नई दिल्ली: दो दिवसीय जी 20 शिखर सम्मेलन (g20 summit) आज रविवार को खत्म हो गया. इस सम्मेलन में चीन और रूस के राष्ट्राध्यक्ष (heads of china and russia) शामिल नहीं हुए थे. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) ने अपने प्रतिनिधि के रूप में चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग (Prime Minister Li Keqiang) को दिल्ली भेजा था. हालांकि चीन को जी 20 से बड़ा झटका लगने वाला है क्योंकि संगठन के अहम सदस्य इटली अब उसकी महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट BRI (Ambitious project BRI) से अलग होने का मन बना रहा है और उसने इस बारे में अपनी मंशा जाहिर भी कर दी है.
चीन की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) पर बेशुमार पैसा खर्च कर रहा है, लेकिन अब उसे इस प्रोजेक्ट पर इटली से झटका लगने जा रहा है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि इटली BRI से अलग होने की तैयारी में लग गया है. चीन के पीएम ली क्विंग से मुलाकात के दौरान इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की ओर से ऐसे संकेत भी दिए गए हैं.
चीनी प्रधानमंत्री ली ने आज शनिवार को शिखर सम्मेलन से इतर इतालवी पीएम मेलोनी से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की. यह मुलाकात इस मायने में अहम है क्योंकि इटली चीन की BRI से हटने की योजना बना रहा है क्योंकि उसका मानना है कि यह प्रोजेक्ट ‘अपेक्षित रिजल्ट नहीं दे सकी है.’
दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच यह बैठक इसलिए अहम मानी जा रही है क्योंकि इटली की सरकार ने खुले तौर पर बीआरआई से हटने की इच्छा जाहिर कर दी है. इटली का कहना है कि चीन की अरबों रुपये के प्रोजेक्ट से उसे कोई फायदा नहीं हो रहा है. हालांकि जॉर्जिया मेलोनी ने दिल्ली में ली से मुलाकात के दौरान अपने यहां पर निवेश और व्यापार करने के लिए ‘न्यायसंगत, निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण कारोबारी माहौल’ देने का वादा किया.
इससे पहले जी 20 सम्मेलन के दौरान भारत ने अमेरिका और कई अन्य देशों के साथ कल शनिवार को महत्वाकांक्षी इंडिया मिडिल ईस्ट कॉरिडोर (India-Middle East corridor) का ऐलान किया. इस नए कॉरिडोर को चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जवाब के रूप में देखा जा रहा है. इस कॉरिडोर में 8 देश शामिल हो रहे हैं.
इस कॉरिडोर की घोषणा भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, इटली, जर्मनी और यूरोपीय संघ के नेताओं ने जी 20 शिखर सम्मेलन से इतर संयुक्त रूप से की. इस करार के बाद भारत को फायदा यह होगा कि वह अरब सागर, ओमान की खाड़ी और फारस की खाड़ी के समुद्री रास्ते के जरिए सीधे संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से जुड़ जाएगा. अगर सब कुछ सही रहा तो यूएई और सऊदी अरब के बीच भारत की मदद से रेलवे लाइन भी बिछाई जाएगी.
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