ढाका। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया के क्षेत्रीय निदेशक पद की दौड़ में बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना की बेटी सलमा वाजेद भी शामिल हैं। हालांकि इसे लेकर अब वंशवाद का मुद्दा उठ गया है। दरअसल दुनियाभर से 60 से ज्यादा सार्वजनिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को पत्र लिखकर क्षेत्रीय निदेशक के चयन में पारदर्शिता बरतने की अपील की है। हालांकि इस पत्र में किसी का नाम नहीं लिया गया है लेकिन बांग्लादेशी पीएम की बेटी को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर इसकी खूब चर्चा है और वंशवाद की चर्चा शुरू हो गई है।
पत्र में लिखा गया है कि उम्मीदवारों की शिक्षा और योग्यता आदि की पूरी कठोरता से जांच की जाए। बता दें कि अभी दक्षिण पूर्व एशिया से विश्व स्वास्थ्य संगठन की क्षेत्रीय निदेशक भारत की डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह हैं और जल्द ही उनका कार्यकाल पूरा होने वाला है। अब इस पद की दौड़ में बांग्लादेश से सलमा वाजेद और नेपाल से डॉ. शंभु प्रसाद आचार्य शामिल हैं। डॉ. आचार्य सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में पीएचडी धारक हैं और उन्हें डब्लूएचओ के साथ 30 सालों तक काम करने का अनुभव भी है। वहीं बांग्लादेशी पीएम शेख हसीना की बेटी सलमा वाजेद ने साइकोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की है और ऑटिज्म में स्पेशलाइजेशन भी किया है।
शैक्षिक योग्यता और अनुभव को देखते हुए ही सलमा वाजेद के चयन को लेकर वंशवाद के आरोप लग रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि सलमा वाजेद के पास तकनीकी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की विशेषज्ञता नहीं है। हालांकि सलमा वाजेद का कहना है कि वह डब्लूएचओ के मानसिक स्वास्थ्य और ऑटिज्म के डायरेक्टर जनरल की सलाहकार रही हैं और करीब एक दशक तक डब्लूएचओ की विशेषज्ञ समिति की सदस्य भी रही हैं। वंशवाद के आरोपों पर सलमा वाजेद ने कहा कि ‘वह कौन हैं, वह इसमें कुछ नहीं कर सकती।’
बता दें कि डब्लूएचओ के क्षेत्रीय निदेशक का चुनाव दक्षिण पूर्व एशिया के 11 देशों के स्वास्थ्य मंत्री करते हैं। इनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड और ईस्ट टिमोर शामिल है। डब्लूएचओ की क्षेत्रीय बैठक के बाद अक्तूबर में क्षेत्रीय निदेशक पद के लिए वोट डाले जाएंगे। यह वोटिंग गुप्त तरीके से होती है। अगर सलमा वाजेद जीतती हैं तो वह बांग्लादेश की तरफ से दूसरी क्षेत्रीय निदेशक होंगी, उनसे पहले बांग्लादेश के सैयद मुदस्सर अली इस पद पर रह चुके हैं। डब्लूएचओ को लिखे पत्र में कहा गया है कि मतदान की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और उसमें सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
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