डेस्क। जल, जंगल और जमीन, इन तीन तत्वों के बिना प्रकृति की कल्पना नहीं की जा सकती है। जंगल हैं तो वन्य जीव हैं। जल है तो जलीय जीवों का अस्तित्व है और उससे भी ज्यादा अहम हमारे जीवन का अस्तित्व है। दुनिया में सबसे समृद्ध देश वही हुए हैं, जहां जल, जंगल और जमीन पर्याप्त मात्रा में हों। हमारा देश नदियों, जंगल और वन्य जीवों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
प्रकृति बची रहेगी, तभी जीवन बचेगा। इसी के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से हर साल 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाया जाता है। देश पहले से ही कोरोना महामारी से जूझ रहा है और कई राज्य बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा झेल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से लगातार कई भूकंप भी आ चुके हैं। इसी बात की चिंता बॉलीवुड अभिनेत्री भूमि पेडनेकर को भी सता रही है। भूमि ने विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस को लेकर कई अहम बातें कही हैं जो वाकई सोचने पर मजबूर कर रही हैं।
ऐसा पहली बार नहीं है जब भूमि प्रकृति के बारे में चिंता व्यक्त कर रही हों, पहले भी कई बार उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। भूमि एक नेचर एक्टिविस्ट भी हैं। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) के मौके पर भूमि ने आने वाली पीढ़ी को लेकर अपनी बात रखी है।
एक बातचीत के दौरान भूमि पेडनेकर ने कहा, ‘हम उस कगार पर पहुंच गए हैं जहां चीजें नियंत्रण से बाहर हो गई हैं। यदि देखें कि आपके आसपास क्या हो रहा है तो आपको भी परेशानी होगी। जैसे जर्मनी, महाराष्ट्र के कुछ हिस्से और चीन में अचानक बाढ़ आ जाती है, यह सब काफी परेशान कर देने वाला है। अमेरिका के जंगल में आग लगी है, कनाडा में लू चल रही है। अब हमे समझ लेना चाहिए कि ये चीजे हमारे नियंत्रण से बाहर हो गई हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए यह अच्छा नहीं होगा।’
भूमि ने आगे कहा कि, ‘आज का दिन यह महसूस करने के लिए ही है कि हमारे पास जो कुछ भी बाकी है उसे बचा कर रखना होगा। यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य है। हमारे नेताओं और आम जनता को यह स्वीकार करने की आवश्यकता है कि हम अभी भी जो कर रहे हैं वह ठीक नहीं है। हमें प्रकृति और विभिन्न प्रजातियों के साथ रहने की आवश्यकता है। हम मनुष्य इतने स्वार्थी हैं, हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि हम प्रकृति और अपने संसाधनों का दुरुपयोग नहीं कर सकते।’
भूमि का कहना है, ‘उनके सामने कई चुनौतियां हैं खासकर प्रकृति के संरक्षण की गंभीरता पर लोगों की शिक्षा को लेकर। सबसे कठिन यही होता है कि जब आप लोगों को इसके बारे में बताते हैं तो वो कहते हैं कि यह वास्तविक नहीं है। ऐसे लोगों के लिए मैं कहना चाहूंगी कि वे झूठ में जी रहे हैं और सच का सामना नहीं करना चाहते हैं।’
हालांकि, भूमि ने यह भी कहा, ‘मुझे लगता है कि काफी लोगों ने इसके बारे में सोचना शुरू कर दिया है और उनकी सोच में बदलाव आया है। कोरोना काल में हमने एक सबक सीखा है कि इसने अपना भयावह रूप दिखाया और लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। अब लोग प्रकृति के प्रति दयालु हो रहे हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, हमें और भी बहुत कुछ करना होगा।’
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