भोपाल। मप्र में आबादी के हिसाब से बैंक खाते देश में सबसे ज्यादा, लेकिन प्रति खाता जमा राशि सबसे कम है। यही नहीं 31 लाख खातों का संचालन तो बैंक के लिए भारी पड़ रहा है। क्योंकि इनमें एक रुपया भी बैलेंस नहीं है। ऐसे खाते बैंकों के लिए घाटे और परेशानी का कारण बन गए हैं। जानकारी के अनुसार मप्र में प्रति लाख आबादी पर बैंक खाते गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों से ज्यादा हैं। लेकिन इन खातों में जमा राशि 21 राज्यों में सबसे कम है। आंकड़े बताते हैं, मप्र में जुलाई तक 3.78 करोड़ बैंक खाते खोले गए। इसमें 31 लाख खातों का संचालन बैंक के लिए भारी पड़ रहा है। क्योंकि इनमें एक रुपया भी बैलेंस नहीं है।
बैंकिंग सेवाओं में हिस्सेदारी घटी
मध्यप्रदेश में कमजोर वर्ग (एससी-एसटी, अल्पसंख्यक और गरीबी रेखा से नीचे वाले) की बैंकों के कुल लोन में हिस्सेदारी सिर्फ 22.63 प्रतिशत है, जबकि जातिगत और आर्थिक आधार पर इस आबादी की कुल जनसंख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है। इस तबके की आर्थिक और सामाजिक उन्नति के लिए चलाई जा रही अनेक योजनाओं के बाद भी बैंकिंग सेवाओं में इनकी हिस्सेदारी बढऩे के बजाय घटी है। संस्थागत वित्त (डीआईएफ) ने बैंकों के साथ मिलकर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके अनुसार 2020 में बैंकिंग कर्ज में कमजोर तबके की हिस्सेदारी 22.90 प्रतिशत थी, जो अब 0.27 प्रतिशत घट गई। कमजोर तबके के लिए बैंकों ने 3.72 करोड़ जन-धन खाते खोले हैं। इनकी संख्या एक वर्ष में 18 लाख बढ़ी है, लेकिन इनमें जीरो बैलेंस खातों की संख्या 28 लाख से बढ़कर 30 लाख हो गई। ये खाते इस तबके के मध्यम आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए ही खोले गए थे।
54 नई बैंक शाखाएं खोली जाएंगी
अगले एक साल में 54 नई बैंक शाखाएं खोली जानी हैं। लेकिन जानकारों की मानें तो इससे आर्थिक विकास में खास फर्क नहीं पडऩे वाला है। क्योंकि खातों में पैसा ही नहीं आएगा तो खाते खोलने से क्या फायदा। आरबीआई ने जीरो बैलेंस खातों को मेंटेन करने में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए खाताधारकों को 10 हजार रुपए के कर्ज की सुविधा दी थी। ज्यादातर खाताधारकों ने यह कर्ज लिया। लेकिन बैंकों ने जैसे ही खाते में पैसा डाला, उन्होंने एटीएम के जरिए निकाल लिया।
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