नई दिल्ली । रूस-यूक्रेन युद्ध (Russo-Ukraine War) के बीच आटा की बढ़ती कीमत के मद्देनजर केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। गेहूं को फ्री कैटगरी (wheat free category) से प्रतिबंधि श्रेणी में रखा गया है। सरकार ने देश की खाद्य सुरक्षा (food security) के मद्देनजर यह कदम उठाया है। इससे संबंधित अधिसूचना देर रात जारी की गई।
वहीं गेहूं की फसल खराब होने से परेशानी झेल रहे किसानों के लिए राहत की खबर है। केंद्र सरकार ने गेहूं खरीद की प्रक्रिया को 31 मई, 2022 तक बढ़ा दिया है। सरकार ने घरेलू बाजार में आटे की बढ़ती कीमत के बीच निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद यह कदम उठाया है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
दरअसल रूस-यूक्रेन की बीच जारी जंग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत में करीब 40 फीसदी की तेजी आई है, जिससे भारत से इसका निर्यात बढ़ गया है। गेहूं की मांग बढ़ने से घरेलू बाजार में गेहूं और आटे की कीमत में भारी तेजी आई है।
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद जरूरतमंद देशों को निर्यात जारी रहेगा। दरअसल कई प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में सरकारी खरीद की प्रक्रिया सुस्त चल रही है और लक्ष्य से कम गेहूं की खरीदारी हुई है। इस बार गेहूं की पैदावार कम होने की आशंका है। उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी मांग ज्यादा होने की वजह से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ज्यादा कीमत बाजार में मिल रही है।
ट्रे़डर्स के मुताबिक इस साल देश में गेहूं का उत्पादन 9.5 करोड़ टन रहने का अनुमान है। सरकार 10.5 करोड़ टन गेहूं के उत्पादन का अनुमान जता चुकी है। कांडला पोर्ट में गेहूं की कीमत 2,550 रुपये प्रति क्विंटल है।
वहीं गेहूं की फसल खराब होने से परेशानी झेल रहे किसानों के लिए राहत की खबर है। केंद्र सरकार ने गेहूं खरीद की प्रक्रिया को 31 मई, 2022 तक बढ़ा दिया है। सरकार ने घरेलू बाजार में आटे की बढ़ती कीमत के बीच निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद यह कदम उठाया है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रविवार को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने कहा कि गेहूं पैदा करने वाले किसी भी किसान को असुविधा न हो, इसलिए सरकार ने गेहूं खरीद प्रक्रिया को 31 मई, 2022 तक बढ़ा दिया है। गोयल ने कहा कि हम कृषि समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसके लिए हम आगे भी काम करते रहेंगे। इससे पहले गर्मियां जल्द शुरू होने से गेहूं की फसल खराब होने की परेशानी झेल रहे किसानों को राहत देते हुए केंद्र सरकार ने पंजाब और हरियाणा में गेहूं के सिकुड़े दानों की खरीदने के नियमों में ढील देने का फैसला किया था।
आपको बता दें कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हर साल हजारों लाख टन गेहूं का उत्पादन होता है। 2021-22 में भारत में गेहूं का 1,113 लाख टन गेहूं पैदा हुआ था। अब सवाल ये उठता है कि गेहूं का इतना उत्पादन तो फिर कमी कैसे हो गई? इसकी एक वजह है गेहूं के स्टॉक में गिरावट और एमएसपी पर गेहूं की खरीद में कमी। भारत में गेहूं का स्टॉक फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) करता है. एफसीआई के आंकड़ों के मुताबिक, एक साल में गेहूं का स्टॉक लगातार कम होता चला गया।
एफसीआई के मुताबिक, मई 2021 में 525 लाख टन से ज्यादा गेहूं का स्टॉक था, जो मई 2022 में घटकर 303 लाख टन का हो गया। बीते एक साल में लगातार 9 महीने तक गेहूं के स्टॉक में गिरावट आती रही। अप्रैल 2022 में करीब 190 लाख टन गेहूं का स्टॉक ही था, हालांकि, मई में इसमें थोड़ा सुधार हुआ. फिर भी ये पिछले साल के मुकाबले 42 फीसदी से ज्यादा कम है। गेहूं के स्टॉक में कमी की एक बड़ी वजह एमएसपी पर गेहूं की खरीद में आ रही गिरावट भी है। इस साल के लिए सरकार ने 1 क्विंटल गेहूं पर 2,015 रुपये की एमएसपी तय की है जो कि मार्केट रेट से कम है।
एफसीआई के मुताबिक, चालू वित्तीय वर्ष 2022-23 (अप्रैल-मार्च) में सरकार ने एमएसपी पर 178 लाख टन गेहूं खरीदा है, जबकि टारगेट 195 लाख टन का था।
बता दें कि गेंहू की खरीद रबी सीजन में लगभग जून तक होती है. इस लिहाज से यह आंकड़ा अभी थोड़ा और ऊपर जा सकता है, लेकिन फिर भी यह बीते सालों के आंकड़ों के मुकाबले कम रहेगा ऐसा अनुमान है। बता दें कि 2021-22 में 433 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद एमएसपी पर हुई थी।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले सरकार ने रूस-यूक्रेन जंग के बीच घरेलू बाजार में आटा की बढ़ती कीमत के मद्देनजर गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सरकार ने गेहूं को फ्री कैटगरी से हटाकर अभी प्रतिबंधि श्रेणी में रखा है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने जारी एक अधिसूचना में कहा कि सरकार ने देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाया है। दरअसल सरकार ने अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर लगातार गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों को संभालने के साथ ही देश की खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर यह कदम उठाया था।
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