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    शांत समृद्ध भारत के विकास के लिए भारतीय जनता पार्टी ही समर्पित

  • January 17, 2022

    -अम्बरीष कुमार सक्सेना

    भारतीय संविधान ने हम सभी को वोट का अधिकार दिया है पर इस अधिकार को यदि विवेक या सोच-विचार के बजाय क्षणिक आवेश के या व्यक्तिगत स्वार्थ या इच्छाओं महत्वकांक्षाओं के चलते किया जाये तो यही अधिकार कहीं न कहीं आत्मघाती भी साबित हो सकता है।

    विधानसभा व लोकसभा के चुनाव लोकलबॉडी के चुनाव नहीं हैं कि आप व्यक्ति को चुने यहां आप सरकार को चुनते हैं। मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री को चुनते हैं। इस समय हर पार्टी भांति-भांति के चासनी में लिपटे हुए वायदे ला रही हैै लेकिन आइए इन सभी को बिंदुवार विश्लेषण करने का प्रयास करें।

    1. फ्री घोषणाएं-
    वस्तुतः फ्री कुछ भी नहीं होता क्योंकि फ्री नेता न तो अपनी जेब से करते हैं न पार्टी फंड से, वह सरकारी पैसे से करते हैं जो आपका अपना पैसा है। इस बात को नेता बहुत बेशर्मी से कहते हैं मैं अमीरों से लेकर गरीबों को दूंगा। मित्रों, यह बताओ अमीर भी तो वह पैसा कहां से लाएंगे। जाहिर सी बात है कि वह अपने ग्राहक जिसमें अमीर-गरीब सभी हैं उन्हीं से लेकर सरकार को देते हैं।

    एक पार्टी जो तथाकथित ईमानदारी आंदोलन की देन है (वामपंथ व क्रिप्टो क्रिश्चियन के मिश्रण है व एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं) वह तो एक बड़ा ही मासूम सा जवाब देते हैं जब विधायकों व मंत्रियों को फ्री मिलता है तो पब्लिक को क्यों नहीं। यह तो वही बात हुई कि हम चोर को चोरी से रोकेंगे नहीं पर यदि वह कर रहा है तो मैं भी करूंगा। अगर आप इतने ही संजीदा हैं तो आप अपने मंत्रियों या विधायकों को दी जाने वाली सभी सुविधाएं बंद करवा दें। संसद में एक बिल ला सकते हैं। आप सभी राजनीतिकों का असली चेहरा सामने आ जाएगा।

    2. लड़की हूं लड़ सकती हूं-
    एक राष्ट्रीय पार्टी की वीरांगना बिल्कुल वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर नारा लड़की हूं लड़ सकती हूं दे रही हैं (यद्यपि वह वामपंथी विचारधारा हिंदी चीनी भाई-भाई की ही वंशज हैं)। अरे भाई भारतीय संस्कृति में नर व मादा के सभी संबंध सह अस्तित्व प्रेम व सौहार्द के हैं चाहे वह मां-बेटे, भाई-बहन, पिता-पुत्री या पति-पत्नी के बीच हो, यह सभी एक दूसरे के पूरक हैं। इन को आपस में लड़वाकर आप समाज का क्या भला कर रहे हैं। मेरी समझ से परे है।

    3. महंगाई-
    वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा हर नेता इस पर रुदाली कर रहा है पर मतदाताओं को हर पार्टी से यह पूछना चाहिए कि उनके पास क्या रोड मैप है? कि महंगाई कम हो- क्या वह ज्यादा नोट छाप कर सोना बेचकर या उधार, पेट्रोल लेकर महंगाई कम करेंगे (अतीत में ऐसा हो चुका है)। दूसरा प्रैक्टिकली तौर पर हमें महंगाई बढ़ने के कारकों पर भी विचार करना चाहिए। जिस तरह कि अचानक एक भयंकर महामारी ने घेरा उसमें अप्रत्याशित खर्चे बढ़ गए देश की सुरक्षा पर भी काफी कुछ खर्च करना पड़ा। हमको यह भी सोचना पड़ेगा कि सरकार ने जो ज्यादा टैक्स लिए उनका सही उपयोग हुआ या नहीं। (हां एक ओर महंगाई से पीड़ित सबसे ज्यादा गरीब ही हैं, मुझे सोचना चाहिए सरकार ने मदद की या नहीं)। यह अप्रत्याशित खर्चे भी हमेशा रहने वाले नहीं उम्मीद करनी चाहिए की महंगाई पर भी अंकुश पा लिया जाएगा।

    4. बेरोजगारी-
    चुनावी मौसम में बेरोजगारों के भी बहुत शुभचिंतक हो गए उन सभी से यह पूछना चाहिए कि उनके पास क्या रोडमैप है। वह कैसे बेरोजगारी दूर करेंगे। कैसे वह नौकरी सृजित करेंगे। उनके लिए संसाधन कहां से लाएंगे। वायदा करने में क्या लगता है। क्या वह उद्योगों को सुविधा सुरक्षा देकर नौकरी के अवसर बढ़ाएंगे या कोई दूसरा रास्ता है।

    5. महामारी नियंत्रण-
    महामारी पर सरकार की बहुत आलोचना हो रही है। मतदाताओं को सभी पार्टियों से यह पूछना चाहिए कि यदि वे सरकार में होते, तो कैसे मैनेज करते? कैसे इतने वैक्सीन, पीपीई किट, अस्पताल, ऑक्सीजन व वैक्सीन मैनेज करते? जुबान चलाने में व हवा हवाई वायदा करने में कुछ नहीं लगता।

    अब इस चुनाव के कुछ और मुद्दों पर भी मंथन करना होगा कि यहां बहुत सी पार्टियां कुछ जातिगत कुछ तथाकथित ईमानदार, कुछ दूर प्रदेश से जैसे एनसीपी शिवसेना, यह सब यहां यूपी में सरकार बनाने के लिए इलेक्शन नहीं लड़ रहे बल्कि यह सब वोट काटने के लिए। तो किसके वोट काटने के लिए और उनका अंतिम लक्ष्य किसको कुर्सी पर बैठाना, किसको हराना है। इस सबके लिए फंड कहां से आया। इस पर भी मतदाताओं को मंथन करना चाहिए।

    अतः अपने मत का प्रयोग करते हुए मतदाता को सोचना चाहिए कि कौन देश के समग्र विकास सुरक्षा के लिए उचित रहेगा। कौन एक स्थिर सरकार दे सकता है। विदेशी शक्तियां कभी भी भारत में स्थिर व मजबूत सरकारें नहीं पसंद करती हैं। क्योंकि इतिहास ने हमारे वर्तमान को तय किया है और हमारे कार्य आगे आने वाली पीढ़ियों का भाग्य तय करेंगे, तो वोट सोच समझकर करना चाहिए।

    यदि आपने एक कमजोर व्यक्ति को चुना, जैसे गोर्वाचोव रूस की तरह, को आपके देश के भी टुकड़े होने में देर नहीं लगेगी। यदि आपने हामिद करजई जैसे भ्रष्ट नेता को चुना तो आपको अपने ही देश से प्रताड़ित होकर भागना पड़ सकता है। भले ही आप एक ही धर्म के हों, जैसे अफगानिस्तान में और यदि केवल अपनी जाति या समूह को ध्यान में रखकर वोट दिया। तो कहीं ना कहीं आप अनजाने में ग्रह युद्ध की प्रस्तावना लिख रहे हैं क्योंकि समाज व राष्ट्र केवल एक जातीय समूह का नहीं हो सकता और यह चीजें भविष्य में राष्ट्र को तोड़ भी सकती हैं। जैसा कि विदेशी शक्तियां चाहती हैं और ऐसा चेकोस्लोवाकिया वह अफ्रिका में हो चुका है और याद रखिए दुनिया में छोटे मुल्कों का कोई वजूद नहीं होता वह डायरेक्ट या इनडायरेक्ट तरीके से सुपर पावर्स के गुलाम ही रह जाते हैं।

    एक उदाहरण और भी देना चाहूंगा कि यदि एक व्यक्ति 100 रुपये का आम खरीद के आपको खिलाता है और दूसरा आदमी 100 रुपये के आम के पेड़ लगा देता है जो आपकी आगे आने वाली पीढ़ी को आम खिलाता रहेगा। आप खुद तय कीजिए कि आपको किस व्यक्ति को चुनना है।

    6. जातीय नेताओं से सावधान-
    आजकल जातिवादी नेता बरसाती मेढकों की तरह आ गए हैं। वह अपने स्वार्थ के लिए जातीय भावनाएं भड़का रहे हैं। समाज केवल एक जाति या एक जातीय समूह से नहीं बनता, न ही एक जाति का वर्चस्व रहता है। समाज व राष्ट्र (भारत) विभिन्न जातियों का मिश्रण है, जिसमें अनादिकाल से सभी जातियां समन्वय से रहती थी। कुछ कमियां हो सकती हैं, उनको सुधारने की कोशिश की जानी चाहिए पर जातीय उन्माद फैलाकर समाज में विघटन ना पैदा करें। नेता भी जाति के आधार पर केवल आपको वोट बैंक ही समझते हैं लेकिन यदि गंभीरता से सोचें यदि इसी तरह जातीय वैमनस्यता बढ़ती रही, तो इसका अंतिम परिणाम क्या होगा? पहले धीरे-धीरे जातीय झगड़े होंगे, जो आगे चलकर बड़े गृह युद्ध में परिवर्तित हो सकते हैं। मैं आपको डरा नहीं रहा हूं पर यह सब इसी दुनिया में हो चुका है व कई जगह हो रहा है। हमें आपको सोचना होगा कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक युद्धरत समाज देना चाहते हैं या एक शांत समृद्ध भारत.. तय आपको करना है! शांत समृद्ध भारत के विकास के लिए भारतीय जनता पार्टी ही समर्पित है। अन्य नहीं।

    (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं)

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