बैतूल। अक्सर कहा जाता है कि संगीत और कला की कोई सीमा नहीं होती है। यह पलक झपकते ही हजारों किलोमीटर का सफर तय कर लेती हैं। बस इसके लिए मेहनत, जुनून सहित आत्मविश्वास (Self-confidence) का होना जरूरी होता है। जब इन सभी का मेल होता है तो कामयाबी के द्वार स्वयमेव (door to success) ही खुल जाते हैं। जी-हाँ हम बात कर रहे हैं बांस शिल्प को बढ़ावा देने वाले खेड़ी निवासी प्रमोद बारंगे की। उनके द्वारा बनाई गई बैलगाड़ी अमेरिका (bullock cart america) और इंग्लैंड में खूब पसंद की जा रही है। जबकि देखा जाए तो उनकी इस शिल्पकला को जिले में कोई पूछने वाला भी नहीं था, लेकिन अब उनकी यह कला देश-प्रदेश ही नहीं विदेश में भी उड़ान भरने वाली है।
पुश्तैनी काम को नए रूप में बढ़ा रहे आगे
प्रमोद बारंगे के मुताबिक बांस की किमचियों से उनके बड़े बूढ़े टोकनी, चटाई और झाडू बनाया करते थे। उनका यह पुश्तैनी काम उनके दादा, पापा किया करते थे, अब वो इस काम में जुटे हुए हैं। बदलते समय के हिसाब से उन्होंने डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हुए आकर्षक साज-सज्जा की सामग्री बनाना शुरू किया, जो लोगों को आकर्षित कर सके। आज उनकी बनाई हुई बैलगाड़ी, कप, नाइट लैंप देश के बड़े शहरों में खूब पसंद किए जा रहे है। बंगलुरु, पुणे, कलकत्ता, दिल्ली सहित कई बड़े शहरों से उन्हें ऑर्डर मिल रहे हैं। दीवाली जैसे त्योहारी सीजन पर उन्हें अच्छे खासे ऑर्डर मिलते हैं।
अमेरिका और इंग्लैंड पहुंची बैलगाड़ी
प्रमोद के बांस से बनी बैलगाड़ी खासी चर्चित है, जो अमेरिका और यूके के शहरों में भी भेजी गई है। खेड़ी के डॉक्टर मुकेश चिमानिया बताते हैं कि उनकी बहन मौसमी वर्मा अमेरिका में थी। तब वह प्रमोद के हाथों की बनी बैलगाड़ी अमेरिका ले गई थी। लेकिन अब उनका परिवार यूके शिफ्ट हो गया है। अब भी वह जब भी आती है बैलगाड़ी अपने साथ ले जाना नहीं भूलती। प्रमोद अपनी कला से लैंप, बैलगाड़ी, फर्नीचर, सीनरी, कप, ग्लास, कान की बालियां, हार, आरामदायक चेयर के अलावा कई प्रकार के कई सजावटी सामान बनाता है। इसके लिए वह इंटरनेट से डिजाइनर चीजों के सैंपल निकालता है, जिन्हें वह बांस के रूप रंग में ढालता है। डिजिटल छवि में बनने वाले शेड्स और रंगों को हूबहू वैसे ही ढालने का प्रयास करता है, जैसी छवि डिजिटल प्लेटफार्म पर नजर आती है।
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