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    बिरसा मुंडा पर दांव! बिहार के जमुई से पीएम मोदी तो दिल्ली से शाह साध रहे झारखंड चुनाव

  • November 15, 2024

    नई दिल्ली. झारखंड (Jharkhand ) में विधानसभा चुनाव (assembly elections) में आदिवासी मतदाता निर्णायक हैं. आदिवासी अस्मिता (tribal identity) की पिच पर घिरी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) घुसपैठ के साथ ही रोटी-बेटी और माटी के मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) को घेर रही है. अब चुनावों के बीच जनजातीय गौरव दिवस के जरिये भी आदिवासी समाज को साधने की कवायद नजर आ रही है. आदिवासी समाज में भगवान का दर्जा रखने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस बार 150वीं जयंती का यह मौका चुनावी मौसम में और भी खास हो गया है.

    आदिवासी वोट की लड़ाई में बीजेपी झारखंड की चुनावी पिच पर सियासी दांव-पेंच आजमा ही रही है, अब बिहार और दिल्ली से भी आदिवासी लैंड को साधने की कोशिश है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहां गृह मंत्री अमित शाह ने बिरसा मुंडा की प्रतिमा का अनावरण किया, पूरे एक साल तक विविध आयोजनों की बात कही. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार के जमुई में हैं जहां बिरसा मुंडा की जयंती पर बड़ा आयोजन हो रहा है.


    जमुई के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के साथ ही झारखंड से भी बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल होंगे. आदिवासी समाज से नाता रखने वाले केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम पीएम मोदी के कार्यक्रम की तैयारियों की निगरानी के लिए पहले से ही जमुई में जमे हुए हैं.

    मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ ही जब राजस्थान के विधानसभा चुनाव थे, तब बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड के उलिहातु पहुंचे थे. उलिहातु बिरसा मुंडा की जन्मभूमि है. पीएम का यह दांव कारगर साबित हुआ और बीजेपी ने राजस्थान की जंग जीती ही, जिस मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के जीतने की संभावनाएं तमाम रिपोर्ट्स में जताई जा रही थीं, उन राज्यों में भी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई.

    बीजेपी इस बार झारखंड जीतने के लिए भी उसी फॉर्मूले पर बढ़ती नजर आ रही है और पड़ोसी राज्य की जमीन से आदिवासी लैंड को साधने की कवायद में जुटी है. पीएम मोदी जमुई में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में 6640 करोड़ रुपये से अधिक विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास करने वाले हैं.

    इन परियोजनाओं में सीधे-सीधे आदिवासी समाज से जुड़ी परियोजनाएं भी हैं. पीएम मोदी आदिवासी समाज के समृद्ध इतिहास, समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए दो आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों के साथ ही दो आदिवासी शोध संस्थानों का लोकार्पण करने वाले हैं. पीएम मोदी आबा ग्राम उत्कर्ष अभियान का भी शुभारंभ कर रहे हैं.

    गौर करने वाली बात यह है कि आबा शब्द सीधे-सीधे बिरसा मुंडा के नाम के साथ जुड़ा हुआ है. बिरसा मुंडा को धरती आबा कहा जाता है. आबा का मतलब पिता होता है. आदिवासी अस्मिता के सबसे बड़े प्रतीक के जरिये आदिवासी पिच सेट करने की कोशिश में है तो वहीं पीएम जन-मन के तहत 11 हजार घरों के गृह प्रवेश में शामिल होकर गरीब तबके के मतदाताओं को भी संदेश देने की रणनीति है.

    झारखंड में कितने आदिवासी
    झारखंड की आबादी में कुल करीब 26 फीसदी भागीदारी आदिवासी समाज की है. सूबे की कुल 81 में से 26 विधानसभा सीटें एसटी समाज के लिए आरक्षित हैं जो सत्ता का रुख तय करती हैं. 2019 के झारखंड चुनाव में 26 आदिवासी सीटों में से 21 सीटों पर जेएमएम और कांग्रेस को जीत मिली थी. हालिया लोकसभा चुनाव में भी झारखंड की आदिवासी बाहुल्य लोकसभा सीटों पर बीजेपी के लिए नतीजे बेहतर नहीं रहे थे. 2019 के विधानसभा चुनाव और हालिया लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए बीजेपी इस बार आदिवासी बाहुल्य सीटों और आदिवासी समाज को साधने के लिए पूरा जोर लगा रही है.

    एमपी-छत्तीसगढ़ में कारगर रही थी प्रतीकों की पॉलिटिक्स
    बीजेपी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी वोटबैंक को साधने के लिए प्रतीकों की पॉलिटिक्स पर फोकस किया और सफल भी रही. बीजेपी ने एमपी में रानी दुर्गावती यात्रा निकाली, हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम से कर दिया और जबलपुर में शंकर शाह रघुनाथ शाह के नाम पर स्मारक भी बनवाया.

    छत्तीसगढ़ में भी पार्टी ने पुरखौती सम्मान यात्रा निकाली. ऐन चुनावों के वक्त पीएम मोदी के बिरसा मुंडा की ज्मभूमि उलिहातु जाने से भी आदिवासी समाज के बीच बीजेपी के पक्ष में हवा बनी. बिहार की जमीन से बिरसा मुंडा की जमीन को साधने का यह प्रयास कितना कारगर रहता है, यह 23 नवंबर की तारीख बताएगी.

    कौन हैं बिरसा मुंडा?
    बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू गांव में हुआ था. चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल से पढ़ाई के दौरान बिरसा मुंडा के क्रांतिकारी तेवर देख उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. इसके बाद बिरसा और उनके परिवार ने जर्मन ईसाई मिशन की सदस्यता के साथ ही चाईबासा भी छोड़ दिया और रोमन कैथोलिक धर्म अपना लिया. बाद में इस धर्म से भी अरुचि हो गई.

    पोड़ाहाट के जंगलों को जब ब्रिटिश सरकार ने सुरक्षित घोषित कर दिया, आदिवासी आंदोलन में बिरसा मुंडा भी कूद पड़े. बिरसा मुंडा ने यह कहा कि वह धरती आबा (धरती के पिता) हैं और उनको इसी रूप में देखा जाए. बिरसा मुंडा ने मुंडा और ओराम आदिवासियों को एकजुट कर चर्च और मिशनरियों के साथ ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था.

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