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    बांग्लादेश में फ्रांसीसी सामानों का बहिष्कार

  • October 29, 2020

    – डॉ. रमेश ठाकुर

    बांग्लादेश में फ्रांसीसी सामानों का बहिष्कार। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश की सड़कों पर बीते दो दिनों से हाय-हाय के नारे गूँज रहे हैं। विरोध के नारे अंदरूनी किसी मसले को लेकर नहीं, बल्कि फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ लोग आक्रोशित होकर लगा रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैको के इस्लाम पर दिए बयान के बाद न सिर्फ बांग्लादेश में, बल्कि कई अन्य इस्लामिक देशों में भी उनका विरोध हो रहा है। उनके नाम के विरोध साथ-साथ फ्रांस के उत्पादों का भी बहिष्कार होना शुरू हो गया है। ठीक उसी तरह जिस तरह हिंदुस्तानियों ने चीनी सामान लेना बंद कर दिया है। हालांकि दोनों जगह विरोध अलग-अलग मुद्दों पर है। इस्लामिक देश फ्रांस का विरोध इसलिए कर रहे हैं कि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब का अपमान किया है। वहीं, भारत में चीन का विरोध सरहद पर तनातनी को लेकर है। लेकिन उन्होंने हमसे इतना जरूर सीख लिया है कि जब किसी को उसकी औकात दिखानी हो तो आर्थिक रूप से चोट मारनी चाहिए।

    हिंदुस्तान में चीन का सालाना करोड़ों नहीं, कई हजार अरबों में व्यापार होता था, लेकिन बहिष्कार के बाद धड़ाम से जमीन पर गिर गया। कमोबेश, इस्लामिक देश भी फ्रांस को कुछ ऐसा ही सबक सिखाना चाहते हैं। बांग्लादेश की राजधानी ढाका में फ्रांस के खिलाफ अनगिनत प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हुए हैं और फ्रांस के सामानों का जनता से बहिष्कार करने की अपील कर रहे हैं। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से बहिष्कार का असर देखने को भी मिल रहा है। ढाका के दुकानदारों ने फ्रांस से उत्पादक सामानों को सड़कों पर लाकर जला रहे हैं। जनता भंयकार रूप से आक्रोशित है, कई जगहों पर राष्ट्रपति मैक्रों का पुतला जलाए गए हैं और उनके खिलाफ जमकर नारेबाज़ी हो रही है। प्रदर्शनकारी एक ही बात पर अड़े हैं कि कथित इस्लामोफोबिया को लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों को सजा दी जाए।

    फ्रांस का विरोध क्यों हो रहा है, इस थ्योरी को समझने की जरूरत है। एक पत्रिका में पैगंबर मोहम्मद साहब का अपमानजनक तौर पर कार्टून छापा गया, उसका सबसे पहले विरोध अरब इस्लामिक मुल्कों में हुआ। वहां की आग अब एशियाई देशों में भी पहुंच गई। घटना से फ्रांस को ही क्यों जोड़ा जा रहा है उन्हें ही टारगेट क्यों क्या जा रहा? दरअसल, इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का विवादित कार्टून छापने के विवादित कदम का उन्होंने बचाव किया, जिसपर इस्लामिक देश भड़क गए। उसके बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ मुस्लिम देशों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। विवादित कार्टून का मसला अब पाकिस्तान और बांग्लादेश तक पहुंच गया है। पाकिस्तान में तो विरोध हल्का है लेकिन बांग्लादेश में विरोध की लपटें तेज हैं।

    गौरतलब है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के फोटो के साथ छेड़छाड़ पहले भी हुई, उसका जमकर विरोध भी हुआ। लेकिन इसबार विरोध कुछ ज्यादा ही हो रहा है। कोरोना काल में लोग जब अपने स्वास्थ्य के प्रति अलर्ट हैं, बावजूद इसके लोग विरोध करने के लिए सड़कों पर जमा हैं। हालांकि धार्मिक और धार्मिकता से जुड़े मसलों पर विरोध करने का इतिहास बहुत पुराना है। कोई भी किसी को किसी धार्मिक गुरु, ग्रंथ, पवित्र स्थान या पुरुष को अपमानित करने की इजाज़त नहीं देता। धर्मों में जो पूजनीय है, वह सभी के लिए एक समान होना चाहिए। कई बार ऐसे विरोध की आड़ में मुद्दे दूसरी ओर भटक जाते हैं या भटका दिए जाते हैं। फ्रांस के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। राष्ट्रपति मैक्रों को इस्लाम के खिलाफ माना जाता है। उनके खिलाफ विरोध की चिंगारी को भड़काने का इससे अच्छा मौका मुस्लिम देशों को और नहीं मिल सकता था? कई देशों ने इससे पूर्व में भी राष्ट्रपति मैक्रों के खिलाफ फतवा जारी किए थे। कुछ मुस्लिम देशों ने उनके आने पर रोक भी लगाई थी।

    मैक्रों जब फ्रांस के राष्ट्रपति बने थे, उस वक्त भी उनका विरोध हुआ था। आरोप था, ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति जैसे पद पर नहीं होना चाहिए, जो विशेष समुदाय के प्रति घृणा का भाव रखता हो। मैक्रों फ्रांस की जनता द्वारा चुने हुए जन प्रतिनिधि थे इसलिए उनके विरोध का ज्यादा असर नहीं हुआ। लेकिन जबसे उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून का समर्थन किया है, माहौल उनके खिलाफ हो गया। उनके खिलाफ कई मुस्लिम देशों में आंदोलन हो रहे हैं। उनके पुतले को जूतों का हार पहनाकर गलियों में घुमाया जा रहा है। पूरे मसले पर भारत की पैनी नजर बनी हुई। आपसी संबंधों को देखते हुए फिलहाल भारत ने फ्रांस का बचाव किया है। इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी स्थिति स्पष्ट की है।

    भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय वाद-विवाद के सबसे बुनियादी मानकों के उल्लंघन के मामले में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के खिलाफ अस्वीकार्य भाषा की घोर निंदा की है। भारत ने आपत्ति जताई है कि किसी भी राष्ट्रपति के साथ अर्मायादित भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। विरोध करने का भी एक तरीका होता है जिसे मुकम्मल रूप से अपनाया जा सकता है। भारत ने भयानक तरीके से क्रूर आतंकवादी हमले में फ्रांसीसी शिक्षक को मारने की भी निंदा की है। भारत सरकार ने मृतक परिवार और फ्रांस के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है। भारत के इस रूख से पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथ मुल्कों को आपत्ति भी हुई है।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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