– बालकृष्ण उपाध्याय
गुजरात सरकार ने स्कूलों में जो भगवत गीता पढ़ाने का निर्णय लिया है, यह निर्णय वाकई तारीफ के काबिल है। भगवत गीता हमें नैतिकता और आचरण की सीख प्रदान करती है । जिसको भगवत गीता की समझ हो वह कभी भ्रष्टाचार, दुराचार नहीं कर सकता, क्योंकि गीता में लिखा है खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ ही जाना है । गीता व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी के लिए सचेत करती है, क्या अच्छा है और क्या बुरा है यह भी गीता से ही हमें सीखने को मिलता है। क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो, किससे व्यर्थ डरते हो, कौन तुम्हें मार सकता है। आत्मा ना कभी पैदा होती है और ना कभी मरती है यह संदेश भी भगवत गीता हमें सिखाती है।
व्यक्ति को निराशा से बाहर निकालने का काम भी भगवत गीता ही करती है। गीता में लिखा है, निराश मत होना, कमजोर तेरा वक्त है, तू नहीं। जीवन में आनंद कैसे प्राप्त करना है यह भी गीता से ही हमें सीखने को मिलता है, क्योंकि गीता में लिखा है बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा, जो होता है वह अच्छे के लिए होता है इसलिए वर्तमान का आनंद लो, भविष्य की चिंता मत करो। क्रोध करने से गीता ही हमें रोकती है क्योंकि गीता में लिखा है क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है, जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं, जब तर्क नष्ट हो जाते हैं तो व्यक्ति का पतन होना शुरू हो जाता है इसलिए हमें क्रोध नहीं करना चाहिए।
गीता में यह भी लिखा है कि ईश्वर से कुछ मांगने पर ना मिले तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए क्योंकि ईश्वर वह नहीं देता जो आपको अच्छा लगता है बल्कि वह देता है जो आपके लिए अच्छा होता है। इसलिए भगवत गीता से यह सीख मिलती है कि जो मिला है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। भगवत गीता में लिखा है जो चीज हमारे हाथ में नहीं है उसके विषय में चिंता करने से कोई फायदा नहीं। गीता में यह भी लिखा है कि मेरा-तेरा, छोटा- बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो । फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो। गीता में लिखा है सत्य कभी दावा नहीं करता कि मैं सत्य हूं, लेकिन झूठ हमेशा दावा करता है कि सिर्फ मैं ही सत्य हूं। इसलिए झूठ के पीछे मत पड़ो और सत्य की राह पर चलते रहो क्योंकि सत्य कभी परिवर्तित नहीं होता है।
अगर बचपन से ही स्कूलों में यदि बच्चों को गीता का ज्ञान हो जाएगा तो वह बड़ा होकर किसी भी पद पर क्यों ना चला जाए, कितना भी बड़ा आदमी क्यों ना हो जाए, लेकिन वह कभी किसी के साथ गलत नहीं कर सकता क्योंकि बचपन में ही गीता ने उसके अंदर की सारी बुराइयों को मिटा दिया है। उसे क्रोध, घृणा, दुराचार, लोभ, पाप, पुण्य, अच्छा, बुरा, अपना, पराया सब का ज्ञान प्राप्त हो गया है। गीता के उपदेशों के कारण उसे एक अच्छा और समदर्शी, तटस्थ व्यक्तित्व प्राप्त हो गया है जिसके कारण व्यक्ति हमेशा सन्मार्ग पर चलेगा।
गीता के ज्ञान से बहुत सारी बुराइयों का अपने आप अंत हो जाएगा। इसलिए भारत सरकार से हमारा अनुरोध है कि जिस प्रकार गुजरात सरकार ने भगवत गीता को स्कूलों में अनिवार्य किया है उसी प्रकार संपूर्ण भारत के स्कूलों में भगवत गीता अनिवार्य कर देना चाहिए क्योंकि गीता एक ग्रंथ मात्र नहीं बल्कि जीवन जीने का सार है। जीवन जीने का सार यदि व्यक्ति बचपन में ही समझ लेगा तो वह सही मार्ग पर चलकर सत्कर्म करेगा और दूसरों का अहित कभी नहीं करेगा। बहुत सारी बुराइयों का अंत अपने आप हो जाएगा और अच्छाईयो का अपने आप जन्म हो जाएगा। सभी का एक दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार रहेगा तो भारत पुनः विश्व गुरु की ओर अग्रसर होगा।
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