नई दिल्ली। देश में शनिवार को लोकसभा चुनाव की तारीख की घोषणा (Lok Sabha election date announced) होने वाली है। इससे एक दिन पहले पश्चिम बंगाल (West Bengal) में तृणमूल कांग्रेस (TMC) को बड़ा झटका लगा है। टीएमसी से टिकट नहीं मिलने पर दो बड़े नेताओं ने पाला बदल लिया। अर्जुन सिंह और दिब्येंदु अधिकारी (Arjun Singh and Dibyendu Adhikari) ने शुक्रवार को भाजपा का दामन थाम लिया।
टीएमसी ने पश्चिम बंगाल के लिए अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी है। इस लिस्ट में सुवेन्दु अधिकारी के भाई दिब्येंदु अधिकारी को टिकट नहीं मिला। इसके बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि दिब्येंदु अधिकारी भाजपा में शामिल हो सकते हैं। इसी कड़ी में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने दिब्येंदु अधिकारी को पार्टी की सदस्यता दिलाई। टीएमसी की लिस्ट में बैरकपुर से सांसद अर्जुन सिंह का भी नाम नहीं था। ममता बनर्जी ने उनका टिकट काटकर मंत्री पार्थ भौमिक को उम्मीदवार घोषित कर दिया। इसे लेकर अर्जुन सिंह नाराज चल रहे थे। इसके बाद अर्जुन सिंह ने दिब्येंदु अधिकारी के साथ भाजपा जॉइन कर ली।
अर्जुन सिंह की भाजपा में घर वापसी है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था। इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान वे टीएमसी में शामिल हो गए थे। वहीं, सुवेन्दु अधिकारी के भाजपा में शामिल होने की वजह से टीएमसी ने उनके भाई और पिता का टिकट काट दिया। हालांकि, उनके पिता शिशिर अधिकारी ने पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।
बीजेपी की सदस्यता लेने के बाद अर्जुन सिंह ने कहा कि मैं 2019 में (बीजेपी से) सांसद बना और 2021 में मुझे पार्टी कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए बीजेपी से दूरी बनानी पड़ी। मैंने देखा कि पुलिस और गुंडों की मदद से टीएमसी सिर्फ सत्ता में रहना चाहती है। इसका सबसे ताजा उदाहरण हमने संदेशखाली में देखा। वहां सिर्फ एक ही संदेशखाली नहीं है, बल्कि बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में लोग इसी तरह संदेशखाली में रह रहे हैं।
बीजेपी में शामिल होने के बाद दिब्येंदु अधिकारी ने कहा कि यह मेरे लिए काफी अच्छा दिन है, क्योंकि मैं आज बीजेपी परिवार में शामिल हो गया। संदेशखाली सिर्फ बंगाल का नहीं बल्कि पूरे देश का मुद्दा है। बीजेपी पीड़ितों तक सबसे पहले पहुंची, कोई अन्य राजनीतिक दल ऐसा नहीं कर सका। लोगों को बंगाल की मुख्यमंत्री से बहुत उम्मीदें थीं, क्योंकि वह भी एक महिला हैं। बंगाल में महिलाओं को वो सम्मान नहीं मिलता जो मिलना चाहिए। वहां कानून का कोई शासन नहीं है।
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