नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय (Supreme Cour) ने सोमवार को 14 वर्षीय कथित दुष्कर्म पीड़िता (rape victim) को उसकी लगभग 28 सप्ताह की गर्भावस्था का चिकित्सीय गर्भपात (abort pregnancy) कराने की अनुमति दे दी। शीर्ष अदालत ने अस्पताल (hospital) द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट को ध्यान में रखकर आदेश दिया। रिपोर्ट में नाबालिग की चिकित्सीय समाप्ति की राय दी गई थी और कहा गया था कि गर्भावस्था जारी रहने से नाबालिग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए (जो इसे किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का अधिकार देता है) मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने लोकमान्य तिलक नगर मेडिकल कॉलेज और जनरल अस्पताल (एलटीएमजीएच) के डीन को निर्देश दिया है। गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मुंबई के सायन में तुरंत डॉक्टरों की एक टीम गठित की जाएगी।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने 19 अप्रैल को नाबालिग की मेडिकल जांच का आदेश दिया था। बता दें कि पीड़िता ने 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
SC ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को भी रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को इस नाबालिग के मेडिकल टेस्ट का आदेश दिया था। कोर्ट ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (LTMGH) से इस संबंध में रिपोर्ट देने को कहा था कि अगर पीड़िता चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराती है या उसे ऐसा न करने की सलाह दी जाती है तो इसका उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर क्या असर पड़ने की संभावना है।
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