अमेरिका में अगले माह राष्ट्रपति बनने जा रहे जो बाइडन से भारत के साथ संबंध विस्तार की उम्मीद लगाई जा रही है। दोनों देशों के कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि वह चीन के खिलाफ भारत के साथ सैन्य साझेदारी मजबूत करने के साथ-साथ आपसी व्यापार समझौते बढ़ाने पर ज्यादा जोर दे सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही बाइडन के भारत में मानवाधिकार और घरेलू मामलों में दखल देने की बात उठ रही हो, लेकिन इस वक्त अमेरिका के लिए चीन से निपटना कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती है। ऐसे में जो बाइडन नई दिल्ली के प्रति मौजूदा रणनीति में ज्यादा परिवर्तन करने की हालत में नहीं होंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक एशियाई क्षेत्र में सत्ता संतुलन के लिए भारत की बढ़ती अहमियत के चलते ट्रंप प्रशासन में दोनों देश पहले के मुकाबले और करीब आए हैं जिसे आगे भी जारी रखा जाना चाहिए। हाल ही में अमेरिकी उप विदेश मंत्री स्टीफन बिगन ने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौर से रिश्तों में और तेजी आई है। वाशिंगटन में कार्नेगी एंडावमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो एशली जे टेलिस मानते हैं कि फिलहाल अमेरिका को भारत के कई मायनों में जरूरत है, इसमें सबसे बड़ा कारण चीन ही है।
एक समय चीन के उदय को ‘महान ताकत’ के रूप में देखने वाले जो बाइडन ने पिछले दिनों उसके खिलाफ सख्त रुप अपनाया है। इसके चलते हुए अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की बहुपक्षीय साझेदारी (क्वॉड) का इस्तेमाल भारत-प्रशांत क्षेत्र में सत्ता संतुलन के लिए जारी रख सकते हैं। कुछ विशेषज्ञ चीन के खिलाफ जो बाइडन के कड़े कदम उठाने की संभावनाओं से इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि जो बाइडन की रणनीति ट्रंप की तरह शायद ही ज्यादा सख्त हो, जिसका भारत को खास लाभ नहीं होगा। नई दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में प्रोफेसर ब्रह्मा चेलानी कहते हैं कि अगर अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चीन पर नरम हैं तो भारत को भी द्विपक्षीय साझेदारी पर फिर से सोचना होगा।
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