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निश्चिंत रहिये, अगर बैंक डूबा तो अब 1 लाख से ज़्यादा मिलेंगे

February 04, 2021


आम बजट 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट (DICGC) में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है। इस संशोधन के बाद बंद हुए बैंकों के ग्राहकों को उनकी रकम जल्द से जल्द मिल सकेगी। Bank ग्राहकों के लिए इस ऐलान की खास अहमियत है, विशेष तौर से छोटे डिपॉजिटर्स (Small Depositors)को तो इस बारे में जरूर जानना चाहिए। जर्जर स्थित में पहुंच चुके कुछ बैंकों के ग्राहकों और देश के बैंकिंग इंडस्ट्री के लिहाज से यह बेहतर व सुरक्षित कदम बताया जा रहा है। दरअसल, डिपॉजिट इंश्योरेंस (Deposit Insurance) एक तरह की स्कीम है, जिसके तहत किसी बैंक के फेल होने के बाद ग्राहकों का अधिकतम 5 लाख रुपये सुरक्षित रहती है। पिछले साल ही वित्त मंत्री ने बीमित रकम की लिमिट 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने का ऐलान किया था। करीब 28 साल बाद इस बीमित रकम (Insured Amount) की लिमिट बढ़ाई गई थी।

इस बार नया क्या है?
जानकारों का कहना है कि इस संशोधन के बाद डिपॉजिटर्स को इस बात का इंतजार नहीं करना होगा कि बैंक लिक्विडेशन प्रक्रिया में जाए, तभी वे अपनी डिपॉजिट रकम को क्लेम कर सकें। अगर कोई बैंक मोरेटोरियम (Bank Moratorium) में भी होता है तो डिपॉजिटर डीआईसीजीसी एक्ट (DICGC Act) के तहत अपनी रकम क्लेम कर सकता है। दूसरे भाषा में कहें तो इसका मतलब है कि नये संशोधन से उन बैंकों के हजारों डिपॉजिटर्स को राहत मिल सकेगी, जो बैंक लंबे समय तक मोरेटोरियम में रहता है।

क्या कहता है नियम?
DICGC एक्ट, 1961 की धारा 16 (1) के प्रावधानों के तहत, अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है, तो DICGC प्रत्येक जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है। उसकी जमा राशि पर 5 लाख रुपये तक का बीमा होगा। आपका एक ही बैंक की कई ब्रांच में खाता है तो सभी खातों में जमा अमाउंट और ब्‍याज जोड़ा जाएगा और केवल 5 लाख तक जमा को ही सुरक्षित माना जाएगा। इसमें मूलधन और ब्‍याज (Principal and Interest) दोनों को शामिल किया जाता है। मतलब साफ है कि अगर दोनों जोड़कर 5 लाख से ज्यादा है तो सिर्फ 5 लाख ही सुरक्षित माना जाएगा।



DICGC इंश्योरेंस के दायरे में क्या आता है?
डीआईसीजीसी के दायरे में बैंक का सभी डिपॉजिट आता है। इसमें सेविंग्स अकाउंट, फिक्सड डिपॉजिट अकाउंट, करंट अकाउंट आदि शामिल होता है।

आपको कैसे पता चले कि आपका बैंक DICGC के अंतर्गत आता है?
किसी भी बैंक को रजिस्टर करते समय में डीआईसीजीसी उन्हें प्रिंटेड पर्चा देता है, जिसमें डिपॉजिटर्स को मिलने वाली इंश्योरेंस के बारे में जानकारी होती है। अगर किसी डिपॉजिटर को इस बारे में जानकारी चाहिए होती है तो वे बैंक ब्रांच के अधिकारी से इस बारे में पूछताछ कर सकते हैं।

एक ही बैंक के विभिन्न ब्रांचों में इंश्योरर्ड डिपॉजिट की पूरी रकम क्या होती है?
एक ही बैंक के कई ब्रांचों की कुल डिपॉजिट पर अधिकतम 5 लाख रुपये की रकम ही बीमित होती है। अगर आसान भाषा में समझें तो किसी बैंक में आपकी कुल जमा राशि 8 लाख है तो बैंक के डिफॉल्ट करने पर आपके सिर्फ 5 लाख रुपये ही सुरक्षित माने जाएंगे। बाकी आपको मिलने की गारंटी नहीं होगी।

क्या डिपॉजिटर को मूल रकम ही बीमित होती है या इसमें मूल और उसपर जमा ब्याज भी शामिल होता है?
DICGC मूल रकम और उसपर जमा ब्याज का ही बीमा करता है। दोनों मिलाकर डिपॉजिटर्स का अधिकतम 5 लाख रुपये ही सुरक्षित रहता है। उदहारण के लिए मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने अपने बैंक अकाउंट में 4,95,000 रुपये जमा किया है और इसपर उन्हें 4,000 रुपये का ब्याज भी मिला है। ऐसे में इस व्यक्ति की कुल 4,99,000 रुपये ही सुरक्षित रहेगा। लेकिन, यदि अकाउंट में 5,00,000 रुपये जमा है तो इस पर मिलने वाला ब्याज बीमित नहीं हो सकेगा। यह इसलिए नहीं बीमित होगा, क्योंकि नियमों के अनुसार अधिकतम 5 लाख रुपये ही सुरक्षित रह सकता है।

क्या ही एक ही बैंक में कई अकाउंट खुलवाकर बीमा की रकम बढ़ाई जा सकती है?
DICGC द्वारा बीमा की रकम कैलकुलेट करते समय एक ही बैंक एक ही व्यक्ति द्वारा सभी अकाउंट को ध्यान में रखा जाता है। अगर इन फंड्स का मालिकाना विभिन्न तरह की है या अलग-अलग बैंक में डिपॉजिट है तो बीमा की रकम अगल-अलग ही होगी। मान लीजिए कि आपने दो बैंकां में अकाउंट खुलवाया है तो यह दोनों अकाउंट में अधिकतम 5-5 लाख रुपये ही बीमित होंगे।

मेरे पास दो बैंक में अकाउंट हैं और ये दोनों बैंक ही एक ही दिन बंद हो गए तो बीमा की रकम कितनी होगी?
आपके दोनों बैंक के डिपॉजिट पर बीमा की रकम अलग-अलग ही होगी। इसपर बैंक बंद होने की तारीख से कोई असर पड़ेगा। इन दोनों अकाउंट पर आपको अधिकतम 5-5 लाख रुपये मिल जाएंगे।

कैसे मिलेगा फायदा
गारंटी राशि बढ़ाने पर सरकार को कई फायदे होंगे। एक तो बैंकों में लोग गारंटी राशि के बराबर पैसा जमा कराने को लेकर परेशान नहीं होंगे। इससे लोगों का विश्वास भी बैंकिंग सिस्टम पर बढ़ेगा। इससे बैंकों के पास सेविंग बढ़ेगी और वे ज्यादा कर्ज दे सकेंगे।

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