सों पर चीन के साथ विवाद है?
1. पैंगोंग त्सो झील (लद्दाख): ये झील 134 किलोमीटर लंबी है, जो हिमालय में करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 44 किमी क्षेत्र भारत और करीब 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है. LAC भी इसी झील से गुजरती है. इस वजह से यहां कन्फ्यूजन बना रहता है और दोनों देशों के बीच यहां विवाद है.
2. गलवान घाटी (लद्दाख): गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है. यहां पर LAC अक्साई चीन को भारत से अलग करती है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिन्जियांग और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है. जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी.
3. डोकलाम (भूटान): वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है. ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक है. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं. भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है. 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव था.
4. तवांग (अरुणाचल प्रदेश): अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर चीन की नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. 1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था. 1962 की जंग में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन युद्धविराम के तहत उसे अपना कब्जा छोड़ना पड़ा था.
5. नाथू ला (सिक्किम): नाथू ला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है. ये भारत के सिक्किम और दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है. ये 14,200 फीट की ऊंचाई पर है. भारत के लिए ये इसलिए अहम है क्योंकि यहीं से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थयात्री गुजरते हैं. नाथू ला को लेकर भारत-चीन में कोई विवाद नहीं है. लेकिन यहां भी कभी-कभी भारत-चीन की सेनाओं में झड़पों की खबरें आती रही हैं.
सीमा पर शांति को लेकर अब तक क्या-क्या हुआ?
एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए तीन दशक में भारत और चीन के बीच पांच अहम समझौते हुए हैं. पहला समझौता 1993 में हुआ था. उसके बाद 1996 में दूसरा समझौता हुआ. फिर 2005, 2012 और 2013 में समझौते हुए.
1962 की जंग के बाद भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ गई थी. 1988 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया. इस दौरे ने रिश्तों को बेहतर करने में अहम रोल अदा किया. दोनों देशों के बीच सुधर रहे रिश्तों का ही नतीजा था 1993 और 1996 का समझौता.
1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चीन का दौरा किया. उस समय ली पेंग चीन के प्रधानमंत्री थे. उसी दौरे में ये समझौता हुआ था. इस समझौते में तय हुआ था कि कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ बल या सेना का इस्तेमाल नहीं करेगा. साथ ही ये भी तय हुआ कि अगर किसी देश का जवान गलती से एलएसी पार कर जाता है तो दूसरा देश उनको बताएगा और जवान फौरन अपनी ओर लौट आएगा.
इसी समझौते में ये भी कहा गया कि अगर तनाव बढ़ता है तो दोनों देश एलएसी पर जाकर हालत का जायजा लेंगे और बातचीत से हल निकालेंगे. इसके अलावा सैन्य अभ्यास से पहले जानकारी देने की बात भी इस समझौते में थी. इस समझौते पर भारत की ओर से तब के विदेश राज्य मंत्री आरएल भाटिया और चीन की ओर से उप-विदेश मंत्री तांग जियाशुआन ने दस्तखत किए थे.
सीमा पर कब-कब भिड़े दोनों मुल्क?
– 1962: चीन ने 20 अक्टूबर को भारत पर चौतरफा हमला कर दिया था और लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक कई किलोमीटर तक चीनी सैनिक घुस गए. 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा कर दी. पर तब तक अक्साई चीन उसने कब्जा लिया था. अरुणाचल में भी तवांग तक चीनी सेना घुस आई थी, लेकिन वो वहां से वापस लौट गई थी.
– 1967: सिक्किम के नाथू-ला दर्रा के पास दोनों देशों की सेनाओं में झड़प हुई थी. ये भारत का सबसे ऊंचा पर्वतीय दर्रा है, जो भूटान, चीन, तिब्बत और नेपाल के बीच स्थित है. अक्टूबर 1967 में चीनी सेना ने मशीनगन से भारतीय सेना पर हमला कर दिया था. इसमें भारतीय सेना के 80 जवान शहीद हो गए थे. जबकि, चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे.
– 1975: अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में चीन की सेना ने असम राइफल्स की पेट्रोलिंग टीम पर हमला कर दिया था. चीन की सेना ने घात लगाकर ये हमला किया था. इस हमले में भारत के चार जवान शहीद हो गए थे. भारत ने चीन पर सीमा पार करने का आरोप लगाया था, हालांकि चीन ने इसे खारिज कर दिया था.
– 2017: जून 2017 में चीन की सेना ने भूटान में पड़ने वाले डोकलाम में सड़क बनाने का काम शुरू किया तो भारतीय सेना ने रोक दिया. डोकलाम में सड़क निर्माण को लेकर हुए विवाद के बाद भारत और चीन की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने डटी रही थीं. हालांकि, कोई हिंसा नहीं हुई थी. दो महीने तक टकराव जैसी स्थिति होने के बाद चीन ने घुटने टेक दिए और डोकलाम से सैनिकों के पीछे हटाने की बात कही.
– 2020: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों में खूनी संघर्ष हुआ. चार दशकों का ये सबसे गंभीर संघर्ष माना गया था. 15-16 जून 2020 की रात को ये संघर्ष हिंसक हो गया. इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि, चीन ने आधिकारिक तौर पर अब तक सिर्फ अपने चार जवानों के मारे जाने की बात ही कबूल की है.
– 2022: दिसंबर में अरुणाचल में एलएसी के पास तवांग सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों में झड़प हो गई थी. चीन की सेना ने तवांग सेक्टर में घुसपैठ करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सैनिकों ने मजबूती से जवाब दिया था. झड़प में भारतीय सेना के कम से कम 6 जवान जख्मी हो गए थे.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved