मुंबई। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अदाकारी का सिक्का जमा दिया है. लगातार काम करते हुए एक्टर ने हर तरह के रोल प्ले किए. बिग बी (Big B) ने आज जो मुकाम हासिल किया है, उसके पीछे उनकी मेहनत और काम के प्रति लगन है. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने अपनी फिल्मी लाइफ में काफी उतार-चढ़ाव भी देखे हैं. यूं तो अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को लेकर बॉलीवुड(Bollywood) के गलियारों में कई किस्से सुनाए जाते हैं लेकिन एक कहानी उनके फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने की, जिसे टीनू आनंद (Tinu Anand) ने बताया था.
सबको पता है कि अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था. बात 1969 की है, अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के जीवन की पहली और आखिरी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी रिलीज हुई और इंडस्ट्री को एक उम्दा कलाकार मिल गया. इस फिल्म को मिलने का किस्सा भी काफी दिलचस्प है. इसके बारे में टीनू आनंद (Tinu Anand) ने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म में टीनू आनंद (Tinu Anand) लीड रोल कवि की भूमिका में थे और अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को टीनू आनंद (Tinu Anand) के दोस्त की भूमिका मिली थी. लेकिन टीनू आनंद (Tinu Anand) को किसी वजह से फिल्म छोड़नी पड़ गई और इस तरह लीड रोल प्ले करने का मौका अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) को मिल गया.
टीनू के मुताबिक ‘ख्वाजा अब्बास मेरे क्लोज फ्रेंड थे. अपने स्कूल और कॉलेज की छुट्टियों के दौरान मैं अब्बास साहब के पास जाता था और उनसे रिक्वेस्ट करता था कि मुझे अपनी फिल्मों में कोई छोटा-मोटा रोल दे दें. लेकिन उन्होंने मुझे सात हिंदुस्तानी में लीड रोल दिया. अब्बास साहब को हीरोइन की तलाश थी. उन्होंने दिल्ली में मेरे घर पर मेरी एक फ्रेंड नीना सिंह को देखा और पूछा कि क्या वह फिल्म में काम करना चाहेंगी. वह मान गईं. नीना ने मुझसे पूछा कि क्या मैं अब्बास साहब को कोलकाता में रहने वाले अपने एक फ्रेंड की तस्वीर दे सकती हूं. वह सिनेमा में काम करना और एक्टर बनना चाहता है. फिर विक्टोरिया मेमोरियल के सामने खड़े एक लंबे शख्स की फोटो दिखाई’. टीनू ने आगे बताया था कि ‘अब्बास साहब ने कहा कि उस शख्स को ऑडिशन के लिए अपने खर्च पर मुंबई आना होगा. इतना ही नहीं, कब ऑडिशन होगा ये भी पता नहीं है, इसलिए एस्पायरिंग एक्टर को इंतजार करना होगा और इसके लिए लिए पैसा भी नहीं मिलेगा. इस तरह अमिताभ बच्चन मुंबई पहुंचे. मैं ही उन्हें अब्बास साहब के ऑफिस ले गया. शाम को मुझे ही कहा गया कि इस फिल्म के लिए 5 हजार मिलेंगे,चाहे इसके बनने में एक साल लगे या पांच साल लगे. बंटी यानी अजिताभ और अमिताभ ने एक दूसरे को देखा, दोनों शॉक में थे. अमिताभ चूंकि फिल्म में एक्टिंग करने के लिए बेताब थे, इसलिए मान गए. फिर उन्हें सात हिंदुस्तानी में कवि के दोस्त का रोल मिल गया’. इसी बीच मेरे पिता को सत्यजीत रे का लेटर मिला कि मैं उनके साथ काम कर सकता हूं,ऐसे में मुझे सात हिंदुस्तानी छोड़नी पड़ी. मैं कलकत्ता के लिए रवाना हो गया और अमिताभ को कवि का लीड रोल प्ले करने को मिल गया, जो मुझे करना था. यह एक बहुत ही पॉवरफुल रोल था. इस फिल्म में अमिताभ ने जबरदस्त काम किया’. हालांकि बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म सफल नहीं रही लेकिन अमिताभ बच्चन के लिए सफलता के दरवाजे खोलने वाली फिल्म बन गई.