उज्जैन। परिवहन अधिकारी कार्यालय (आरटीओ) अव्यवस्था के आगोश में रहता है, हालत इस कदर खराब है कि कार्यालय में बाबू घंटों तक सीट पर नहीं मिलते हैं। ऐसे में आम लोगों के अपने काम के लिए दफ्तर के चक्कर लगाने पड़ते है या दलालों को मोटी राशि देकर काम कराने पड़ते हैं। अब तो आरटीओ ऑफिस शहर से बाहर भेज दिया गया है लोग लम्बा सफर तय कर पहुँच पाते हैं।
आरटीओ में लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अधिकारी व बाबू की गैर मौजूदगी होने के चलते जिले के कोने-कोने से परिवहन संबंधित अपने काम से आने वाले लोगों को परेशान होकर लौटना पड़ता है। यह स्थिति जिला परिवहन कार्यालय में लंबे समय से देखी जा रही है। यही नहीं साहब है तो बाबू नहीं, बाबू है तो साहब नहीं का बहाना बताकर काम को टाला जाता है या फिर दलालों के पास जाने को मजबूर कर दिया जाता है।
दफ्तर में दलालों का राज
आरटीओ में बाबूओं की मनमानी का एक कारण यह भी है कि, यहाँ दलालों का राज है। कार्यालय में बैठे कर्मचारियों के पास न किसी तरह के आवेदन हैं और न ही कोई जानकारी। सारी प्रक्रिया ऑनलाइन हैं। बाबू चाहे तो मिनटों में कार्यवाही कर सकता है, परंतु बाबूओं का कार्यालय में मौजूदगी के दौरान अधिकांश समय दलाल और एजेंटों का काम ही करने में गुजरता हैं। लोगों का कहना है कि आरटीओ कब कार्यालय आते हैं, कब जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता है। इस वजह से कर्मचारियों पर कोई अंकुश नहीं हैं। परिवहन कार्यालय की बदहाल व्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं लेती है। जिले की अन्य तहसील से आने वाले लोग विभागीय अमले की अनुपस्थिति से परेशान होते हैं। विभागीय अमले की मौजूदगी नहींं होने के चलते दफ्तर के इर्द-गिर्द जमा दलाल मुँह माँगी रकम लेकर काम का ठेका लेते हैं। यह माना जा रहा है कि दलालों की इस कमाई में विभागीय अमले का भी हिस्सा शामिल रहता है।
आफिस तलाशना मुश्किल
आरटीओ ऑफिस शहर के बीच से 12 से 15 किमी दूर एक गाँव में बना दिया गया हैं। दूर दराज क्षेत्र में पहुँचा दिए गए आरटीओ तक जाना आसान नहीं हैं। उज्जैन शहर तो ठीक बाहर से आने वाले लोगों के लिए आरटीओ ऑफिस तक पहुँचना किसी भूल-भूलैया से कम नहीं हैं। इतना ही नहीं सुविधा के लिए संकेतक या सूचना बोर्ड के अभाव में जाने वाले लोग इधर-उधर भटककर चकरघिन्नी होते रहते हैं।
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