– रंजना मिश्रा
कुछ खास अवसरों जैसे स्वतंत्रता दिवस, मकर संक्रांति, रक्षाबंधन आदि पर पतंगबाजी का शौक लोगों के सिर चढ़कर बोलता है। हमारे देश में पतंग उड़ाने की परंपरा रही है और यह परंपरा आज भी कायम है, किंतु लोगों का यह शौक तब जानलेवा बन जाता है, जब पतंग के शौकीन एक-दूसरे की पतंग काटने के लिए चाइनीज मांझे का इस्तेमाल करते हैं। चाइनीज मांझा पतंग की वह डोर है जो इतनी खतरनाक होती है कि किसी भी इंसान का गला तक काट सकती है और उस व्यक्ति की दर्दनाक मौत हो जाती है। यह चाइनीज मांझा खंजर से भी ज्यादा तेज धार का होता है। पल भर में लोगों को अपना शिकार बना लेता है, इसीलिए अब इसे मौत की डोर कहा जाने लगा है। जगह-जगह बिकने वाला मौत का यह मांझा जहां पतंगबाजों के लिए खुशी लेकर आता है, वहीं यह राहगीरों का दुश्मन है। ऐसा दुश्मन जो किसी राहगीर को दिखाई तक नहीं देता। खास अवसरों पर पतंगबाजी के लिए इसका खूब प्रयोग किया जाता है। पतंग उड़ाने वाले अक्सर मजबूत धागे वाले मांझे खरीदते हैं ताकि कोई उनकी पतंग को काट न सके। आसमान में तो उनकी पतंग को कोई काट नहीं पाता लेकिन उनकी यह डोर लोगों के गले जरूर काट देती है।
चाइनीज मांझा दिल्ली में 10 जनवरी 2017 से बैन है, किंतु कुछ लोगों का शौक और सिस्टम की लापरवाही की पतंग, जब कातिल मांझे के दम पर उड़ान भरती है तो खामियाजा किसी बेगुनाह को उठाना पड़ता है, इसी वजह से हर वर्ष चाइनीज मांझे के कारण कई लोगों को देश में जान गंवानी पड़ती है। केवल चाइनीज मांझा ही नहीं इसके अलावा और भी बहुत से खतरनाक मांझे बाजार में धड़ल्ले से बिक रहे हैं। चाइनीज मांझे के इस्तेमाल, बिक्री और स्टॉक पर प्रतिबंध है, इसके बावजूद इसकी बिक्री और खरीद बंद नहीं हो रही और इससे होने वाले हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे। बैन के बावजूद राजधानी दिल्ली में भी चीनी मांझा धड़ल्ले से बिकता है। कई पतंगबाज लगातार इस प्रतिबंधित मांझे का इस्तेमाल कर लोगों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। इसकी चपेट में आकर पिछले सालों में कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, हजारों की तादाद में पंछी हर साल जख्मी होते हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद अब सड़कों पर चहल-पहल बढ़ गई है, ऐसे में यह कातिल मांझा अगर यूं ही बिकता रहा तो पतंग उड़ाने वाले सीजन में यह कई जानलेवा हादसों को अंजाम दे सकता है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जुलाई 2017 में खतरनाक चीनी मांझे की बिक्री पर पूरे देश में बैन लगा दिया था। पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पीटा) की अर्जी पर यह आदेश किया गया था। मांझा बनाने वाली कंपनियां सुप्रीम कोर्ट भी गईं, लेकिन उन्हें वहां से राहत नहीं मिली। हौज काजी का लालकुआं, जाफराबाद, सदर, लाहौरी गेट इलाका पतंग मांझा का बड़ा बाजार है, अब मांझा चीन से नहीं बल्कि तेज धार के साथ देश में ही बन रहा है। दिल्ली से सटे नोएडा में इसकी फैक्ट्रियां हैं, जहां यह धड़ल्ले से बन रहा है, इसकी दिल्ली के बाजारों में भी सप्लाई हो रही है।
एक तरफ जहां इस मांझे से सड़क चलते लोगों के गाल और गले कट रहे हैं, वहीं ये चाइनीज दुश्मन लखनऊ मेट्रो को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है। लखनऊ में चाइनीज मांझे की बिक्री धड़ल्ले से जारी है। त्योहारों के दौरान पतंगबाजी बढ़ती है और चाइनीज मांझे की बिक्री भी। चाइनीज मांझे से लैस पतंग जब मेट्रो के ओएचई लाइन पर गिरती है तो पूरी लाइन ही ट्रिप कर जाती है, जिससे मेट्रो को घंटों खड़े रहना पड़ता है और मुसाफिर परेशान होते हैं। मेट्रो विकास की पहचान बन रहा है पर पतंग के शौकीनों का चाइनीज मांझे से लगाव समाप्त न हो पाने के कारण, महज कुछ रुपए के मांझे ने हजारों करोड़ की मेट्रो को रोककर नया सरदर्द दे दिया है।
साधारण मांझा धागे से बनता है और उस पर कांच की लेयर चढ़ाई जाती है, यह भी काफी खतरनाक होता है लेकिन ये आसानी से टूट जाता है, ऐसे में इसे कम खतरनाक माना जाता है, किंतु चाइनीज मांझे में प्लास्टिक, नायलॉन और लोहे का बुरादा मिला होता है। विभिन्न धातुओं के मिश्रण से तैयार होने से यह पतंग के पेंच लड़ाने में अधिक कारगर होता है इसीलिए अब इसका प्रयोग अधिक किया जाने लगा है। विभिन्न धातुओं के मिश्रण से बने होने के कारण यह बेहद धारदार और विद्युत सुचालक होता है, इसके उपयोग के दौरान दुपहिया वाहन चालकों और पक्षियों के जानमाल का नुकसान होता है। यह मांझा जब बिजली के तारों के संपर्क में आता है तो विद्युत सुचालक होने के कारण यह पतंगबाजी करने वालों के लिए भी जानलेवा साबित होता है और इससे बिजली की सप्लाई में भी बाधा पहुंचती है। कई बार दो तारों के बीच इस धागे के संपर्क से शॉर्ट सर्किट भी हो जाते हैं। इसलिए सरकार ने धातु वाले मांझे और चाइनीज मांझे की थोक और खुदरा बिक्री या इसके उपयोग पर प्रतिबंध का आदेश जारी कर दिया है।
यह मांझा मजबूत होने के साथ-साथ सस्ता भी होता है। चाइनीज मांझे पर दुकानदारों को मार्जिन भी ज्यादा है। एक रील सूती मांझे और चाइनीज मांझे में लगभग 500 से 700 रुपए का अंतर है। जब लोग पतंग उड़ाते हैं तो उनका लक्ष्य होता है कि उनकी पतंग कोई काट ना पाए और वो ज्यादा से ज्यादा दूसरों की पतंग काटें, ऐसे में वो इस मांझे को पसंद करते हैं और इससे पतंग उड़ाते हैं, क्योंकि दूसरे पतंग वालों के लिए इस मांझे को काटना थोड़ा मुश्किल होता है, यह आसानी से टूटता नहीं है और लंबे समय तक इससे पतंग उड़ाई जा सकती है।
मनोरंजन जब इंसान और बेजुबानों की जान के लिए खतरा बन जाए तो उसे बंद कर देना ही अच्छा होता है। जब से चाइनीज मांझा देश में आया, तब से कितने ही बच्चों, बड़ों और बेजुबान पक्षियों की जान ले चुका तथा कितनों को ही घायल कर चुका है, अतः इस पर अब पूरी तरह से रोक लगना बहुत आवश्यक है। इसके लिए सरकार और प्रशासन को अत्यधिक सचेत होना पड़ेगा और चोरी-छुपे इस मांझे को बनाने, बेचने और खरीदने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी पड़ेगी। जहां-जहां इस मांझे को बनाने की फैक्ट्रियां हैं, वहां छापा मारकर बनाने वालों को पकड़ना चाहिए। उन पर कड़ी कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए और उन्हें सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति आगे से चोरी छुपे यह काम ना कर सके। जानलेवा होने के बावजूद जो लोग महज अपने थोड़े से मनोरंजन के लिए, इसके प्रयोग को बंद नहीं कर रहे हैं और जो दुकानदार बैन होने के बावजूद इसकी धड़ल्ले से बिक्री कर रहे हैं, उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने की आवश्यकता है।
लोगों को भी जागरूक बनना होगा और उन्हें इसके प्रयोग से बचना होगा। बाजार से चाइनीज मांझे की बजाय सामान्य मांझा ही खरीदना चाहिए। बच्चों और अन्य लोगों को इससे होने वाले नुकसान और खतरे से अवगत कराना चाहिए। बड़ों को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि बच्चे किस प्रकार के मांझे का प्रयोग कर रहे हैं। पतंग के कहीं उलझने या टकराने पर उसे खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे संबंधित वस्तु को नुकसान पहुंच सकता है। सुरक्षित स्थान पर खड़े रहकर पतंग उड़ाना चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि मांझा किसी को स्पर्श ना कर सके, इससे आसपास के लोग सुरक्षित रहेंगे। बच्चों को बीच सड़क पर पतंग न उड़ाने दें। जहां बिजली के तार और खंभे लगे हों, ऐसी जगह पर भी पतंगबाजी नहीं करनी चाहिए। पतंग उड़ाने के लिए कम चहल-पहल वाली जगह ही चुनें, वरना पतंग उड़ाते समय बार-बार डोर फंसती है और ऐसे में कई बार दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं। प्रशासन के कड़े निर्देशों के बावजूद जो लोग इसका प्रयोग करते पाए जाएं, उनकी सूचना पुलिस को देनी अनिवार्य है, अन्यथा ये दुर्घटनाएं कभी थमने का नाम नहीं लेंगी।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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