अब तक 23 किलोमीटर की कान्ह को संवारने के लिए 15 करोड़ खर्च किए
रामबाग, संजय सेतु, सीपी शेखर नगर, जयरामपुर, हाथीपाला पुल के आसपास के हिस्से बदतर हालत में पहुंचे, कागजों पर गाद हटाना महंगी पड़ी
इन्दौर। शहरी क्षत्र में कान्ह नदी का 23 किमी का हिस्सा नगर निगम ने संवारने के लिए बीते वर्षों में 15 करोड़ खर्च किए और इसके परिणाम कुछ दिनों तक सामने भी आए थे, जिसमें घाट और किनारे चकाचक नजर आने लगे थे। मेन्टेनेंस के अभाव में अब हालत बदतर हो गई है और कई किनारों से जमी गाद और जलकुंभी के कारण बदबू फैल रही है। दस से ज्यादा ऐसे स्थान हैं, जहां कान्ह नदी फिर पुराने स्वरूप में दिख रही है।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत कान्ह नदी के कई हिस्सों को संवारने की शुरुआत चार साल पहले की गई थी। इसके अलावा रिव्हर फ्रंट डेवलपमेंट के तहत भी शिवाजी मार्केट के पीछे नदी के हिस्से को न केवल संवारा गया था, बल्कि वहां आकर्षक फुटपाथ बनाने के साथ-साथ कई कब्जेधारियों को हटाया गया था। उस दौरान दिल्ली और देशभर से आए अफसरों की टीम ने जब नदी के छोर देखे तो खूब तारीफें की। इसके अलावा गणगौर घाट, सीपी शेखर नगर, कृष्णपुरा छत्री, चंद्रभागा, जयरामपुर, दयानंद नगर के साथ-साथ करीब दस से ज्यादा स्थानों पर सौंदर्यीकरण के कार्य कर वर्षों पुराने घाटों को संवारा गया था। पिछले दिनों हुई दो इंच बारिश और नदी की सफाई नहीं होने के चलते अब हालत वहां बदतर हो गई है। सभी दस स्थानों पर गाद और जलकुंभी के कारण पानी अवरुद्ध पड़ा है। पिछले दिनों निगम ने कान्ह नदी की सफाई का अभियान दो दिनों तक चलाया, उसके बाद जेसीबी और पोकलेन मशीनें कर्मचारियों के साथ गायब हो गई। कागजों पर सफाई अब निगम को महंगी पड़ रही है और बारिश में उसका खामियाजा शहर को भुगतना होगा।
कृष्णपुरा छत्री के घाटों पर प्लास्टिक की थैलियों का ढेर
कृष्णपुरा छत्री के आसपास के घाटों पर पहले सफाई व्यवस्था न केवल बेहतर थी, बल्कि वहां हर महीने, दो महीने के अंतराल में नदी के हिस्से को साफ करने के लिए पोकलेन नदी में उतारी जाती थी, लेकिन यह अभियान कई दिनों से बंद होने के चलते वहां के किनारों पर गाद और जलकुंभी के साथ-साथ पूजन सामग्री भरकर फेंकी गई थैलियों का ढेर नजर आता है।
करोड़ों खर्च करने के बाद भी वही हाल
शहर में नगर निगम करोड़ों खर्च कर चौराहों, बगीचों को संवारने से लेकर कई कार्य करता है, लेकिन देखरेख के अभाव में कुछ महीनों में ही उनकी हालत बदतर हो जाती है। कान्ह नदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। बीते दो, तीन वर्षों में 15 करोड़ रुपये किनारों और नदी के हिस्सों को संवारने के लिए खर्च कर दिए और अब हालत पुराने दिनों की याद दिलाती है।
घाट का गणेश मंदिर जलकुंभी से घिरा
करीब 8 माह पहले नगर निगम ने तमाम संसाधन झोंककर गणगौर घाट के आसपास के हिस्सों की न केवल सफाई कराई थी, बल्कि वहां प्राचीन छत्रियों के साथ-साथ घाटों को भी संवारा था। इसके लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए। कई दिनों तक मिट्टी में दबे गणेश मंदिर को निकालने के लिए जेसीबी, पोकलेन के साथ-साथ क्षेत्रीय लोगों की कारसेवा भी काम आई थी। मंदिर को बेहतर हालत में किया गया था, लेकिन अब वहां फिर आस-पास के हिस्सों में गाद और जलकुंभी जमा हो गई है।
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