नई दिल्ली: नीति आयोग जल्द ही भारत की सबसे बड़ी सब्सिडी योजनाओं, नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट और एलपीजी सब्सिडी का मूल्यांकन करेगा, ताकि इस खर्च को तर्कसंगत बनाया जा सके, फर्जीवाड़ा रोका जा सके और और यह सुनिश्चित किया जा सके कि पात्र उम्मीदवारों तक लाभ पहुंच रहा है या नहीं. नीति आयोग के डेवलपमेंट मॉनेटरिंग और इवैल्यूएशन ऑफिस ने दो योजनाओं के इवैल्यूएशन के लिए सेंट्रल कॉर्डिनेशन एजेंसी के लिए प्रपोजल मंगाए हैं. इन दोनों योजनाओं पर सरकारी खजाने से हर साल लगभग 4,00,000 करोड़ रुपये खर्च हो जाते हैं.
डीएमईओ ने आरएफपी डॉक्युमेंट्स में कहा कि सरकार 2013 में अधिनियमित नेशनल फूड सिक्योरिटी एक्ट यानी एनएफएसए के माध्यम से दुनिया में सबसे बड़े पब्लिक फूड और न्यूट्रिशनल सेफ्टी को लागू करती है. ताज्जुब की बात तो ये है कि भारत में फूड सेफ्टी पर इतने बड़े खर्च के बाद भी परिणाम कुछ खास अच्छे देखने को नहीं मिले हैं. ग्लोबल हंगर में भारत की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है.
एलपीजी सब्सिडी की वैल्यूएशन के पीछे तर्क बताते हुए डीएमईओ ने आगे कहा कि चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एनर्जी कंज्यूमर है. डीएमईओ ने आगे जोड़ते हुए कहा कि भारत में एलपीजी की वर्तमान खपत केरोसिन की 1.13 फीसदी की तुलना में कुल पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का 12.3 फीसदी तक बढ़ गई है. चालू योजनाओं से संभावित रूप से एलपीजी का उपयोग और बढ़ेगा, जिससे उनका मूल्यांकन अनिवार्य हो जाएगा.
टीपीडीएस के तहत फूड सब्सिडी को लागू करने की लागत 2021 के संशोधित अनुमान के अनुसार 4,22,618.11 करोड़ रुपये थी, जबकि एमडीएम और आईसीडीएस को लागू करने की लागत क्रमशः 12,900 करोड़ रुपये और 17,252.21 करोड़ रुपये थी. डीएमईओ के अनुसार, भारत में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कंजंप्शन देश की ऊर्जा जरूरतों का एक तिहाई से अधिक है. इसके अलावा, बढ़ती जनसंख्या, आर्थिक विकास और क्लीन एनर्जी की डिमांड के साथ तेल और गैस की मांग पिछले कुछ वर्षों में बढ़ रही है.
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