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    हिंदी में ही व्यक्त होता है भारतवर्ष

  • November 22, 2021

    – हृदयनारायण दीक्षित

    ध्वनि का रूप नहीं होता। संसार रूपों से भरापूरा है। समाज रूप को नाम देता है। नाम शब्द ध्वनि होते हैं। भारतीय चिंतन में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। प्रत्येक शब्द का अर्थ होता है। प्रत्येक शब्द ध्वनि होता है। ध्वनि के रूप का अर्थ निश्चित हो जाने के बाद शब्द का जन्म होता है। शब्दों के व्यवस्थित प्रयोग से भाषा बनती है। भाषा सामाजिक संपदा है। भाषा सामाजिक सरोकारों का उपकरण है। भाषा समाज गढ़ने का भी माध्यम है। समाज ही भाषा गढ़ता है। भाषा संस्कृति की संवाहक है। शब्द भाषा के घटक हैं। भाषा और शब्द मूल्यवान हैं। वृहदारण्यक उपनिषद में शब्द को ब्रह्म कहा गया है। ऐतरेय उपनिषद् में वाणी के उद्भव का विवरण है। शब्द की क्षमता विराट है। पुराणों के अनुसार ईश्वर को भी शब्द से प्राप्त किया जा सकता है। वैदिक स्तुतियाँ शब्द ही हैं। बाइबिल के अनुसार प्रारंभ में शब्द ही था। भाषा मनुष्य द्वारा रचित सबसे बड़ी संपदा है। भाषा से इतिहास है, भाषा से संस्कृति है, भाषा से प्रीति है और भाषा से सभ्यता। हिन्दी भारत की स्वाभाविक प्रीति है। राष्ट्र हिन्दी में व्यक्त होता है, हिन्दी में दुखी होता है और हिन्दी में ही आनन्दित। हिन्दी भारत की राजभाषा है। लेकिन दुर्भाग्य से हिन्दी को वह स्थान नहीं मिला जिसका उसे अधिकार है। यहां अंग्रेजी का आकर्षण है।

    अंग्रेजी के वर्चस्व और आकर्षण से आहत महात्मा गाँधी ने लिखा था पृथ्वी पर हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहाँ माँ-बाप अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी पढ़ाना पसंद करेंगे। अंग्रेजी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा कहा जाता है, लेकिन भारत में एक प्रतिशत लोग भी अंग्रेजी नहीं जानते। जापान, रूस, चीन आदि देशों में अंग्रेजी की कोई हैसियत नहीं है। भारत के बाहर अमेरिका, पाकिस्तान, नेपाल, इण्डोनेशिया, बांग्लादेश, फ्रांस, जर्मनी, सउदी अरब, रूस आदि देशों में लाखों हिन्दी भाषी हैं। एशिया महाद्वीप के 48 देशों में ही भारत छोड़ किसी भी देश की मुख्य भाषा अंग्रेजी नहीं है। अजर वैजानकी भाषा, अजेरी और तुर्की, अरमेनियम की अरमेनियम, इजराइल की हिब्रू, इरान की फारसी, सउदी अरब, सीरिया, जार्डन, यमन, बहरीन, कुवैत की भाषा अरबी है। चीन, ताइवान, सिंगापुर की मंदारिन, दोनों कोरिया की कोरियाई, लंका की सिंहली है।

    भारतीय संविधान सभा में राजभाषा पर लम्बी बहस चली थी। पंडित नेहरू ने कहा था हमने अंग्रेजी इस कारण स्वीकार की कि वह विजेता की भाषा थी। अंग्रेजी चाहे कितनी ही अच्छी हो, किन्तु उसे हम सहन नहीं कर सकते।“ बेशक अंग्रेजी विजेता की भाषा थी। 1947 के बाद हिन्दी भी विजेता की भाषा है। अंग्रेज जीते। अंग्रेजी लाये। हम भारत के लोग स्वाधीनता संग्राम जीते लेकिन अपनी मातृभाषा को प्रतिष्ठित नहीं कर पाये। 12 सितम्बर, 1949 को एनजी आयंगर ने संविधान सभा में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा। 15 वर्ष अंग्रेजी को जारी रखने का कारण बताया। कहा कि हमें यह मानना चाहिए कि हिन्दी समुन्नत भाषा नहीं है।

    दुर्भाग्य से राजभाषा के प्रस्तावक आयंगर ही हिन्दी को कमतर बता रहे थे। स्वाधीनता संग्राम की भाषा हिन्दी थी। अंग्रेज स्वाभाविक ही अंग्रेजी को वरीयता दे रहे थे। प्रत्येक भाषा के संस्कार होते हैं। भारत में अंग्रेजी भाषा के साथ विदेशी संस्कार भी आए। प्रभु वर्ग के मन वचन में अंग्रेजी का आकर्षण बढ़ा। गाँधी जी ने कहा था कि अंग्रेजी ने हिन्दुस्तानी राजनीतिज्ञों के मन में घर कर लिया है। मैं इस बात को अपने देश और मानवता के प्रति अपराध मानता हूं।” गाँधी जी ने बीबीसी पर कहा दुनिया वालों को बता दो, गाँधी अंग्रेजी नहीं जानता।

    अंग्रेजी हिन्दी की तरह व्यवस्थित व्याकरण अनुशासित भाषा नहीं है। हिन्दी में दुनिया की श्रेष्ठ भाषा संस्कृत के संस्कार हैं। अमेरिकी भाषा वैज्ञानिक ब्लूम फील्ड ने ‘लैंगवेज‘ में लिखा था कि यार्कशाय के व्यक्ति की अंग्रेजी को अमेरिकी नहीं समझ पाते। भाषाविद् चिंतक डाॅ. रामविलास शर्मा ने भाषा और समाज में लिखा है कि अंग्रेजी के भारतीय प्रोफेसरों को हालीवुड की फिल्म दिखाइए। पूछिए कि वे कितना समझे। व्याकरण, लिपि और शब्द ध्वनि की भिन्नता के कारण अंग्रेजी बोलने के अनेक ढंग हैं। लेकिन हिन्दी सुबोध है।

    भाषा संस्कृति की संवाहक होती है। गाँधी जी ने लखनऊ में अखिल भारतीय भाषा सम्मेलन में कहा मेरी हिन्दी टूटी-फूटी है, मैं टूटी-फूटी हिन्दी ही बोलता हूं। अंग्रेजी बोलने में मुझे पाप लगता है। संविधान सभा में सेठ गोविंद दास ने हिन्दी का पक्ष रखा। आरबी धुलेकर ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बताया। मैं कहता हूं कि वह राजभाषा है। राष्ट्रभाषा भी। अंग्रेजी की टक्कर हिन्दी से थी, हिन्दी की टक्कर भारतीय भाषाओं से नहीं है। सभी भारतीय भाषाएं भारतीय संस्कृति की संवाहक हैं। अंग्रेजी राजकाज की भाषा थी और हिन्दी राष्ट्रभाषा। अंग्रेजी भारतीय प्रीति-रीति-नीति और संस्कृति की भाषा नहीं है।

    जीवन की सभी गतिविधियों में न्यायपालिका का काम अनिवार्य है। राष्ट्र जीवन की सभी गतिविधियों में न्यायपालिका की उपस्थिति है। न्याय किसी भी समाज का उच्चतम क्षेत्र होता है। व्यथित वादी देश की किसी भी भाषा में अपना अभ्यावेदन दे सकते हैं। यह अधिकार संविधान ने दिया है। न्यायालय कार्यवाही की भाषा मातृभाषा ही होनी चाहिए। इससे वादी व प्रतिवादी अपना पक्ष आसानी से समझ जाते हैं। न्यायालय की कार्यवाही उनकी समझ में आसानी से आती है। अंग्रेजी की न्यायिक कार्यवाही वादी प्रतिवादी नहीं समझ सकते। न्यायालयों में मातृभाषा का चलन जरूरी है।

    इंग्लैंड में पहले पार्लियामेंट नहीं थी। सन् 1300 तक विधि और प्रशासन की भाषा लैटिन थी फिर फ्रेंच भाषा का प्रयोग होने लगा। एडवर्ड तृतीय के समय लोग अपना प्रतिवेदन अंग्रेजी में देते थे, लेकिन अधिनियम लैटिन या फ्रेंच में ही बनते थे। धीरे-धीरे अंग्रेजी ने फ्रेंच और लैटिन को विस्थापित किया। ब्रिटेन में भी न्यायपालिका के क्षेत्र में अंग्रेजी को काफी संघर्ष करना पड़ा। क्रामवेल के समय माँग उठी कि विधि और न्याय के क्षेत्र में अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग हो। सन् 1650 में तय हुआ कि न्यायालयों की भाषा अंग्रेजी हो। ब्रिटेन में भी अंग्रेजी भाषा के न्यायालयों में प्रवेश के लिए काफी संघर्ष चला था। हिन्दी भाषा के लिए हम सबके प्रयास भी वैसे ही है। संविधान के अनुसार जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में तथा विधेयकों, अधिनियमों की भाषा अंग्रेजी रहेगी। अनुच्छेद-348 के अनुसार उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय संसद के सदन व राज्य विधानमंडल के सदन में पुनर्स्थापित विधेयक के अधिकृत पाठ राष्ट्रपति व राज्यपाल के अध्यादेश अंग्रेजी में होंगे।

    अनुच्छेद-348 के खण्ड-2 में कहा गया है कि ”खण्ड-1 के खण्ड-क में किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है हिन्दी भाषा का या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनाओं के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।“ इसलिए उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय हिन्दी या किसी क्षेत्र विशेष में बोलने वाली भाषा का उपयोग संविधान सम्मत है। यही समय की माँग है। उप्र के वाराणसी में इसी माँग को लेकर एक सम्मेलन हुआ। इसका उद्घाटन केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया। हिन्दी सहित सभी भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा प्रशंसा हुई।

    (लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।)

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