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    भोपाल-इंदौर पुलिस में होगी बड़ी उटापटक

  • August 08, 2022

    • 15 अगस्त के बाद कमिश्नर प्रणाली की गहन समीक्षा करेगी सरकार

    रामेश्वर धाकड़
    भोपाल। प्रदेश में भोपाल-इंदौर में काननू-व्यवस्था को मजबूत बनाने की दृष्टि से लागू की गई पुलिस कमिश्नर प्रणाली को 8 महीने बीत गए हैं। नई प्रणाली के बाद दोनों शहरों में अपराधों में कोई खास गिरावट तो देखने को नहीं मिली है। अब सरकार 15 अगस्त के बाद गृह विभाग की समीक्षा करने जा रही है, जिसमें भोपाल एवं इंदौर की कानून-व्यवस्था पर ज्यादा फोकस रहेगा। इस समीक्षा के बाद दोनों शहरों की पुलिस में बड़ा उलटफेर हो सकता है। सालों से जमे आरक्षक से लेकर थाना प्रभारी, एसीपी, एडीसीपी, डीसीपी तक को बाहर किया जाएगा।
    प्रदेश में भोपाल एवं इंदौर में 9 दिसंबर 2021 से आनन-फानन में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू थी। नई व्यवस्था लागू होने के बाद दोनों शहरों में किस तरह के अपराध बढ़े हैं और किस तरह के अपराध घटे हैं। इसकी अभी तक गहन समीक्षा नहीं की गई है। पीएचक्यू एवं गृह मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए ठोस कदम उठाने वाले हैं। ऐसे में कमिश्नर प्रणाली वाले दोनों शहरों में नई व्यवस्था लागू होने के बाद घटित अपराधों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा चुका है। कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद भी भोपाल एवं इंदौर पुलिस में ज्यादातर पुराने चेहरे हैं। सिर्फ भोपाल में कमिश्नर एवं एडिशनल कमिश्नर स्तर के अफसरों की नई पोस्टिंग की गई। जबकि इंदौर में कोई बदलाव नहीं किया गया। ऐसे में दोनों शहरों में सालों से जमे पुलिसकर्मी एवं अफसरों के व्यापक स्तर पर बदलने पर मंथन चल रहा है। इसके लिए राज्य शासन को पीएचक्यू से सुझाव आया है कि दूसरे जिलों में बेहतर परफॉर्मेंस और साफ छवि वाले पुलिस कर्मी और अफसरों को इन दोनों शहरों में पदस्थ किया जाए।


    पीएचक्यू तैयार कर रहा रिपोर्ट
    पुलिस महानिदेशक सुधीर सक्सेना भी मप्र पुलिस में काफी सुधार के पक्ष में है। थानों का रात्रि कालीन निरीक्षण से लेकर पिछले दिनों भोपाल में 10 किमी का पैदल मार्च डीजीपी की इसी रणनीति का हिस्सा है। पुलिस मुख्यालय कमिश्नर प्रणाली वाले शहरों से लेकर अन्य दूसरे महानगर एवं जिलों के अपराध पर रिपोर्ट तैयार कर रहा है। जिसमें थाना और थानेदारों की परफॉर्मेंस भी शामिल है। ऐसे में महानगरों में सालों से जमे थानेदारों को दूसरे शहरों में भेजा जा सकता है। यदि राजनीतिक दखल नहीं हुआ तो पीएचक्यू जल्द ही बड़ा उलटफेर कर सकता है।

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