भोपाल। मप्र में 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने संगठन का मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। नवंबर में भाजपा संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी की जा रही है। इसके तहत डेढ़ दर्जन जिलाध्यक्षों के बदले जाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए पार्टी सर्वे करा रही है। प्रदेश भर में ज्यादातर जिलाध्यक्षों का कार्यकाल इस साल नवंबर में खत्म हो रहा है। 2019 के नवंबर में संगठनात्मक चुनाव के बाद 33 नए जिलाध्यक्षों की पहली सूची 5 दिसम्बर 2019 को जारी हुई थी। इसके बाद 24 जिलाध्यक्षों की सूची अलग-अलग जारी हुई। पार्टी में केंद्र और राज्य स्तर पर संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया एक साथ चलती है। ऐसे में 2022 का साल संगठनात्मक चुनाव का है। वैसे, 2017 में जिलाध्यक्षों का कार्यकाल खत्म होने पर उन्हें हटाने की बजाय 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उनका कार्यकाल बढ़ा दिया गया था। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल भी अगले साल फरवरी में खत्म हो रहा है। ऐसे में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर भी चर्चाएं तेज हो चली हैं।
पांचवीं बार सत्ता में आने की कोशिश
प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां राजनीतिक दलों ने शुरू कर दी हैं। इस दौरान भाजपा पांचवीं बार सत्ता में आने की कोशिश में है। इसके लिए पार्टी की तरफ से जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट बनवाई जा रही है। जिसके आधार पर पार्टी प्रदेश के 15 जिलों में बदलाव की तैयारी में है। जिन जिलों से जिलाध्यक्षों की ज्यादा शिकायतें मिल रही हैं, उनको जल्दी बदला जा सकता है। निकाय चुनाव में जहां पार्टी के प्रत्याशियों की हार हुई या क्रॉस वोटिंग हुई, वहां भी अध्यक्षों को बदला जा सकता है। संगठन ने कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों के जरिए जिलाध्यक्षों की जानकारी मंगवाई है। इस आधार पर रिपोर्ट तैयार कराई जा रही है।
ऐसे जिलाध्यक्ष हटाए जाएंगे
जिलाध्यक्षों को हटाने के लिए पार्टी ने फार्मूला बनाया है। ऐसे जिलाध्यक्ष जो विधायकों, सांसदों समेत जनप्रतिनिधियों से समन्वय नहीं बना पाए उन्हें हटाया जाएगा। इसके अलावा जिन जिलाध्यक्षों ने पूर्व विधायकों, पूर्व पदाधिकारियों की राय नहीं लेकर मनमाने फैसले किए, जिससे चुनाव में हार हुई, जिन्होंने हाल में हुए चुनाव में अपनों को लड़ाया, पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा दिया, जिनका इम्पैक्ट पार्टी के फैसलों के मुताबिक नहीं आ रहा, उन्हें भी हटाया जाएगा। वहीं जिनमें राजनीतिक अनुभव की कमी है, इसका असर कामकाज पर भी पड़ा है। जो लगातार तीन बार तक जिलाध्यक्ष रह चुके हैं, उन्हें भी हटाया जा सकता है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में कई जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस पर सवाल उठाए गए हैं। खासतौर पर मालवा-निमाड़ और विंध्य क्षेत्र के जिले इसमें आगे हैं। डिंडोरी, मंडला, रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, नर्मदापुरम, कटनी, दमोह, अशोकनगर, बड़वानी, बालाघाट, राजगढ़ समेत करीब डेढ़ दर्जन जिलों के जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस ने इन चुनावों पर असर डाला है। कई जिलाध्यक्षों पर पार्टी के कैंडिडेट का विरोध करने के भी आरोप लगे हैं।
जिलाध्यक्षों ने दावेदारों के कराए निष्कासन
संगठन की जानकारी में आया है कि कुछ जिलाध्यक्ष रंजिश के चलते चुनाव के बहाने पार्टी के ईमानदार कार्यकर्ताओं को निशाने पर ले रहे हैं। ऐसे जिलाध्यक्षों के विरुद्ध निष्कासन का प्रस्ताव भेजेंगे। मामले को संगठन ने भी गंभीरता से लिया है। ऐसे जिलाध्यक्षों की वर्किंग पर नजर रखी जा रही है। विधानसभा चुनाव लडऩे के इच्छुक जिलाध्यक्ष अपने क्षेत्र के टिकट के दावेदारों का निष्कासन करा रहे हैं। भाजपा संगठन में व्यवस्था है कि कोई भी व्यक्ति एक ही पद पर दो कार्यकाल से अधिक समय तक नहीं रह सकता, इसलिए तय किया गया है कि कई जिलों के जिलाध्यक्ष जो लगातार दो बार से अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, संगठन उन्हें पद से मुक्त कर नई जिम्मेदारी सौंप सकता है।
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